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Vyas Temple संस्कृत भाषा का पुनरुत्थान: उत्तराखंड सरकार के प्रयास और मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी का योगदान

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Vyas Temple संस्कृत भाषा का पुनरुत्थान: उत्तराखंड सरकार के प्रयास और मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी का योगदान

Vyas Temple : संस्कृत, जिसे देववाणी कहा जाता है, न केवल भारत की प्राचीनतम भाषा है, बल्कि यह मानव सभ्यता की नींव रही है। इसके माध्यम से न केवल वेद, पुराण और उपनिषद जैसे धार्मिक ग्रंथ लिखे गए, बल्कि विज्ञान, गणित, खगोलशास्त्र और चिकित्सा विज्ञान की भी रचना की गई। संस्कृत भाषा के बिना भारतीय संस्कृति, सभ्यता और धर्म की कल्पना करना कठिन है। उत्तराखंड, जिसे देवभूमि के नाम से जाना जाता है, संस्कृत के संरक्षण और इसके पुनरुत्थान में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री श्री पुष्कर सिंह धामी ने राज्य में संस्कृत के प्रचार-प्रसार और इसे एक व्यवहारिक भाषा के रूप में पुनः स्थापित करने के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। Vyas Temple

हाल ही में देहरादून के भूपतवाला में वेद व्यास मंदिर में आयोजित ‘अखिल भारतीया गोष्ठी’ के शुभारंभ सत्र में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने देशभर से आए संस्कृत विद्वानों का स्वागत किया और संस्कृत के महत्व को रेखांकित किया। इस अवसर पर उन्होंने राज्य सरकार द्वारा संस्कृत भाषा के संरक्षण और प्रचार-प्रसार के लिए उठाए गए कदमों का भी उल्लेख किया।

संस्कृत भाषा का महत्व

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने अपने भाषण में कहा कि संस्कृत भाषा न केवल अभिव्यक्ति का साधन है, बल्कि यह मनुष्य के संपूर्ण विकास की कुंजी भी है। संस्कृत से ही भारतीय सभ्यता और संस्कृति की नींव रखी गई। संस्कृत का महत्व केवल धार्मिक या सांस्कृतिक क्षेत्र में ही नहीं, बल्कि विज्ञान, खगोलशास्त्र, चिकित्सा विज्ञान और गणित जैसे क्षेत्रों में भी रहा है।

वेद, पुराण, उपनिषद, महाभारत, रामायण और योगसूत्र जैसे ग्रंथ संस्कृत में ही लिखे गए थे। इन ग्रंथों में भारतीय जीवन और ज्ञान का सार छिपा हुआ है। संस्कृत ने हजारों वर्षों तक भारतीय शिक्षा, विचार और दर्शन को आकार दिया। संस्कृत भाषा के माध्यम से ही भारतीयों ने पंचांग, ग्रहों और नक्षत्रों की जानकारी प्राप्त की।

संस्कृत भाषा की संरचना और इसकी शब्दावली अत्यधिक समृद्ध है। मुख्यमंत्री धामी ने बताया कि विष्णु सहस्रनाम, ललिता सहस्रनाम और शिव सहस्रनाम जैसे ग्रंथ केवल संस्कृत में ही संभव हैं, क्योंकि इस भाषा में एक ही नाम के हजारों पर्यायवाची होते हैं। यह भाषा न केवल साहित्यिक रूप से समृद्ध है, बल्कि वैज्ञानिक रूप से भी अत्यधिक प्रभावी मानी जाती है।

उत्तराखंड में संस्कृत का पुनरुत्थान

उत्तराखंड सरकार ने राज्य में संस्कृत को पुनर्जीवित करने के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। मुख्यमंत्री धामी ने बताया कि राज्य सरकार ने संस्कृत को बढ़ावा देने के लिए कई पहल की हैं। उत्तराखंड में संस्कृत को द्वितीय राजभाषा के रूप में मान्यता दी गई है। राज्य सरकार इस भाषा के संरक्षण और इसके अधिक से अधिक प्रचार-प्रसार के लिए गंभीरता से प्रयास कर रही है।

मुख्यमंत्री ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के अंतर्गत प्रदेश में कक्षा 1 से 5 तक संस्कृत पाठशालाएं प्रारंभ की जा रही हैं। यह कदम न केवल संस्कृत को भविष्य की पीढ़ी के लिए सुलभ बनाएगा, बल्कि यह उन्हें भारतीय संस्कृति और परंपराओं से भी जोड़ने में सहायक होगा। इसके अलावा, राज्य के विभिन्न बस स्टेशन, रेलवे स्टेशन और हवाई अड्डों पर हिंदी के साथ-साथ संस्कृत में भी संकेतक बोर्ड लगाए जा रहे हैं।

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मुख्यमंत्री ने बताया कि गैरसैंण में आयोजित विधानसभा सत्र के दौरान संस्कृत संभाषण शिविर का आयोजन किया गया, जिसमें सभी मंत्रियों, विधायकों और अधिकारियों को संस्कृत बोलने के लिए प्रेरित किया गया। यह एक महत्वपूर्ण कदम है, क्योंकि जब राज्य के प्रमुख व्यक्ति और अधिकारी इस भाषा को अपनाएंगे, तो सामान्य जनता भी इसका अनुसरण करेगी।

संस्कृत भारती का योगदान

संस्कृत भारती एक ऐसा संगठन है, जो संस्कृत भाषा के प्रचार-प्रसार के लिए समर्पित है। यह संगठन न केवल भारत में, बल्कि दुनिया के कई अन्य देशों में भी संस्कृत को आम बोलचाल की भाषा बनाने के लिए प्रयासरत है। मुख्यमंत्री धामी ने संस्कृत भारती के प्रयासों की सराहना की और कहा कि इस संगठन के सदस्य संस्कृत भाषा के पुनरुत्थान में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। संस्कृत भारती के माध्यम से आज लाखों लोग संस्कृत सीख रहे हैं और इसे अपने दैनिक जीवन में प्रयोग कर रहे हैं।

संस्कृत भारती का उद्देश्य संस्कृत को केवल एक शैक्षिक विषय के रूप में नहीं, बल्कि एक व्यवहारिक भाषा के रूप में पुनः स्थापित करना है। इस दिशा में संगठन द्वारा चलाए जा रहे विभिन्न शिविर और कार्यशालाएं एक सकारात्मक प्रभाव छोड़ रहे हैं।

संस्कृत और विज्ञान

संस्कृत केवल धार्मिक और साहित्यिक भाषा ही नहीं है, बल्कि यह विज्ञान के क्षेत्र में भी अपनी अहम भूमिका निभाती है। हजारों साल पहले संस्कृत में लिखे गए ग्रंथों ने भारतीय विज्ञान को समृद्ध किया है। खगोलशास्त्र, गणित, और शल्य चिकित्सा जैसे विषयों पर संस्कृत में लिखे गए ग्रंथ आज भी प्रासंगिक हैं।

संस्कृत के माध्यम से भारतीय विद्वानों ने पंचांग तैयार किए और ग्रहों और नक्षत्रों की स्थिति का ज्ञान प्राप्त किया। इसके अलावा, शल्य चिकित्सा पर लिखे गए ग्रंथ आज भी चिकित्सा विज्ञान के लिए एक महत्वपूर्ण स्रोत माने जाते हैं। संस्कृत भाषा में लिखे गए ग्रंथों का अध्ययन करना और उन्हें आधुनिक संदर्भ में प्रयोग में लाना हमारे लिए एक महत्वपूर्ण अवसर हो सकता है।

विदेशी भाषाओं पर संस्कृत का प्रभाव

मुख्यमंत्री धामी ने कहा कि कई यूरोपीय भाषाओं में संस्कृत के शब्दों का प्रभाव देखा जा सकता है। संस्कृत की ध्वनियों और संरचना ने कई भाषाओं को प्रभावित किया है। संस्कृत की समृद्धि और इसके शब्दों की सटीकता के कारण इसे सबसे वैज्ञानिक भाषा माना जाता है।

संस्कृत के स्वर और व्यंजन न केवल संख्या में अधिक होते हैं, बल्कि उनके उच्चारण और अर्थ भी बेहद सटीक होते हैं। संस्कृत भाषा की यह विशेषता अन्य भाषाओं से इसे अलग बनाती है। संस्कृत की शब्दावली इतनी विस्तृत है कि यह किसी भी विचार या भावना को अत्यधिक सटीकता के साथ व्यक्त कर सकती है।

संस्कृत भाषा का संरक्षण और भविष्य

मुख्यमंत्री ने अपने भाषण में कहा कि हमें एकजुट होकर संस्कृत भाषा को पुनः मुख्यधारा में लाने का प्रयास करना चाहिए। यह भाषा केवल प्राचीन समय की धरोहर नहीं है, बल्कि यह आधुनिक समय में भी अत्यधिक प्रासंगिक है। संस्कृत के संरक्षण और इसके प्रचार-प्रसार के लिए सरकार द्वारा उठाए गए कदम भविष्य में इस भाषा को पुनः जीवनदान देंगे।

इसके अलावा, मुख्यमंत्री ने यह भी कहा कि विदेशी आक्रांताओं के शासन के कारण हम संस्कृत से दूर हो गए। अब समय आ गया है कि हम पुनः इस भाषा को अपने दैनिक जीवन का हिस्सा बनाएं और इसे अपनी संस्कृति और परंपराओं से जोड़कर आगे बढ़ाएं।

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संस्कृत का भविष्य और चुनौतियाँ

संस्कृत को पुनः एक व्यवहारिक भाषा के रूप में स्थापित करना एक चुनौतीपूर्ण कार्य है। इस दिशा में सरकार और समाज दोनों को मिलकर काम करना होगा। स्कूलों और कॉलेजों में संस्कृत की शिक्षा को बढ़ावा देना होगा और लोगों को यह समझाना होगा कि यह केवल धार्मिक भाषा नहीं है, बल्कि यह एक व्यवहारिक और वैज्ञानिक भाषा भी है।

संस्कृत के प्रति समाज में जो धारणाएँ हैं, उन्हें बदलने की आवश्यकता है। इसके लिए व्यापक जनजागरण और जागरूकता अभियानों की आवश्यकता है। संस्कृत के महत्व और इसके विभिन्न क्षेत्रों में योगदान को व्यापक स्तर पर प्रचारित किया जाना चाहिए, ताकि लोग इस भाषा के महत्व को समझ सकें और इसे अपने जीवन का हिस्सा बना सकें।

Vyas Temple

संस्कृत भाषा भारत की धरोहर है और इसे संरक्षित और पुनर्जीवित करने की आवश्यकता है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी और उत्तराखंड सरकार द्वारा उठाए गए कदम इस दिशा में एक महत्वपूर्ण प्रयास हैं। संस्कृत केवल एक प्राचीन भाषा नहीं है, बल्कि यह हमारे समाज, संस्कृति, विज्ञान और शिक्षा का मूल आधार है। Vyas Temple

यदि हम इसे पुनः मुख्यधारा में ला सकें, तो यह न केवल भारतीय समाज को समृद्ध करेगा, बल्कि विश्व में भी भारतीय संस्कृति और ज्ञान की धरोहर को पुनः स्थापित करेगा। संस्कृत भाषा के पुनरुत्थान के लिए सरकारी प्रयासों के साथ-साथ समाज की भी महत्वपूर्ण भूमिका है। हमें संस्कृत को पुनः जीवंत बनाने के लिए एकजुट होकर काम करना होगा, ताकि यह भाषा अपनी पूरी महिमा के साथ फिर से चमक सके। Vyas Temple


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