Thankyou’s Power धन्यवाद आत्मस्वरुप परमपिता परम आत्मा का कि मैं अपने मुंह से उसकी प्रशंसा और धन्यवाद नित्य देता हूं; शायद आप भी
शांति व श्रद्धा का ईश्वर आपको स्वतंत्रा, शांति और प्रगति दे….
धन्यवाद आत्मस्वरुप परमपिता परम आत्मा का कि मैं अपने मुंह से उसकी प्रशंसा और धन्यवाद नित्य देता हूं।
मैं खुश हूं कि मैं ईश्वर द्वारा दिया हुआ उपहार 🎉 मुनष्य जीवन यानी चेतन व समझदार योनि की सांसें का आनंद ले रहा हूं।👍
शायद आप भी ।
Thankyou 🙏 be happy 😃
जिसने भी सत्य की परीक्षा की परम आत्मा ने उसे उसके पैरों तले रौंद डालl।
😃👏😃
सत्य अमर हैं, विजयी हैं, सत्य हमेशा से ही आजादी, शांति, समृद्धि और अनंत जीवन देकर अपनी मेज से स्वर्गीय भोजन यानी आत्मिक भोजन भरपूरी से छक छलका कर बड़े प्यार से खिलाता हैं और अपनी दया और प्रेम से पाक पवित्र कर मनुष्य के मन की मैल से शुद्ध कर और को भी शुद्ध करता हैं जो गंगा नही कर सकती; गंगा तो शरीर यानी तन का ही मैल धो सकती हैं वह भी साबुन से।
खुश रहो 😃 *सत्य के गुण गाते रहो ।
खुश रहो 😃 *सत्य के गुण गाते रहो ।
ईश्वर जो सर्वशक्तिमान हैं ने सत्य की अगुवाई करने वालों के चरणों के तले उपहास, विरोध करने वालों को रौंद कर यानी कुचल कर रख दिया हैं🤪
धन्यवाद आत्मस्वरुप परमपिता परमात्मा का जिसने अपनी शक्ति हमे दी हैं।
इसलिए मैंने तुम्हें चेतन योनि के साथ साथ स्वेच्छा का भी अधिकार दिया हैं
अब जाग जा गलफत की नींद से उठ।
मैंने तेरे दुखों को और तेरे परशर्म को देखा हैं तुझ में शक्ति थोड़ी हैं पर तू मेरी संतान व मेरी प्रजा हैं
इसलिए उस आध्यात्मिक दुष्ट (ज्योतिर्मय सांप/अजगर) से मत डर।
मैंने संसार पर विजय पाई हैं। मुझ पर विश्वास रख और मेरे नाम और मेरे वचन को अपने जीवन में स्वीकर कर। मैं तुम्हें अपनी सामर्थ्य दूंगा और तुम्हारे दुखों का अंत कर दूंगा।
न मैं तुम्हें न छोडूंगा न त्यागूंगा।
मैं तुम्हें अपने दाएं ने हाथ से संभाले रखूंगा
मैं मनुष्य नही हूं कि जो झूठ बोलूंगा
मैं मनुष्य नही हूं कि जो झूठ बोलूंगा
विश्वास कर और अपने मुंह से मेरे वचन बोल तेरा दुश्मन मेरा दुश्मन हैं तेरे पैरों तले रौंद कर रख दूंगा।
मैं निराकार ईश्वर अपनी प्रजा (संतान) से बहुत प्रेम करता हूं।
अब जाग जा गलफत की नींद से उठ।
मैंने तेरे दुखों को और तेरे परशर्म को देखा हैं तुझ में शक्ति थोड़ी हैं पर तू मेरी संतान व मेरी प्रजा हैं
इसलिए उस आध्यात्मिक दुष्ट (ज्योतिर्मय सांप/अजगर) से मैं निराकार स्वर्ग और पृथ्वी को बनाने वाला और तुझे रचने वाला ईश्वर अपनी सामर्थ
श्रापित हैं वे मनुष्य जो मनुष्य यानी शास्त्री, पंडित, नबी, पूजा पाठ, वर्त तीर्थ और प्रधानों पर भरोंसा रखते हैं।
ईश्वर कहता हैं सूरज मेरी ही आज्ञा का पालन करता हैं, चांद सितारे मैंने ही बनाएं हैं मेरे अनुशासन में चलते हैं। धरती, हवा, पानी, आग, नभ यानी आकाश मेरे ही आज्ञा में चल कर तुम्हें जीवन देते हैं।
जो मुझ अविनाश परम प्रतापी को मान कर जान लेगा और मेरे वचन की पालना करेगा वह कभी नाश न होगा।
वह दुनिया के लिए निराकार हैं
वह दुनिया के लिए निराकार हैं
But जिसने उसे वचन द्वारा स्वीकार कर लिया उसके लिए वह चलता फिरता और उसके संग में चलने वाला परम प्रतापी ईश्वर हैं।
वह मनुष्य उसका धाम व निवास स्थान है इसलिए ईश्वर कहता है कि मनुष्य देह मेरा मंदिर हैं मैं संसार यानी ईंट, पत्थर, रेत, सीमेंट के बने मंदिर वास नही करता।
आपकी पृथ्वी की जीवन यात्रा (शारीरिक, आत्मिक और प्राण को सुरक्षित करने की यात्रा) शुभ और आनंददायनी हो।
ईश्वर ऐसी बुद्धि, ज्ञान और समझ आपको दे चुका हैं।