Tehri Riyasat: टिहरी के महान शासक महाराजा कीर्ति शाह: शिक्षा, न्याय और विकास के प्रतीक : ukjosh
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Tehri Riyasat: टिहरी के महान शासक महाराजा कीर्ति शाह: शिक्षा, न्याय और विकास के प्रतीक


Tehri Riyasat: उत्तराखंड के इतिहास में टिहरी रियासत के राजा कीर्ति शाह का नाम सुनहरे अक्षरों में लिखा गया है। वे न केवल एक कुशल शासक थे, बल्कि शिक्षा, न्याय और सामाजिक सुधारों के अग्रदूत भी थे। उनकी अल्पायु में मृत्यु के बावजूद, उनके योगदान ने टिहरी के समृद्ध इतिहास की नींव रखी।


प्रताप शाह के निधन के बाद कम उम्र में शासन की जिम्मेदारी

टिहरी के राजा प्रताप शाह के निधन के बाद, उनके सबसे बड़े पुत्र कीर्ति शाह को बहुत कम उम्र में राजा घोषित किया गया। उस समय वे शासन संभालने के लिए बहुत छोटे थे, इसलिए उनकी माँ राजमाता गुलेरिया और उनके चाचा विक्रम शाह ने राज्य का प्रशासन संभाला।

हालाँकि, विक्रम शाह की अक्षमता को देखते हुए, राजमाता ने राज्य के शासन को अपने हाथों में ले लिया और एक ‘संरक्षण समिति’ की स्थापना की। उनके कुशल नेतृत्व ने राज्य में शांति और स्थिरता स्थापित की। उनकी दक्षता की प्रशंसा खुद संयुक्त प्रांत के लेफ्टिनेंट गवर्नर सर अल फ्रेंड कॉल्विन ने की थी।


कीर्ति शाह का शिक्षण और प्रारंभिक जीवन

राजमाता ने अपने बेटे कीर्ति शाह को राजस्थान भेजा, जहाँ उनकी शिक्षा और प्रशिक्षण हुआ। उनकी शिक्षा का उद्देश्य उन्हें एक सक्षम और कुशल शासक बनाना था। 18 वर्ष की आयु में, 16 मार्च 1892 को, कीर्ति शाह ने टिहरी रियासत का शासन संभाल लिया।


शिक्षा के क्षेत्र में क्रांति

कीर्ति शाह ने टिहरी राज्य में शिक्षा के महत्व को समझते हुए इसे अपनी प्राथमिकता बनाई। उन्होंने 1891 में प्रताप हाई स्कूल, कैंपबेल बोर्डिंग हाउस, और हिब्बेट संस्कृत स्कूल की स्थापना की। इसके अलावा, राज्यभर में 25 प्राथमिक विद्यालय खोलकर शिक्षा को सुलभ बनाया।

शैक्षिक सुधारों की मुख्य विशेषताएँ:

  1. स्कूलों को राज्य के हर कोने तक पहुँचाने का प्रयास।
  2. छात्रों के लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की सुविधा प्रदान की।
  3. शैक्षणिक संस्थानों को उदारतापूर्वक वित्तीय सहायता दी।
  4. शिक्षा के माध्यम से समाज के बौद्धिक विकास की नींव रखी।

राजनीतिक और प्रशासनिक सुधार

कीर्ति शाह ने टिहरी रियासत में न्यायिक और प्रशासनिक सुधारों की शुरुआत की। उन्होंने न्यायालयों का पुनर्गठन किया और सर्वोच्च न्यायालय मुख्य न्यायालय की स्थापना की। स्वयं राजा हुजूर न्यायालय में बैठते थे और न्यायिक अपीलों की सुनवाई करते थे।

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न्याय प्रणाली में सुधार के पहलू:

  1. न्यायिक मामलों में धार्मिक ग्रंथों और परंपराओं के आधार पर निर्णय।
  2. नागरिकों के लिए निष्पक्ष और पारदर्शी न्याय प्रणाली।

बुनियादी ढाँचे का विकास और परिवहन सुधार

राजा कीर्ति शाह ने टिहरी में बुनियादी ढाँचे के विकास पर विशेष ध्यान दिया। उन्होंने मुख्य सड़कों की मरम्मत करवाई और यात्रियों की सुविधा के लिए सड़कों के किनारे अस्पताल बनवाए।

प्रमुख योगदान:

  1. राज्य के विभिन्न हिस्सों को जोड़ने के लिए सड़कों का निर्माण।
  2. प्रत्येक पट्टी में पटवारी की नियुक्ति।
  3. मंदिरों और धर्मशालाओं के रखरखाव के लिए अधीक्षक नियुक्त किए।

धार्मिक और सांस्कृतिक योगदान

राजा कीर्ति शाह धार्मिक और सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने में भी अग्रणी थे। उन्होंने अपनी माँ राजमाता गुलेरिया के दिखाए मार्ग पर चलते हुए धार्मिक संस्थानों की स्थापना और जीर्णोद्धार किया।

मुख्य कार्य:

  1. राजधानी में मंदिरों और धर्मशालाओं का निर्माण।
  2. धार्मिक गतिविधियों के लिए राजमाता द्वारा आभूषणों की बिक्री से प्राप्त धन का उपयोग।
  3. समाज के धार्मिक और सांस्कृतिक मूल्यों को सुदृढ़ करना।

वन प्रबंधन और पर्यावरण संरक्षण

कीर्ति शाह ने पर्यावरण संरक्षण पर भी ध्यान दिया। उन्होंने वन प्रबंधन नीतियों को लागू किया, जिससे लोगों को वन अधिकारियों के अत्याचार से मुक्ति मिली।

वन प्रबंधन सुधार:

  1. जंगलों के बेहतर प्रबंधन के लिए नई नीतियों का निर्माण।
  2. स्थानीय निवासियों के साथ समन्वय स्थापित करना।
  3. वनों के संरक्षण के साथ जनता के अधिकारों की रक्षा।

कीर्ति शाह के अल्पकालिक जीवन का प्रभाव

मात्र 36 वर्ष की आयु में महाराजा कीर्ति शाह का निधन हो गया। यदि वे अधिक समय तक जीवित रहते, तो टिहरी में कीर्तिनगर जैसे और नगर स्थापित किए जा सकते थे। उनकी असामयिक मृत्यु के बावजूद, उनके कार्य आज भी टिहरी के विकास में मील का पत्थर माने जाते हैं।


निष्कर्ष: एक महानायक की विरासत Tehri Riyasat

महाराजा कीर्ति शाह ने अपने छोटे से जीवनकाल में टिहरी रियासत को न्याय, शिक्षा, और विकास का उदाहरण बना दिया। उनके द्वारा शुरू किए गए सुधार आज भी उनकी प्रजा के प्रति उनके समर्पण और दूरदर्शिता को दर्शाते हैं।

उनके द्वारा स्थापित प्रणाली और संरचनाएँ न केवल टिहरी की सांस्कृतिक और सामाजिक विरासत को मजबूत करती हैं, बल्कि यह भी दिखाती हैं कि एक शासक अपने लोगों के कल्याण के लिए कितना कुछ कर सकता है। उनके योगदानों को सदैव याद किया जाएगा।


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