Shivraj Singh Kapkoti शिवराज सिंह कपकोटी: संघर्ष, संकल्प और सफलता की मिसाल
Shivraj Singh Kapkoti: कहते हैं कि अगर इंसान के पास अपने सपनों को सच करने का जुनून और दृढ़ संकल्प हो, तो उसकी राह में आने वाली कोई भी बाधा उसे रोक नहीं सकती। इस कथन को सच साबित किया है श्री शिवराज सिंह कपकोटी ने, जो कुमाऊँ विश्वविद्यालय, डी.एस.बी. परिसर, नैनीताल के इतिहास विभाग में एक चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी के रूप में कार्यरत हैं। शिवराज सिंह कपकोटी ने अपनी मेहनत, संघर्ष और दृढ़ निश्चय से इतिहास में एक नया अध्याय लिखा है। उनका नाम न केवल उत्तराखण्ड बल्कि पूरे भारत में प्रेरणादायक उदाहरण के रूप में सामने आया है।
शिवराज सिंह कपकोटी ने न केवल एक पी-एच.डी. की उपाधि प्राप्त की, बल्कि उन्होंने पद्मश्री डॉ. यशोधर मठपाल जैसे महान व्यक्तित्व के सांस्कृतिक योगदान पर एक ऐतिहासिक मूल्यांकन प्रस्तुत किया है। यह उपलब्धि इस दृष्टिकोण से और भी अधिक महत्वपूर्ण हो जाती है कि शिवराज एक संविदा पर कार्यरत चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी हैं और उन्होंने अपने व्यस्त जीवन के बीच इस चुनौतीपूर्ण कार्य को अंजाम दिया। Shivraj Singh Kapkoti
संघर्ष का प्रारंभिक सफर Shivraj Singh Kapkoti
शिवराज सिंह कपकोटी ने अपनी शैक्षणिक यात्रा के दौरान तमाम चुनौतियों का सामना किया। 20 वर्षों से डी.एस.बी. परिसर में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी के रूप में कार्यरत रहते हुए, उन्होंने अपनी शिक्षा को नहीं छोड़ा और निरंतर आगे बढ़ने का संकल्प लिया। कुमाऊँ विश्वविद्यालय के इतिहास में यह पहला मामला है, जब किसी चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी ने पी-एच.डी. की उपाधि प्राप्त की हो। यह अपने आप में एक अभूतपूर्व उपलब्धि है, क्योंकि चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी के रूप में कार्यरत व्यक्ति के लिए उच्च शिक्षा प्राप्त करना एक बड़ी चुनौती है।
शिवराज ने न केवल पी-एच.डी. की प्रवेश परीक्षा को पास किया, बल्कि उन्होंने यह सफलता यू.जी.सी. रेगूलेशन 2009-2010 के तहत प्रवेश परीक्षा उत्तीर्ण कर मेरिट के आधार पर हासिल की। इस तरह की परीक्षा में सफल होना और उसके बाद शोध कार्य को पूरा करना आसान नहीं होता, लेकिन शिवराज ने अपने आत्मविश्वास और मेहनत के बल पर यह कर दिखाया।
शोध कार्य की चुनौती Shivraj Singh Kapkoti
शिवराज सिंह कपकोटी का शोध विषय “पद्मश्री डॉ. यशोधर मठपाल का सांस्कृतिक अवदान: एक ऐतिहासिक मूल्यांकन” था। डॉ. मठपाल एक बहुआयामी व्यक्तित्व थे, जिनका योगदान भारतीय संस्कृति और इतिहास के विभिन्न क्षेत्रों में अनमोल था। ऐसे महान व्यक्तित्व पर शोध करना शिवराज के लिए एक चुनौतीपूर्ण कार्य था, लेकिन उन्होंने इस चुनौती को अपने दृढ़ निश्चय और मेहनत से पूरा किया।
शोध कार्य को पूरा करने में शिवराज को अपने मार्गदर्शक प्रो. सावित्री कैड़ा जन्तवाल का सहयोग मिला। प्रोफेसर कैड़ा ने उन्हें हर कदम पर मार्गदर्शन किया और उन्हें इस शोध कार्य को सफलतापूर्वक पूर्ण करने में मदद की।
बाह्य परीक्षक के रूप में कुलपति का योगदान Shivraj Singh Kapkoti
शिवराज की पी-एच.डी. की मौखिक परीक्षा ऑनलाइन माध्यम से सम्पन्न हुई, जिसमें बाह्य परीक्षक के रूप में नालंदा केंद्रीय विश्वविद्यालय, राजगीर, बिहार के कुलपति प्रो. अभय कुमार सिंह ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। प्रो. अभय कुमार सिंह ने शिवराज के शोध कार्य का गहन मूल्यांकन किया और उनके काम की सराहना की। Shivraj Singh Kapkoti
यह गौरव का क्षण था, जब शिवराज ने सफलतापूर्वक अपनी मौखिक परीक्षा दी और पी-एच.डी. की उपाधि प्राप्त करने के योग्य ठहराए गए। यह न केवल उनके लिए, बल्कि पूरे कुमाऊँ विश्वविद्यालय और डी.एस.बी. परिसर के लिए एक ऐतिहासिक क्षण था।
सामाजिक और शैक्षणिक प्रेरणा
शिवराज की इस सफलता से यह साबित होता है कि कोई भी कार्य असंभव नहीं होता, यदि व्यक्ति में उसे करने की दृढ़ इच्छाशक्ति और समर्पण हो। उनकी इस उपलब्धि ने यह संदेश दिया है कि समाज के किसी भी वर्ग से आने वाला व्यक्ति, चाहे उसकी सामाजिक और आर्थिक पृष्ठभूमि कैसी भी हो, यदि उसे अपने सपनों को साकार करने का जुनून है, तो वह कुछ भी हासिल कर सकता है। Shivraj Singh Kapkoti
शिवराज बताते हैं कि उनकी इस सफलता का श्रेय उन महान शिक्षकों और विद्वानों को जाता है, जिनके साथ उन्होंने डी.एस.बी. परिसर में काम किया। उन्होंने अपने जीवन के इस महत्वपूर्ण मोड़ पर प्रो. अजय रावत, पद्मश्री प्रो. शेखर पाठक, प्रो. दीवान सिंह रावत सहित अन्य गुरुजनों का आभार व्यक्त किया।
शिवराज ने विशेष रूप से प्रो. गिरधर सिंह नेगी और डॉ. भुवन चंद्र शर्मा का आभार जताया, जिनके सहयोग और मार्गदर्शन के बिना उनका शोध कार्य पूरा होना असंभव था। इन विद्वानों के समर्थन से ही शिवराज ने अपनी पी-एच.डी. की यात्रा को सफलतापूर्वक पार किया।
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कठिन परिस्थितियों में साहस
शिवराज की इस यात्रा में उन्होंने तमाम कठिनाइयों का सामना किया। एक चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी होने के नाते, उनके पास समय की कमी थी, लेकिन उन्होंने अपने लक्ष्य से कभी भी पीछे हटने का विचार नहीं किया। नौकरी और पढ़ाई के बीच संतुलन बनाते हुए उन्होंने अपने लक्ष्य को प्राप्त किया।
उनकी इस सफलता ने समाज के उन सभी व्यक्तियों के लिए एक मिसाल कायम की है, जो कठिन परिस्थितियों में हार मान लेते हैं। शिवराज ने यह साबित कर दिया कि अगर इंसान में कुछ कर गुजरने की चाह हो, तो कोई भी बाधा उसे रोक नहीं सकती। Shivraj Singh Kapkoti
भविष्य की संभावनाएँ
शिवराज सिंह कपकोटी की यह उपलब्धि न केवल उनके व्यक्तिगत जीवन के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि यह समाज के लिए भी एक प्रेरणादायक घटना है। उनकी इस सफलता से यह उम्मीद जगी है कि भविष्य में और भी लोग, विशेषकर वे जो समाज के निचले तबके से आते हैं, उच्च शिक्षा की ओर आकर्षित होंगे और अपने जीवन में नई ऊँचाइयों को छूने की कोशिश करेंगे। Shivraj Singh Kapkoti
उनकी यह उपलब्धि उत्तराखंड राज्य में पहली है और संभवतः भारत देश में भी यह पहला मामला हो सकता है, जब किसी संविदा पर कार्यरत चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी ने पी-एच.डी. की उपाधि प्राप्त की हो। यह न केवल उनके व्यक्तिगत प्रयास का नतीजा है, बल्कि यह समाज के उन सभी व्यक्तियों के लिए एक संदेश है कि किसी भी प्रकार की सामाजिक या आर्थिक पृष्ठभूमि सफलता की राह में बाधा नहीं बन सकती।
शिक्षकों और सहयोगियों की प्रतिक्रिया
शिवराज की इस उपलब्धि पर डी.एस.बी. परिसर के इतिहास विभाग के सभी शिक्षकों और सहयोगियों ने खुशी व्यक्त की। विभागाध्यक्ष प्रो. संजय घिल्डियाल, प्रो. संजय कुमार टम्टा, डॉ. शिवानी रावत, डॉ. रितेश साह, डॉ. मनोज सिंह बाफिला, डॉ. पूरन सिंह अधिकारी, डॉ. हरदयाल सिंह जलाल, डॉ. बिरेन्द्र पाल और भुवन पाठक ने शिवराज की इस सफलता पर हर्ष जताया।
इन सभी शिक्षकों और सहयोगियों का मानना है कि शिवराज की यह सफलता न केवल उनके व्यक्तिगत जीवन के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि यह पूरे विश्वविद्यालय के लिए गर्व का विषय है। Shivraj Singh Kapkoti
Shivraj Singh Kapkoti
शिवराज सिंह कपकोटी की यह उपलब्धि हमें यह सिखाती है कि जीवन में कोई भी बाधा इतनी बड़ी नहीं होती कि उसे पार न किया जा सके। मेहनत, संकल्प और दृढ़ निश्चय के साथ इंसान किसी भी लक्ष्य को हासिल कर सकता है। उनकी यह सफलता समाज के उन सभी व्यक्तियों के लिए प्रेरणा स्रोत बनेगी, जो अपने जीवन में कुछ बड़ा हासिल करने का सपना देखते हैं, लेकिन परिस्थितियों के कारण अपने सपनों को साकार करने में असमर्थ रहते हैं।
शिवराज सिंह कपकोटी की इस प्रेरणादायक कहानी से यह स्पष्ट होता है कि अगर इंसान में कुछ कर गुजरने की इच्छाशक्ति हो, तो वह अपने सपनों को साकार कर सकता है, चाहे परिस्थितियाँ कितनी भी प्रतिकूल क्यों न हों। Shivraj Singh Kapkoti