IPL-2024

Animal health | Green Fodder Feeding | पशु स्वास्थ्य और हरा चारा खिलाने के संबंध में रोचक जानकारियां

Spread the love

Animal health | Green Fodder Feeding | पशु स्वास्थ्य और हरा चारा खिलाने के संबंध में रोचक जानकारियां

Green-food-for-Animal-aqwe.jpg
Animal health | Green Fodder Feeding | पशु स्वास्थ्य और हरा चारा खिलाने के संबंध में रोचक जानकारियां

पशु चारा उत्पादन के विषय में रोचक जानकारियां

मनुष्यों की तरह पशुओं के लिए भी संतुलित आहार का विशेष महत्व है। मनुष्य को अपनी उन्नति एवं स्वस्थ मन, स्वस्थ तन एवं धन के लिए अपने पशुओं व खेतों की देख रेख एवं परिश्रम जरूरी है जिससे पशुओं को जीवित रहने, बृद्वि करने, कार्य करने एवं उत्पादन हेतु चारे-दाने की आवश्यकता होती है।

ज्ञातव्य हो कि मनुष्यों की तरह पशुओं के लिए भी संतुलित आहार का विशेष महत्व के मनुष्यों के पशुओं के आहार में वे सभी पोषक तत्व मौजूद होने चाहिए जिससे पशुओं की वृद्वि एवं उत्पादन पर्याप्त हो ताकि पशुपालक को अधिक से अधिक लाभ हो सके।

Green-food-for-Animal-1.jpg

प्रायः पशुओं को जो चारा खिलाया जाता है उसमें ऊर्जा (कार्बोहाईड्रेट), प्रोटीन, खनिज-लवण तथा विटामिनों की कमी रहती है जिसके परिणाम स्वरूप न केवल वृद्वि के घटने, उत्पादन की अवस्था में देर से आने और कम दूध देने के रूप में हानि होती है बल्कि कभी-कभी इससे कीमती पशुओं में ऐसे रोग भी उत्पन्न हो जाते हैं जो उनके लिए जानलेवा सिद्ध हो सकते हैं।

अतः पशुओं का आहार ऐसा होना चाहिए जिसमें कार्बोहाईड्रेट, प्रोटीन, वसा, विटामिन एवं खनिज-लवण उचित मात्रा में उपलब्ध हो।
पशुओं को स्वस्थ रखने में हरे चारा का विशेष महत्व है। हरा चारा सुपाच्य एवं रूचिकर होने के कारण पशुओं के लिए स्वास्थ्यवर्धक एवं उनके उत्पादन को बढ़ाने में सहायक होता है।

हरे चारे का महत्व कुछ रूप से समझा किये जा सकते है
 हरे चारे स्वादिष्ट ओर पौष्टिक होते हैं और पशु उसे बड़े चाव से खाते है।
 हरे चारे में प्रोटीन/फॉस्फोरस उचित मात्रा में उपलब्ध होने से उत्पादन बढ़ता है।
 हरा चारा शीघ्र हजम हो जाता है, अतः इनको खिलाने से पाचन क्रिया ठीक रहती है।
 हरे चारे में विटामिन ‘ए‘ की प्रचुरता रहती है जिससे पशु का स्वास्थ्य अच्छा रहता है और संक्रामक रोगों से बचाव रहता है।
 हरे चारे को हरी दशा में सम्पूर्ण तत्वों सहित ‘साइलेज‘ तथा ‘हे‘ के रूप में सुरक्षित रखा जा सकता है और किसी भी समय आवश्यकता पड़ने पर पशु को पौष्टिक चारों से भरपूर आहार खिलाया जा सकता है।
 दाने की अपेक्षा हरे चारे में पौष्टिक तत्व कम खर्च पर उपलब्ध हो जाते है।
 हरे चारे में नमी की अधिकता से शरीर को पर्याप्त मात्रा में पानी मिल जाता है। जिससे शरीर की आन्तरिक क्रियाएँ सुचारू रूप से संचालित रहती है।
 उन्नतशील हरे चारों की कई कटिंग्स होती है जिससे पशुओं को एक ही किस्म के चारे से पर्याप्त चारा मिल जाता है। बरसीम, लूसर्न (रिजका), जई, एम.पी. चरी, मक्का, बाजरा, ग्वार, लोविया, सोयाबीन, नैपियर, पारा घास, आदि पौष्टिक एवं उन्नतशील हरे चारे हैं।
 हरा चारा खिलाने से दो व्यातों के बीच का अंतर भी कम हो जाता है।
 हरा चारा खिलाने से दुधारू पशुओं की दुग्धोत्पादन क्षमता बढ़ जाती है तथा कार्यशील पशुओं की कार्यक्षमता भी बढ़ जाती है।

हरे चारे का संरक्षण कैसे करें
पशुओं के लिए वर्ष भर हरे चारे की आवश्यकता होती है परन्तु पूरे वर्ष हरा चारा या घास, सिंचित भागों को छोड़कर अन्य स्थानों पर उपलब्ध नहीं होते है। इसलिए जब आपके पास हरी घास/चारा पर्याप्त मात्रा (आवश्यकता से अधिक) में उपलब्ध हो तब उसे संरक्षित यानि जमा कर ले और जब हरे चारे/घास की कमी हो (ग्रीष्म ऋतु में), तब उसे प्रयोग में लाना चाहिए। कुसमय में पशुओं को खिलाने के लिए निम्नलिखित विधियों से भंडारित किया हुआ चारा सुरक्षित रखा जा सकता है-
1. साइलेज के रूप में
2. हे के रूप में
1. साइलेज के रूप में
साइलेज या चारे का आचार हरे चारे की कुट्टी काटकर आक्सीजन रहित टावर या पक्के गड्ढे़ में लगभग 2-4 महीना दबाकर बनाया जाता है। मक्का, ज्वार, बाजरा आदि साइलेज बनाने के लिए सर्वोत्तम चारे है। साइलेज बनाने के लिए इन हरे चारों की कटाई फूल आने से पहले कर लें और धूप में थोड़ा सूखा लें, इससे पानी मात्रा घट जाएगी। इसके बाद 1 इंच से 1.5 इंच लम्बी कुट्टी काट लें। इसके बाद गड्ढे़ में पॉलीथीन/प्लास्टिक बिछा दें। तत्पश्चात कटे हुए हरे चारे को डालकर अच्छी तरह दबाते जायें ताकि उसमे मौजूद हवा बाहर निकल जाये। अब पॉलीथीन/प्लास्टिक को मोड़कर ढ़कने के बाद ऊपर से मिट्टी डालकर गोबर से लेप दें। इससे फायदा यह होता है कि उसके भीतर की हवा बाहर निकल जाती है और हरा चारा बिना सडे़ साइलेज के रूप में बदल जाता है। साइलेस को स्वादिष्ट बनाने के लिए उसमें परत दर परत शीरा (मोलासिस) और थोड़ा नमक छिड़क कर दबाते जायें इससे साइलेज मुलायम और स्वादिष्ट हो जाता है।

2. हे के रूप में
हरा चारा (घास) को फूल आने के पहले, उसमे उपस्थित आवश्यक तत्वों के हृस के बिना ही सुखाकर रखने की विधि को हे बनाना कहते हैं। हे बनाने के लिए हरे चारे को फूल आने के पहले काट लें उसके बाद अपने खेत में बॉस का बाड़ा बनाकर उस पर हरी घास को डाल दें। धूप और हवा से यह धीरे-धीरे सूख जाएगी। उसे उतना ही सूखायें जिससे उसका हरापन बना रहे और नमी खत्म हो जाए। हे में 15 प्रतिशत से अधिक नमी नहीं रहनी चाहिए नही ंतो घास सड़ने लगती है हे के लिए बरसीम, जई, लोबिया, सूडान घास आदि उपयुक्त फसले हैं। ऐसी घास को सूखी घास (हे) कहते है।
प्रचलित एवं व्यंवहारिक रूप से किसानों द्वारा उगाये जाने वाले हरे चारे की फसलों एवं उनके उत्पादन की विधियां के संबध में जानकारी –

बरसीम की खेती के संबंध में रोचक जानकारियां
जलवायु
बरसीम की बुआई तथा विकास के लिए 25 डिग्री सेंटीग्रड तापमान उपयुक्त रहता है।
भूमि
दोमट भूमि जिसकी जल निकास धारण क्षमता हो।
भूमि की जुताई
एक गहरी जुताई करके दो तीन बार हल्की जुताई करके मिट्टी को भुरा-भुरा तथा समतल बना लेना चाहिए।
खाद
10 टन कम्पोस्ट प्रति हेक्टेयर।
प्रजातियां
बरदान, मैस्कावी, बुंदेलखंड बरसीम, जे. एच. टी. वी. 146, वी. एल. 22 एवं यू.पी.वी. 103 है।
बीजदर
25 से 30 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर। जब खेत में पहली बार बरसीम बोई जा रही हो तो 10 किलोग्राम बीज को 200 ग्राम बरसीम कल्चर से उपचारित कर लेना चाहिए।
बुआई का समय
15 अक्टूबर से 15 नवम्बर तक ठीक रहता है।
उर्वरक
बरसीम हेतु 20 किलोग्राम नाइट्रोजन, 80 किलोग्राम फास्फोरस, 60 किग्रा0 पोटास प्रति हेक्टेयर।
सिंचाई
सिंचाई बीज के अंकुरित होने के तुरन्त बाद एवं प्रत्येक सप्ताह के अंतर पर दो-तीन सिंचाई करनी चाहिए। इसके बाद प्रति दो सप्ताह पर दो-तीन सिंचाई करनी चाहिए। इसके बाद 20 दिन के अंतराल पर सिंचाई करनी चाहिए।
कटाई
चार-पांच कटाई करते हैं। पहली कटाई 45 दिन बाद करनी चाहिए। इसके बाद कटाई दिसम्बर एवं जनवरी में 30 से 35 दिन बाद करते है, तथा फरवरी में 20 से 25 दिन बाद करते है।
उपजः- हरा चारा 800 से 1000 कुन्तल प्रति हेक्टेयर प्राप्त होता है।

Dhami Sarkar की शक्त चेतावनी | अध्यादेश में दोषियों के विरूद्ध सख्त प्रावधान- न्यूनतम 10 वर्ष के कारावास तथा न्यूनतम 10 लाख जुर्माने का प्रावधान

जई की खेती के संबंध में रोचक जानकारियां
भूमिः- अच्छे जल निकास वाली बलुई दोमट भूमि जई की खेती के लिए उपयुक्त होती है।
भूमि की तैयारीः- एक गहरी जुताई तथा दो बार कल्टीवेटर से जुताई कर मिट्टी को भुर-भुरी कर देना चाहिए।
प्रजातिया
कैंट, यूपीओ 94, यूपीओ 212, जेएचओ-851
बीज दर
100-120 किग्रा0 प्रति हेक्टेयर।
बुआई का समयः- दिसम्बर से लेकर मार्च तक कर सकते हैं। इसके अलावा 20 अक्टूबर से 10 नवम्बर में भी इसकी कर सकते हैं।
बीजषोधन
थीरम या कार्बेन्डाजिम 50 प्रतिशत 2 से 2.5 ग्राम प्रतिकिलोग्राम।
उर्वरक
80ः40ः30 किलोग्राम नाईट्रोजन, फास्फोरस एवं पोटास।
सिंचाई
3 से 4 सिंचाई 15 से 20 दिनों के अंतर पर करनी चाहिए। सर्दियों में 30 दिन अंतर पर सिचांईयों की जरूरत होती है।
कटाई
50-55 दिन बाद पहली कटाई लेनी चाहिए, फिर एक माह के बाद दूसरी कटाई लेना अपयुक्त है।
उपज
500 कुन्तल प्रति हेक्टेयर हरा चारा प्राप्त होता है।

 

नैपियर घास की खेती के संबंध में रोचक जानकारियां

नैपियर घास चारे कुल की फसल है। इस बहुवर्षीय फसल से 02-03 वर्ष तक पौष्टिक हरे चारे का उत्पादन लिया जा सकता है।
जलवायु
इसके लिए 800-1000 मिमी. वार्षिक वर्षा पर्याप्त है। 25-35 डिग्री सेंटीग्रेट तापक्रम पर यह अच्छा उत्पादन देता है।
भूमि
इसका उत्पादन लगभग सभी प्रकार की मृदा जिनका पीएच- 6.0 से 8.0 तक है, किया जा सकता है। नैपियर का उत्पादन जल भराव या बाढ़ग्रस्त क्षेत्रों में अच्छा नहीं होता।
भूमि की तैयारी
खेत की तैयारी के लिए बरसात से पूर्व जुलाई तथा बोने से पूर्व 03-04 जुताई करके मृदा को अच्छी तरह से भुर-भुरा कर लेना चाहिए। गोबर की सड़ी खाद को अन्तिम जुताई से पूर्व खेत में अच्छी तरह से मिला देना चाहिए।
उचित जल निकासी व सिंचाई के लिये 60 सेमी की दूरी पर 25 सेमी ऊँची मेड़ बनाकर बुआई का अच्छा परिणाम होता है।
खाद एवं उर्वरक
25 टन/हेक्टेयर गोबर की सड़ी खाद 100ः50ः50 किग्रा/हेक्टेयर एन. पी. के. आवश्यक होता है।
प्रजाति
बाएफ नैपियर 10, सी0ओ0-3, सी0ओ0-4, सी0ओ0-5
बीज दर एवं अंतरण
60 ग 60 सेन्टीमीटर पौधे से पौधे की दूरी एक हेक्टेयर में लगभग 3000 कटिंग/टुकड़े की आवश्यकता होती है।
पौध रोपड़
नैपियर की कटिंग का रोपण प्रायः बरसात के प्रारम्भ में किया जाता है, किंतु सिंचाई की सुविधा उपलब्ध होने पर अक्टूबर तक तथा पुनः फरवरी से प्रारम्भ किया जा सकता है। 2 गांठ वाली 6 से 8 इंच लम्बी कलम की तिरछी दशा (45 अंश कोण पर) मेंडो पर 60 सेंटीमीटर की दूरी पर इस प्रकार लगाना चाहिए कि कम से कम 1 गांठ जमीन के अंदर रहे। रोपण के बाद कटिंग को मिट्टी से कस कर दबा देते हैं।
छिड़काव
प्रत्येक कटाई के बाद 70-75 किग्रा/हेक्टेयर की दर से यूरिया का छिड़काव खेत में करने से अगली कटाई के लिये उत्तम चारा प्राप्त होता है।
सिंचाई एवं जल निकास
अच्छे उत्पादन के लिये जल निकास की बेहतर व्यवस्था करनी चाहिए। जल भराव से फसल सूखने/गिरने का भय रहता है। बरसात न होने की दशा में पहली सिंचाई रोपाई के समय करना चाहिए। वर्षा ऋतु में 15 दिन के अंतर पर तथा ग्रीष्म ऋतु में 7 दिन के अंतर पर सिंचाई पर्याप्त होती है।
खर पतवार नियंत्रण
रोपण के 30 दिन बाद निकाई-गुड़ाई करना चाहिए। पुनः खर-पतवार के नियंत्रण उसकी बढ़ोत्तरी के हिसाब से करना चाहिए।
कटाई
पहली कटाई पौध रोपण के 70-75 दिन बाद की जाती है। तत्पश्चात् 30 से 45 दिन पर कटाई करते रहना चाहिए। अधिक उत्पादन प्राप्त करने के लिए चारे को जमीन से 1.5 से 2 इंच ऊपर एक गॉठ को छोड़कर काटना चाहिए।
उत्पादन
एक हेक्टेयर में 1500 कुन्तल से 1800 कुन्तल प्रति वर्ष हरा चारा एकल फसल से प्राप्त होता है। इसकी बढ़त शीत ऋतु में कम होती है।

ध्यान देने योग्य बातें

फरवरी से मई के मध्य उत्पादन अच्छी सिंचाई सुविधा होने पर होती है।
हर तीसरी कटाई के बाद मृत पौधों को हटाना तथा जड़ों पर मिट्टी चढ़ाना आवश्यक होता है।
फसल तीन वर्षों तक ही आर्थिक फायदेमंद है उसके पश्चात् नया रोपण करें।
पौध रोपण के समय कटिंग के चारों ओर की मिट्टी अच्छी तरह से दबा देना जरूरी है।

बाजरा की खेती के संबंध में रोचक जानकारियां
शुष्क कृषि क्षेत्रों के लिए बाजरा सबसे उपयुक्त फसल है। यह तेजी से बढ़ने वाली कम अवधि की फसल है जो 50 से 60 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसमें सूखा और गर्मी सहन करने की क्षमता होती है।
मिट्र्टी और जलवायु
बाजरा की खेती विभिन्न प्रकार की मिटटी में सफलतापूर्वक की जा सकती है। यह बलुई दोमट, लाल, रेतीली और मध्यम काली मिट्टी में उगाया जाता है। बीज कम नमी में अंकुरित होते है। खेत उपजाऊ एवं समतल होने चाहिए क्योंकि पानी का रुकना हानिकारक है। गर्म और शुष्क मौसम के साथ रुक-रुक कर हुई बारिश के बाद तेज धूप फसल के विकास के लिए अच्छी है। अधिक नमी की अवस्था में भी व्यापक और गहरी जड़ होने के कारण, फसल खड़ी अवस्था में रहती है।
भूमि की तैयारी
एक जुताई के बाद दो बार पाटा लगाकर जोताई करना पर्याप्त है। जमीन तैयार करके उसमें बीज बुआई के लिए मेड़ियॉं बनाएं।
प्रजाति
बाएफ बाजरा-1, रासी-1827, बायर-9444, हाइब्रिड पूसा-145, कावेरी सुपर बॉस बाजरा, श्री राम- 8494
बीज की बुआई
बीज दर 10 किग्रा/हेक्टेयर पर्याप्त है। फरवरी से लेकर सितम्बर तक इसकी बुआई चलती रहती है। बुआई मे पंक्ति से पंक्ति की दूरी 25 से 30 सेमी बनाये रखें। बीज उपचार हेतु एजै़टोबैक्टर 250 ग्राम /10 किग्रा बीज के लिए प्रभावी होता है।
फसल मिश्रण
पौष्टिक चारे का उत्पादन करने के लिए बाएफ बाजरा-1 को लोबिया के साथ उगाया जा सकता है। लोबिया के दो पंक्तियों के साथ इसकी भी दो पंक्तियॉं बोई जा सकती हैं।
खाद और उर्वरक
अन्तिम जुताई से पहले 15 मीट्रिक टन/ हेक्टेयर की दर से गोबर की खाद डालें। 40ः40ः40ः किग्रा के दर से नाइट्रोजन, फास्फोरस एवं पोटास/हेक्टेयर बोवाई के समय खेत में डालना चाहिए। बुआई के एक महीने बाद सिंचाई करके 40 किलो नाईट्रोजन/हेक्टेयर डालें । अच्छा उत्पादन लेने के लिए प्रत्येक कटाई के बाद सिंचाई करके 40 किलो नाईट्रोजन/हेक्टेयर डालना चाहिए।
सिंचाई
मानसून के दौरान उगाई जाने वाली फसल को आमतौर पर किसी सिंचाई की आवश्यकता नही होती है। शुष्क परिस्थितियों में फसल बढ़ने की अवधि में फसल की सिंचाई भारी मिट्टी मे 12 से 15 दिन और हल्की मिट्टी मे 8 से 10 दिन के अन्तराल पर करें।

निराई-गुड़ाई
फसल की अच्छी बृद्वि के लिए बुवाई के तीन सप्ताह बाद हाथ से निराई-गोड़ाई करना आवश्यक है। खरपतवार नियन्त्रण के लिए 2 किग्रा एट्राजीन मे 1 किग्रा 2-4 डी रसायन मिलाकर/हेक्टेयर मे अच्छी तरह छिड़काव करना चाहिए।

कटाई
बाजरे की फसल को केवल एक कट लेने के लिए 50 प्रतिशत फूल आने की अवस्था में काटा जाना चाहिए। मल्टीेकट (कई कटाई) लेने हेतु, प्रथम कट, बुआई के 50 से 55 दिनों के बाद और बाद में 40 से 45 दिनों के अन्तराल पर कटाई करनी चाहिए।
हरा चारा उपज
सिंगल कट से 40 से 50 मीट्रिक टन/हेक्टेयर और तीन कट से 85 से 90 मीट्रिक टन प्रति हेक्टेयर उत्पादन होता है।
चारे मे पोषक तत्व
शुष्क पदार्थ 18 से 20 प्रतिशत एवं क्रूड प्रोटीन 8 से 9 प्रतिशत होता है।

नोट- एक वयस्क दुधारू पषु के लिए 30 से 40 किग्रा प्रतिदिन हरे चारे की आवष्यकता होती है।

मक्का के चारे की खेती के संबंध में रोचक जानकारियां
भूमि
अच्छे जल निकास वाली बलुई दोमट भूमि इसकी खेती के लिये उपयुक्त होती है।
भूमि की तैयारी
एक गहरी जुताई तथा दो बार कल्टीवेटर से जुताई कर मिट्टी को भुर-भुरी कर देना चाहिए।
प्रजातियां
अफ्रीकनटाल, जे 1006 एवं प्रतापचारा।
बीजदर
40-50 किलो0 प्रतिहेक्टर, सहफसली खेती करने पर मक्का 30-40 किलो तथा लोबिया 15-20 किलोग्राम।
बीज का षोधन
थीरम या एग्रोसेन 2.5-3 ग्राम / किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करना चहिए।
बुआई का समय
खरीफ जुन से जुलाई , रबीः अक्टूबर के प्रथम पखवारा से नवम्बर तक करना चाहिए।
सिचाई
आवश्कतानुसार फसल को 15-20 दिन के अंतराल पर पानी देना चाहिए। फसल को 3-4 सिंचाई की आवश्कता होती है।
कटाई
50-55 दिन बाद पहली कटाई लेनी चाहिए, फिर एक माह के बाद दुसरी कटाई लेना उपयुक्त है।
उपज : हरे चारे की औसत उपज 400- 500 कुन्तल प्रति हेक्टेयर होती है।


Spread the love

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

RTE Samagra Shiksha – Uttarakhand Education Samagra Shiksha RTE ki full form right to education Amazing Sale Hurra hu Amazing Kids colle Ovince St. Preux returns with a bang with Kennedy Nzechukwu Tutu a little Monkey टूटू एक छोटा सा बंदर; दादाजी के शब्दों ने दादी को सोचने पर मजबूर कर दिया #story