– सुशील कुमार जोश | www.uttrakhandjosh.com
उत्तराखंड सरकार अब शिक्षा को केवल किताबों तक सीमित न रखते हुए, उसे लोक संस्कृति और परंपरा से जोड़ने की एक सार्थक पहल कर रही है। वर्ष 2025–26 से, राज्य के 450 स्कूलों में ‘लोक धुन’ कार्यक्रम शुरू किया जा रहा है जिसके अंतर्गत छात्रों को उत्तराखंड के पारंपरिक वाद्य यंत्रों (Uttarakhand Lok Dhun Yojana 2025) और लोक संगीत की विधिवत ट्रेनिंग दी जाएगी।
इस कार्यक्रम का उद्देश्य बच्चों को अपनी सांस्कृतिक विरासत से जोड़ना, लोक कलाकारों को मंच देना, और स्थानीय परंपराओं के संरक्षण को सुनिश्चित करना है।
नई शिक्षा नीति और भारतीय ज्ञान परंपरा की भूमिका
भारत सरकार ने 2020 में नई शिक्षा नीति (NEP) के माध्यम से यह स्पष्ट कर दिया था कि शिक्षा का उद्देश्य केवल शैक्षणिक योग्यता नहीं, बल्कि भारतीय ज्ञान परंपरा, संस्कृति और मूल्यों का समावेश भी होना चाहिए।
इसी क्रम में देशभर के प्रमुख विश्वविद्यालयों—जैसे बीएचयू और दिल्ली विश्वविद्यालय—ने Hindu Studies जैसे कोर्स शुरू किए। उत्तराखंड सरकार भी इसी दिशा में आगे बढ़ते हुए दून विश्वविद्यालय में “एमए इन हिंदू स्टडीज़” कोर्स शुरू कर रही है।
अब स्कूल स्तर पर भी छात्रों को भारतीय संस्कृति से जोड़ने की दिशा में “लोक धुन कार्यक्रम” एक ऐतिहासिक कदम है।
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‘लोक धुन’ कार्यक्रम का स्वरूप: क्या मिलेगा छात्रों को?
उत्तराखंड के शिक्षा विभाग द्वारा समग्र शिक्षा अभियान के अंतर्गत इस कार्यक्रम की शुरुआत की जा रही है। यह कार्यक्रम शुरुआत में 450 चयनित स्कूलों में लागू किया जा रहा है।
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स्थानीय लोक कलाकार छात्रों को वाद्य यंत्रों जैसे ढोल, दमाऊं, रानसिंघा, हुड़का, मुरली, तुरही, नगाड़ा आदि की ट्रेनिंग देंगे।
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लोकगीतों और लोकनृत्यों की शिक्षा भी दी जाएगी ताकि बच्चे न केवल संगीत से बल्कि कथ्य, परंपरा, पोशाक, बोली और लोक इतिहास से भी परिचित हो सकें।
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कार्यक्रम का उद्देश्य छात्रों में सांस्कृतिक चेतना जागृत करना और लोक कलाकारों को आजीविका के नए अवसर प्रदान करना है।
“राज्य सरकार ने लोक धुन अभियान के जरिए आने वाली पीढ़ियों को अपनी जड़ों से जोड़ने का निर्णय लिया है।”
— कुलदीप गैरोला, अपर निदेशक, राज्य शैक्षिक प्रबंधन एवं प्रशिक्षण संस्थान
लोक कलाकारों के लिए रोज़गार का नया अवसर
“लोक धुन” कार्यक्रम का एक और विशेष पक्ष यह है कि इसके माध्यम से स्थानीय कलाकारों को रोजगार मिलेगा। राज्य के सैकड़ों लोक वाद्य कलाकार जो वर्षों से अपनी कला को जीवित रखने के लिए संघर्ष कर रहे थे, अब स्कूलों में प्रशिक्षक के रूप में अपनी भूमिका निभा सकेंगे।
यह पहल लोककला के संरक्षण के साथ‑साथ स्थानीय आर्थिक सशक्तिकरण का भी माध्यम बन सकती है।
लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी का सराहनीय समर्थन
उत्तराखंड के प्रसिद्ध लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी ने इस योजना का स्वागत करते हुए कहा:
“मैंने कई बार सरकार से आग्रह किया था कि स्कूलों में उत्तराखंड की लोक संस्कृति को पढ़ाया जाए। लोक गीतों में हमारा इतिहास, भूगोल, संस्कृति और संघर्ष छिपा है। बच्चों को अपनी जड़ों से जोड़ना आवश्यक है।”
उनका मानना है कि यह कार्यक्रम केवल संगीत नहीं, बल्कि संस्कृति-शिक्षा का जीवंत पाठ होगा।
बच्चों के लिए सांस्कृतिक आत्मबोध
बच्चों को जब वाद्य यंत्र बजाना, लोकगीत गाना और उसकी पृष्ठभूमि समझने का अवसर मिलेगा, तो वे न केवल एक कला सीखेंगे, बल्कि उसे आत्मसात करेंगे। वे जान पाएंगे कि— Uttarakhand Lok Dhun Yojana 2025
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“ढोल-दमाऊं” की धुनों में किस अवसर का भाव छिपा है,
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लोक गीतों में किस पीढ़ी का अनुभव, व्यथा या उल्लास समाया है,
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उत्तराखंड के पर्व-त्योहारों का क्या सांस्कृतिक महत्व है।
यह सीख बच्चों में संवेदनशीलता, गौरव और सामाजिक जुड़ाव को बढ़ाएगी।
क्यों ज़रूरी है यह पहल आज के समय में?
आज के डिजिटल और ग्लोबल दौर में, स्थानीय भाषाएं, संगीत, और परंपराएं खतरे में हैं। टीवी और मोबाइल की दुनिया ने बच्चों को उनके परिवेश से दूर कर दिया है।
ऐसे में यह कार्यक्रम एक जड़ें पकड़ने वाली शिक्षा की ओर ले जाएगा—जो जरूरी है, न केवल संस्कृति के लिए, बल्कि सामाजिक संतुलन और रचनात्मक विकास के लिए भी।
आगे की योजना Uttarakhand Lok Dhun Yojana 2025
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प्रारंभ में यह कार्यक्रम 450 स्कूलों में चलेगा।
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प्रशिक्षण प्राप्त शिक्षक और लोक कलाकारों की एक टीम गठित की जाएगी।
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प्रदर्शन, लोक उत्सव और सांस्कृतिक दिवस के आयोजन से कार्यक्रम को जीवंत और भागीदारीपूर्ण बनाया जाएगा।
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भविष्य में इसे राज्य के सभी जिलों में विस्तार देने की योजना है।
एक नई सुबह लोक धुन के साथ Uttarakhand Lok Dhun Yojana 2025
‘लोक धुन’ केवल एक कार्यक्रम नहीं, बल्कि सांस्कृतिक पुनर्जागरण की ओर एक सार्थक कदम है। उत्तराखंड के बच्चों को जब उनकी ही धरती के सुर, ताल और कथाओं से रूबरू कराया जाएगा, तो वे न केवल कलाकार, बल्कि संस्कृति के संवाहक भी बनेंगे।
इस योजना से जहां बच्चों में रचनात्मकता बढ़ेगी, वहीं लोक कलाकारों को आत्मसम्मान और रोजगार मिलेगा। यह एक ऐसी पहल है जो उत्तराखंड को उसकी लोक चेतना और सांस्कृतिक पहचान के साथ जोड़कर एक समृद्ध भविष्य की ओर ले जाएगी।