Nakshatra Vatika A Brief Introduction Download PDF Format | नक्षत्र वाटिका एक संक्षिप्त परिचय
नक्षत्र वाटिका एक संक्षिप्त परिचय
आध्यात्मिक, प्राकृतिक और सांस्कृतिक विरासत के प्रतीक के रूप में राजभवन देहरादून में ”नक्षत्र वाटिका“ की स्थापना की गई है। प्राचीन काल से धरती के ऊपर आकाश को 360 डिग्री में बाँटा गया है। यदि हम 360 डिग्री को 27 भागों में बाँटते हैं तो इसकी प्रत्येक इकाई 13.33 डिग्री (13 डिग्री 20 मिनट) के रूप में आती है। इस प्रत्येक इकाई का एक नक्षत्र बनाया गया है। अब यदि 360 डिग्री को 12 भागों (राशियों) में बांटते हैं तो प्रत्येक राशि चि 30 डिग्री के रूप होता है। जिसे हम 12 अलग-अलग राशियों के नाम से जानते हैं।
प्रत्येक नक्षत्र को 4 चरण या पाद में समान रूप से विभाजित किया जाता है। इन नक्षत्रों की पहचान आसमान के तारों की स्थिति व विन्यास से की जाती है। जिस प्रकार समुद्र में प्रवाह मान जहाज की स्थिति देशांतर रेखा व्यक्त करती है उसी भांति पृथ्वी के निकट भ्रमण पिण्डों (ग्रहों) की स्थिति नक्षत्रों द्वारा व्यक्त की जाती है। नक्षत्र वाटिका में इन्हीं 27 नक्षत्रों से संबन्धित 27 पौधों को स्थान दिया गया है जो कि भारतीय आध्यात्म, प्राचीन ज्ञान और प्रकृति संरक्षण का अनूठा मिश्रण है।
इन्हीं 27 नक्षत्रों के माध्यम से भारतीय ज्योतिष में नवग्रहों और 12 राशियों की स्थिति और चाल का आंकलन किया जाता है। प्रत्येक ग्रह एवं राशि के लिए भी एक वनस्पति अथवा पौधे की पहचान की गई है। इसीलिये वाटिका में 9 ग्रहों, 12 राशियों से संबधित पौधों तथा त्रिगुणात्मक देव के प्रतीक के रूप में तीन पौधों, कुल 51 पौधों को स्थान दिया गया है। इन नक्षत्रों, ग्रहों तथा राशियों से सम्बन्ध रखने वाले वृक्षों के नाम आयुर्वेदिक, पौराणिक, ज्योतिषीय ग्रन्थों में मिलते है। इन ग्रन्थों में वर्णन है कि जन्म नक्षत्र के वृक्ष की सेवा व वृद्धि करने से मनुष्य का कल्याण होता है।
ऐसा माना जाता है कि प्रत्येक व्यक्ति को उसके नक्षत्र एवं राशि से सम्बन्धित पौधे को लगाकर उसकी देखभाल करनी चाहिए। यह भी माना जाता है कि यह सभी वृक्ष प्रजातियाँ अन्य प्रजातियों की तुलना में अधिक ऑक्सीजन प्रदान करती हैं और इसलिए इन वृक्षों के पास बैठने से सकारात्मक ऊर्जा उत्पन्न होती है। इन वृक्षों की प्रजातियाँ एंटीऑक्सीडेन्ड, फ्लेवोनोइड, तारपीन व टैनिन नामक द्वितीयक चयापचयों (Secondary metabolites) से समृद्ध हैं और इनका प्रयोग पारम्परिक उपचार प्रणालियों में व्यापक रूप से किया जाता है। राजभवन नक्षत्र वटिका के रूप में इन प्रजातियों के संरक्षण से जैव विविधता को समृद्ध करने की अनुपम पहल है।
नक्षत्रों के वृक्षों का संक्षिप्त परिचय
1. कुचिला- मध्यम ऊँचाई का वृक्ष जो मध्य भारत के वनों में पाया जाता है। इसके टिकियानुमा बीजों में स्थित विष बहुत औषधीय महत्व का होता है।
2. आंवला- इसके फल को अमृत फल कहा गया है, जो विटामीन ‘सी’ का समृद्धतम् स्रोत है।
3. गूलर- बड़े आकार का छायादार वृक्ष है। शुक्रगृह की शान्ति में इसकी समिधा प्रयुक्त होती है।
4. जामुन- बहते जल क्षेत्रों के नजदीक आसानी से उगने वाला यह वृक्ष मधुमेह की श्रेष्ठतम औषधि है।
5. खैर- मध्यम ऊँचाई का कांटेदार वृक्ष है, जिसकी लकड़ी से कत्था बनता है।
6. अगर- भारत में यह उत्तर भारत के पूर्वी हिमालय के आस-पास पाया जाता है।
7. बांस- इसे गरीब की ”इमारती लकड़ी“ कहते हैं।
8. पीपल- अति पवित्र वृक्ष है और भगवान बुद्ध को इसी वृक्ष के नीचे बोधि प्राप्त हुई थी।
9. नागकेसर- मुख्य रूप से आसाम के आर्द्र क्षेत्रों में प्राकृतिक रूप से उगने वाला वृक्ष है, जिसकी लकड़ी अत्यधिक कठोर होती है।
10. बरगद- बट वृक्ष सावित्री व्रत में महिलाओं द्वारा पूजा जाने वाला बहुत बड़ा छायादार वृक्ष है।
11. ढाक- सूखे व बंजर क्षेत्रों में उगने वाला मध्यम ऊँचाईं वाला वृक्ष है, जिसके फूलों से होली पर केसू का रंग बनता है। इसे ”वन ज्वाला“ (फ्लेम आफ द फारेस्ट) भी कहते है।
12. पाकड़- घनी शीतल छाया देने के लिये प्रसिद्ध वृक्ष।
13. चमेली- यह फूल-झाड़ी या बेल जाति से संबंधित है। भारत में इसकी 40 प्रजातियां अपने नैसर्गिक रूप में उपलब्ध है।
14. बेल- कठोर कवच के फल वाला मध्यम ऊँचाई का वृक्ष जिसकी पत्तियां शिवजी की पूजा में चढ़ाई जाती है।
15. अर्जुन- जलमग्न या ऊँचे जलस्तर वाले क्षेत्रों में आसानी से उगने वाला वृक्ष है। जिसकी छाल हृदय रोग की श्रेष्ठतम औषधि है।
16. हर श्रृंगार- इसे शेफाली, शिउली आदि नामो से भी जाना जाता है। इसका वृक्ष 10 से 15 फीट ऊँचा होता है। छायादार शोभाकार वृक्ष है।
17. मौलश्री- यह छायादार शोभाकार वृक्ष है।
18. सेमल़- सामान्यतः ‘कॉटन ट्री’ कहा जाता है। इसके लाल पुष्प की 5 पंखुड़ियाँ होती हैं। ये वसंत ऋतु के पहले ही आ जाती हैं।
19. साल- प्रदेश के तराई भांवर क्षेत्र में प्राकृतिक रूप से उगने वाला अति महत्वपूर्ण प्रकाष्ठ वृक्ष।
20. सीता अशोक- यह वृक्ष मूलरूप से स्त्रीजनक रोगों के लिए रामबाण है। इसके अलावा सांस संबंधी बीमारी में भी इसका उपयोग किया जाता है।
21. कटहल- मध्यम ऊँचाई का वृक्ष जिसके बृहद् आकार फल की सब्जी खाई जाती है।
22. मदार- बंजर शुष्क भूमि पर उगने वाली झाड़ी प्रजाति है।
23. शमी- छोटे कांटों वाला छोटी ऊँचाई का वृक्ष है, जिसे उत्तर प्रदेश में छ्योंकर व राजस्थान में खेजड़ी कहते है।
24. कदम्ब- भगवान कृष्ण की स्मृति से जुड़ा वृक्ष है जो आर्द्रक्षेत्रों में आसानी से उगता है।
25. नीम- ‘‘गांव के वैद्य’’ नाम से प्रसिद्ध औषधीय महत्व का वृक्ष है।
26. आम- भारत में फलों के राजा के नाम से प्रख्यात है।
27. महुआ- शुष्क पथरीली व रेतीली भूमि में उगने वाला वृक्ष। गरीबों में उपयोगिता के कारण इसे ”गरीब का भोजन“ नाम की उपमा दी जाती है।