Torn-in-Rumsey केदारघाटी के रुमसी में बादल फटने से भारी तबाही: कृषि भूमि और स्कूल मार्ग क्षतिग्रस्त : ukjosh

Torn-in-Rumsey केदारघाटी के रुमसी में बादल फटने से भारी तबाही: कृषि भूमि और स्कूल मार्ग क्षतिग्रस्त


Torn-in-Rumsey केदारघाटी के रुमसी में बादल फटने से भारी तबाही: कृषि भूमि और स्कूल मार्ग क्षतिग्रस्त

उत्तराखंड, केदारघाटी। उत्तराखंड की केदारघाटी के रुमसी गांव (Torn-in-Rumsey) में बादल फटने की घटना ने ग्रामीणों की जिंदगी को मुश्किल में डाल दिया है। इस प्राकृतिक आपदा ने क्षेत्र में भारी नुकसान पहुंचाया है, विशेष रूप से कृषि भूमि और स्कूल जाने वाले रास्तों को गंभीर क्षति हुई है। घटना के बाद से ग्रामीणों में दहशत का माहौल बना हुआ है, लेकिन अधिकारियों की तत्परता से राहत कार्य तेजी से शुरू किए गए हैं।

घटना का विवरण

आज सुबह 8 बजे, ग्राम प्रधान ने सूचना दी कि रुमसी के देवीदार तोक में बादल फटने के कारण स्कूल का रास्ता और कुछ खेत मलबे से भर गए हैं। इस घटना से किसी की जान नहीं गई, लेकिन मलबे के कारण जूनियर हाईस्कूल का रास्ता और कृषि भूमि आंशिक रूप से क्षतिग्रस्त हो गए हैं। इस प्राकृतिक आपदा ने ग्रामीणों के जीवन को अस्त-व्यस्त कर दिया है।

प्रशासन की त्वरित कार्रवाई

घटना की जानकारी मिलते ही मुख्य विकास अधिकारी डॉ. जीएस खाती, मुख्य कृषि अधिकारी लोकेंद्र सिंह बिष्ट, खंड विकास अधिकारी अगस्त्यमुनि प्रवीन भट्ट, और जिला आपदा प्रबंधन अधिकारी नंदन सिंह रजवार घटनास्थल के लिए रवाना हुए। उन्होंने मौके पर जाकर क्षति का आकलन किया और संबंधित अधिकारियों को निर्देश दिए कि क्षतिग्रस्त कृषि भूमि और स्कूल मार्ग का आकलन प्रस्ताव आपदा प्रबंधन के तहत शीघ्र तैयार किया जाए और मरम्मत कार्य तत्काल शुरू किया जाए।

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प्रभावित क्षेत्र और जनजीवन

केदारघाटी के रुमसी में हुई इस घटना ने ग्रामीणों के जीवन को प्रभावित किया है। खेतों में मलबा आने से किसानों की फसलें बर्बाद हो गई हैं, जिससे उनकी आजीविका पर संकट खड़ा हो गया है। इसके अलावा, स्कूल का मार्ग क्षतिग्रस्त होने से बच्चों की शिक्षा प्रभावित हो रही है। ग्रामीणों का कहना है कि इस तरह की घटनाओं से निपटने के लिए प्रशासन को अधिक तत्परता और तैयारी दिखानी चाहिए।

प्राकृतिक आपदाओं का बढ़ता खतरा

उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में मानसून के दौरान बादल फटना एक आम घटना बन गई है। भारी बारिश और मूसलाधार बारिश के कारण भूस्खलन और जलभराव की घटनाएं भी बढ़ गई हैं। इससे न केवल जनजीवन प्रभावित हो रहा है, बल्कि बुनियादी ढांचे को भी गंभीर क्षति हो रही है। केदारनाथ हाईवे पर नगर पंचायत अगस्त्यमुनि के सौड़ी में खेतों का मलबा सड़क में आने से यातायात बाधित हुआ, जिससे दोनों ओर वाहनों की लंबी कतार लग गई। यात्री खुद पत्थर और मलबा हटाकर यातायात को चालू करने में सफल रहे।

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जलभराव और भूस्खलन की समस्याएं

अगस्त्यमुनि नगर क्षेत्र में जवाहरनगर वार्ड में डिग्री कॉलेज के समीप सड़क में जलभराव होने से तालाब जैसी स्थिति हो गई। यही हाल पुरानादेवल में भी देखा गया, जहां स्कूली बच्चों और पैदल आवाजाही करने वालों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ा। गंगानगर पठालीधार सड़क का भी यही हाल था, जहां पिछली बरसात में वाशआउट हो चुकी सड़क के हिस्से पर मलबा गिरता रहा। वाहन चालकों ने खतरनाक स्थिति को देखते हुए बारिश रुकने के बाद ही मार्ग पर आवाजाही शुरू की।

जनता की मांग और प्रशासन की चुप्पी

इस सड़क की खराब हालत को लेकर जनता पहले भी आंदोलन कर चुकी है। एक वैकल्पिक मार्ग का सुझाव भी दिया गया है, लेकिन अब तक इस पर कोई निर्णय नहीं हुआ है। विभाग सुरक्षित मार्ग को लेकर चुप्पी साधे हुए है और बार-बार वाशआउट हो रही सड़क पर अस्थायी पुश्ते देकर लोगों की जान से खिलवाड़ कर रहा है। ग्रामीणों का कहना है कि प्रशासन को इस मुद्दे पर गंभीरता से विचार करना चाहिए और स्थायी समाधान के लिए कदम उठाने चाहिए।

निष्कर्ष

केदारघाटी के रुमसी में बादल फटने की घटना ने एक बार फिर से यह साबित कर दिया है कि पहाड़ी क्षेत्रों में प्राकृतिक आपदाओं से निपटने के लिए प्रशासन को अधिक तैयार रहना होगा। यह घटना न केवल कृषि भूमि और स्कूल मार्ग को क्षतिग्रस्त करने वाली थी, बल्कि इससे लोगों की जिंदगी पर भी गहरा प्रभाव पड़ा है। प्रशासन की तत्परता और राहत कार्यों की गति ने ग्रामीणों को कुछ राहत दी है, लेकिन इस तरह की घटनाओं से निपटने के लिए दीर्घकालिक और स्थायी उपायों की आवश्यकता है।

स्थानीय प्रशासन को चाहिए कि वे सुरक्षित मार्गों का निर्माण करें और जलभराव एवं भूस्खलन की समस्याओं के समाधान के लिए ठोस कदम उठाएं। इसके अलावा, ग्रामीणों को भी प्राकृतिक आपदाओं के प्रति जागरूक किया जाना चाहिए ताकि वे समय रहते सतर्क हो सकें और अपनी सुरक्षा सुनिश्चित कर सकें।

इस प्रकार, केदारघाटी में बादल फटने की इस घटना ने न केवल प्राकृतिक आपदाओं की गंभीरता को उजागर किया है, बल्कि यह भी बताया है कि प्रशासनिक तत्परता और दीर्घकालिक समाधान ही इन समस्याओं का स्थायी समाधान हो सकते हैं। प्रशासन और जनता को मिलकर इन चुनौतियों का सामना करना होगा ताकि भविष्य में इस तरह की घटनाओं से बचा जा सके और सुरक्षित और समृद्ध समाज का निर्माण हो सके।


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