देहरादून। आज की भागदौड़ भरी ज़िंदगी में जहां लोग भौतिक सुखों की खोज में आत्मिक शांति खो बैठे हैं, वहीं एक दिव्य सन्देश आत्मा के परम दान की ओर हमारा ध्यान आकर्षित करता है। यह संदेश (SpiritualMessage) न केवल आत्मा के मूल स्वरूप को पहचानने की प्रेरणा देता है, बल्कि यह भी स्पष्ट करता है कि मोक्ष का मार्ग धर्म से नहीं, बल्कि सत्य से होकर जाता है।
तीन सूत्र—सुमिरन, सत्य का संग और सेवा— मनुष्य को नाश से बचाते हैं। जो इन तीनों पर चलकर अपने मूल को पहचान लेता है, वह आत्मा का दान पाकर संसार के सबसे बड़े चोर (माया, शैतान, काल) से सुरक्षित हो जाता है।
संदेश में कहा गया है कि आत्मा का ईश्वर, जो ब्रह्मांड का सबसे बड़ा देवता है, हमारे भीतर वास करने को आतुर है। वह प्रेम करता है, और यही उसकी सबसे बड़ी पहचान है। वह कभी नहीं छोड़ता—even जब सब कुछ छूट जाए। वह शांति देता है—आत्मा में, शरीर में और पूरे जगत में।
यह भी बताया गया है कि परमात्मा स्वयं यह कहता है: SpiritualMessage
“पहले तुम मेरे अधीन हो जाओ, क्योंकि मैंने संसार, शैतान, काल और महाकाल पर विजय प्राप्त की है।”
वह यह शक्ति हमें भी देना चाहता है, ताकि हम भी बुराई को पैरों तले रौंद सकें।
एक और अत्यंत भावुक और दिव्य सत्य यह है कि यह आत्मा आदि से अंत तक हमारे साथ रहती है—जब हम नहीं थे, तब भी वह थी, और जब हम इस पृथ्वी से विदा लेंगे, तब भी वह रहेगी—प्रकाशमान, सज्जित और स्थिर।
“ईश्वरीय प्रकाश सेत मेत में मिला है, अब तुम भी लो,” यह संदेश देता है कि यह प्रकाश सबके लिए है।
जो भी अपने दिल के द्वार पर उसकी दस्तक को सुनकर उसे आत्मा में आमंत्रित करेगा, उसे वह स्वयं जीवन और मोक्ष के रहस्य समझाएगा।
नोट: यह कोई साधारण संदेश नहीं, बल्कि एक दिव्य बुलाहट है—अपने ईश्वर की ओर लौट आने की।