Shankaracharya Avimukteshwarananda शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद का गुस्सा: प्रधानमंत्री मोदी के प्रति आक्रोश और गो-रक्षा के मुद्दे पर उनकी मुखरता : ukjosh

Shankaracharya Avimukteshwarananda शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद का गुस्सा: प्रधानमंत्री मोदी के प्रति आक्रोश और गो-रक्षा के मुद्दे पर उनकी मुखरता


Shankaracharya Avimukteshwarananda प्रधानमंत्री मोदी के प्रति आक्रोश और गो-रक्षा के मुद्दे पर उनकी मुखरता

Shankaracharya Avimukteshwarananda: भारत की संत परंपरा में शंकराचार्य का स्थान अत्यंत महत्वपूर्ण है। वे धार्मिक और आध्यात्मिक नेतृत्व के साथ-साथ सामाजिक और सांस्कृतिक मुद्दों पर भी बेबाक राय रखते हैं। हाल ही में, शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रति नाराजगी व्यक्त की है, जो कि धार्मिक और राजनीतिक जगत में काफी चर्चा का विषय बन गई है। इस लेख में, हम शंकराचार्य के इस गुस्से और उनकी चिंताओं पर विस्तार से चर्चा करेंगे, साथ ही गो-रक्षा के मुद्दे पर उनके विचारों को भी समझने का प्रयास करेंगे। Shankaracharya Avimukteshwarananda

प्रधानमंत्री मोदी के प्रति नाराजगी Shankaracharya Avimukteshwarananda 

शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रति अपनी नाराजगी को सार्वजनिक रूप से व्यक्त किया है। यह नाराजगी उस समय और बढ़ गई जब उन्होंने एक पॉडकास्ट में यह दावा किया कि प्रधानमंत्री मोदी ने उन्हें वास्तव में प्रणाम नहीं किया था, बल्कि वह सिर्फ एक अभिनय था। यह आरोप काफी गंभीर है, क्योंकि यह सीधे तौर पर प्रधानमंत्री के धार्मिक नेताओं के प्रति आदर और सम्मान के व्यवहार पर सवाल उठाता है।

शंकराचार्य ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी ने उनके सामने झुकने का जो अभिनय किया, वह वास्तव में कोई श्रद्धा का संकेत नहीं था। उनके अनुसार, यह केवल एक शिष्टाचार था, जिसे उन्होंने भी शिष्टाचार के रूप में ही स्वीकार किया। यह बात शंकराचार्य ने उस समय कही जब उनसे पूछा गया कि क्या उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी को आशीर्वाद दिया था। इस पर उन्होंने स्पष्ट किया कि उन्होंने कोई आशीर्वाद नहीं दिया, क्योंकि उन्हें लगा कि मोदी जी सिर्फ दिखावा कर रहे थे।

गो-रक्षा का मुद्दा और शंकराचार्य की तीव्र प्रतिक्रिया Shankaracharya Avimukteshwarananda

शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती का गुस्सा केवल प्रधानमंत्री मोदी के प्रणाम करने के तरीके तक सीमित नहीं है। उनका मुख्य गुस्सा गो-रक्षा के मुद्दे पर प्रधानमंत्री द्वारा दिए गए एक बयान को लेकर है। शंकराचार्य ने प्रधानमंत्री मोदी द्वारा गो-रक्षकों को ‘गुंडा’ कहे जाने पर गंभीर आपत्ति जताई है।

शंकराचार्य ने इस बयान के प्रति अपनी तीव्र नाराजगी व्यक्त की है और सवाल उठाया है कि प्रधानमंत्री ने किस आधार पर गो-रक्षकों को गुंडा कहा। उन्होंने कहा कि जब उन्होंने प्रधानमंत्री कार्यालय से इस बारे में जानकारी प्राप्त करने के लिए आरटीआई दाखिल की, तो उन्हें जवाब मिला कि ऐसा कोई डेटा नहीं है जो यह प्रमाणित कर सके कि गो-रक्षक गुंडे हैं। इस पर शंकराचार्य ने प्रधानमंत्री से सवाल किया कि यदि ऐसा कोई डेटा नहीं है, तो फिर उन्होंने गो-रक्षकों को गुंडा कैसे कह दिया।

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गो-रक्षा के लिए शंकराचार्य की संघर्ष की तैयारी

शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने गो-रक्षा के मुद्दे को लेकर प्रधानमंत्री मोदी के बयान को लेकर जिस तरह का गुस्सा व्यक्त किया है, वह केवल नाराजगी तक सीमित नहीं है। उन्होंने इस मुद्दे पर एक निर्णायक संघर्ष की घोषणा की है। उनके अनुसार, यह समय आ गया है जब हिंदुओं के पराक्रम को प्रकट होने का अवसर मिलना चाहिए।

शंकराचार्य ने स्पष्ट किया कि गो-रक्षा उनके लिए केवल एक धार्मिक कर्तव्य नहीं है, बल्कि यह एक नैतिक और सामाजिक जिम्मेदारी भी है। उन्होंने कहा कि वे अपनी गौ माता की रक्षा के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार हैं और इसके लिए वे प्रधानमंत्री मोदी की आलोचना करने से भी पीछे नहीं हटेंगे।

प्रधानमंत्री मोदी पर शंकराचार्य का तंज

शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने प्रधानमंत्री मोदी के प्रति अपनी नाराजगी को व्यक्त करने के लिए कई तंज भी कसे। उन्होंने कहा कि केवल प्रणाम करने से या झुकने का अभिनय करने से आशीर्वाद नहीं मिलता है। आशीर्वाद का असली अर्थ यह है कि व्यक्ति अपने कार्यों में सच्चाई और ईमानदारी दिखाए। शंकराचार्य ने कहा कि यदि प्रधानमंत्री मोदी गो-हत्या बंद कर दें, तो वे बिना किसी संकोच के दिल से आशीर्वाद देंगे।

शंकराचार्य ने यह भी कहा कि प्रधानमंत्री का प्रणाम करना या उनके सामने सिर झुकाना केवल एक शिष्टाचार था, जिसे उन्होंने भी शिष्टाचार के रूप में ही स्वीकार किया। उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी के इस व्यवहार को अभिनय के रूप में बताया और कहा कि इस तरह के अभिनय से कोई सच्चा आशीर्वाद नहीं मिल सकता है।

धार्मिक और सामाजिक नेतृत्व की जिम्मेदारी

शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती का यह गुस्सा केवल प्रधानमंत्री मोदी के प्रति व्यक्तिगत नाराजगी का परिणाम नहीं है। यह धार्मिक और सामाजिक नेतृत्व की जिम्मेदारी का हिस्सा भी है। शंकराचार्य जैसे धार्मिक नेता समाज में नैतिकता, सत्य, और न्याय की आवाज उठाने के लिए जाने जाते हैं। वे केवल धार्मिक कार्यों तक सीमित नहीं रहते, बल्कि समाज में हो रही असंगतियों और अन्याय के खिलाफ भी आवाज उठाते हैं।

सौजन्य- शालिनी कपूर तिवारी पॉडकास्ट – https://www.youtube.com/@shalinikapoortiwari 

Reference Link-  https://youtu.be/HKP_ygJQieM

गो-रक्षा के मुद्दे पर शंकराचार्य की प्रतिक्रिया इसी जिम्मेदारी का एक हिस्सा है। वे मानते हैं कि गाय की रक्षा करना केवल एक धार्मिक कर्तव्य नहीं है, बल्कि यह एक नैतिक जिम्मेदारी भी है। उनके अनुसार, गाय केवल एक पशु नहीं है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति और परंपरा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।

शंकराचार्य का आह्वान और हिंदुओं के पराक्रम की बात

शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने हिंदुओं के पराक्रम की बात भी कही है। उन्होंने कहा कि अब समय आ गया है कि हिंदुओं का पराक्रम प्रकट हो और वे अपनी धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर की रक्षा के लिए आगे आएं। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि गो-रक्षा के लिए यह संघर्ष केवल धार्मिक नहीं है, बल्कि यह हिंदू समाज के सम्मान और उसकी पहचान की रक्षा के लिए भी है।

शंकराचार्य का यह आह्वान एक व्यापक संदेश है, जो हिंदू समाज के हर वर्ग तक पहुंचने का प्रयास कर रहा है। उनका मानना है कि यदि हिंदू समाज एकजुट होकर अपनी धरोहर और परंपराओं की रक्षा के लिए खड़ा होता है, तो कोई भी शक्ति उसे रोक नहीं सकती है।

Shankaracharya Avimukteshwarananda

शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रति गुस्सा और गो-रक्षा के मुद्दे पर उनकी मुखरता यह दर्शाती है कि वे केवल एक धार्मिक नेता नहीं हैं, बल्कि वे समाज के नैतिक और सांस्कृतिक नेतृत्व की भी जिम्मेदारी निभाते हैं। उनका यह गुस्सा केवल एक व्यक्ति के प्रति नहीं है, बल्कि यह उन सभी नीतियों और विचारों के प्रति है जो समाज में अन्याय और असमानता को बढ़ावा देते हैं।

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गो-रक्षा के मुद्दे पर शंकराचार्य की मुखरता और उनके द्वारा किए गए आह्वान से यह स्पष्ट होता है कि वे इस मुद्दे को केवल धार्मिक दृष्टिकोण से नहीं देखते, बल्कि इसे सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण मानते हैं। उनके इस संघर्ष से यह उम्मीद की जा सकती है कि गो-रक्षा और हिंदू समाज के सम्मान की रक्षा के लिए समाज में एक नई जागरूकता और सक्रियता उत्पन्न होगी।


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