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Parmanand परमानन्द यानी परमात्मा की सामर्थ आत्मदान से मिलता है


Parmanand परमानन्द यानी परमात्मा की सामर्थ आत्मदान से मिलता है

Parmanand: परमानन्द यानी परमात्मा की सामर्थ आत्मदान से मिलता है अपने मुंह से स्वीकार और उस पर विश्वास करों और उसके नियमत इस स्कैंन पर श्रद्धा और विश्वास से अपनी आय का कुछ भाग दान (भेंट) करो आपकी हर इच्छा ईश्वर पूरी हो चुकी है। एक बार करके तो देखो तभी तो ईश्वर को जानोगे।

आत्मा का दीपक जलाकर परमानंद की प्राप्ति; मनुष्य आत्मास्वरूप परमानन्द से अपनी बात रखने सबसे सरल रास्ता;  मिट्टी का दीपक जलाकर कुछ फायदा न होगा आत्मा का दीपक जलाकर मनुष्य आत्मास्वरूप परमानन्द से अपनी बात रखने सबसे सरल रास्ता जरूरत पूरी करेगा मिट्टी का दीपक जलाकर मनुष्य अपने ही पापों की पूजा करता है ईश्वर की नही।

मिट्टी का दीपक जलाकर मनुष्य अपने ही पापों की पूजा करता है परन्तु जो मनुष्य अपनी आत्मा का दीपक जला लेते है वे विश्वास के साथ मुक्ति पा लेते है। क्योंकि मनुष्य जब उस ब्रह्म के उस धर्मी पुत्र को वे अपने जीवन में आपनी आत्मा का गुरु मानकर उसे स्वीकार कर लेते है तो वे उद्धार (मुक्ति) पा लेते है।

जैसे जब वह शूूली पर था और सारे जीवन भर वह अपने आपको सर्वशक्तिमान का ही पुत्र कहता रहा पर लोगों ने उस पर विश्वास न किया। इसलिए लोगों अपने ही पापों की पूजा करते है और ईश्वर ने कहा कि मनुष्य को उसके ही पाप मारते है क्योंकि मनुष्य अपने पापों की पूजा दीप जलाकर करता है तो उसे मारने वाली भी उसके कर्म (पाप) है।

दूसरी ओर हम ध्यान देते है कि शूली पर दो अन्य पापी मनुष्य (चोर) भी चढ़ाये गये थे परन्तु उनमें से एक पापी मनुष्य ने उसकी इस बता (वचन) पर विश्वास किया कि जैसे उसने कहा कि ‘मैं सर्वशक्तिमान की पुत्र हूं।’ उसने ब्रह्म के पुत्र यीशु मसीह को अपने जीवन स्वीकार किया कि ‘अगर यीशु मसीह ब्रह्म यानि सर्वशक्तिमान का पुत्र है तो मुझे अपने साथ स्वर्ग ले जाना। क्योंकि इस समय मैं शूली पर हूं और अब मेरे पास जीवन नही है। मैं विश्वास करता हू कि तू ईश्वर का पुत्र है तो मुझे अपने साथ रखना ताकि मैं भी ईश्वर के साथ रहूं।

आप सभी जानते है कि दूसरे चोर ने विश्वास न किया तो वह अपने कर्मों के द्वारा शूली पर टांगा गया और जैसे उसने कर्म किये वैसे ही उसके साथ हुआ और उसने नरक में स्थान मिला। परन्तु जिस चोर ने अपने कर्मों के द्वारा संसार की ओर से उसे शूली पर टांगा गया परन्तु शूली पर ही सर्वशक्मिान का पुत्र भी टंगा हुआ था परमात्मा की ईच्छा पूरी करने के लिए, परन्तु जैसे ही उसने विश्वास किया कि यीशु मसीह सर्वशक्तिमान का पुत्र है वह मुझे ईश्वर के राज्य यानि स्वर्ग ले जायेगा इसके लिए उसने सिर्फ क्रूस पर ही विश्वास किया और इसी विश्वास के कारण उसने स्वर्ग में मुक्ति का पहला स्थान पाया। उसका ऐसा कोई कर्म नही था कि चोर स्वर्ग में जा सकता है पर एक विश्वास करके ही उसने स्वर्ग में पहला स्थान प्राप्त किया है।

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इसी तरह जो विश्वास करता है कि ‘यीशु मसीह सर्वशक्तिमान परमेश्वर का पुत्र है और परमेश्वर ने उसे तीसरे दिन मृतकांें में जीवन उठाया। मैं विश्वास करता हूं तो यीशु, परमात्मा का पुत्र यानी सर्वशक्तिमान का आत्मा इसे ऐसा भी समझ सकते है कि ईश्वर निराकार स्वरूप परमात्मा का आत्मा पुत्र रूप लेकर जब वह मार गया और ईश्वर ने उसे तीसरे दिन मृतकों में से जी उठाया तो वह आत्मस्वरूप जीन्दा जीवित ईश्वर यानी सामर्थी ईश्वर हो चुका है जो उसे जीवन में स्वीकार करेगा। वह हर दुख परेशानी, घटी कमी, दैविक रोग जैसे देवी देवताओं, भूत पिचास जादू टोना, टोटका, जनतर, मन्तर जैसी आत्मााओं से मुक्ति पायेगा।

भौतिक रोग जैसे गरीबी, घटी कमी, या जीवन जीने वाली जरूरत चाहत वाली चीजों से मुक्ति पाकर वह सुख समृद्धि उसके जीवन में आ जायेगी। वैसे ही तापिक रोग जैसे बीमारी बुखार, दर्द, कैंसर, मर्गी किसी तरह का भी रोगा हो अगर वे विश्वास करते है जैसे उस चोर ने विश्वास किया तो उसे स्वर्गीय स्थान मिला। अगर आप ब्रह्म के पुत्र पर विश्वास करते है तो आप भी हर दुख परेशानी से मुक्ति हो सकते है बशर्त है विश्वास से।

इसलिए इस सरल रास्ते को संसार जानता नही है लोग अपने आत्मा का दीया नही जलाते है और संसार में मठ, मंदिरों, गुरुद्वार, चर्च एवं वर्त तीर्थ, स्नान करते करते थक हारमान हो जाते है पर उन्हें शांति नही प्राप्त होती अंततया ईश्वर को ढूंढते ढूंढते दुख उठाते दुख उठाते नाश हो जाते है न उन्हें राम मिला न माया वर्त तीर्थ के नाम वाहन दुर्घटनाओं के शिकार हो जाते है एक मनुष्य जीवन मिला था उसे भी वर्त तीर्थ मठ मंदिरा के चक्कर में यूं ही नाश कर देते है। और कहा कि मनुष्य जीवन बड़े भागों से प्राप्त होता है। मात्र एक विश्वास से ही मनुष्य की मुक्ति सम्भव है।

जब कि मुक्ति का दाता आत्मा स्वरूप परमात्मा मनुष्य आपके ही अन्दर पर उसे इज्जत नही दी, सेवा सत्तकार नही किया इसलिए अपने आत्मा का दीपक तो जलाया नही संसार में मिट्टी का दीपक जलाने से क्या कुछ फायदा होगा।

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और लोग ईश्वर के पुत्र पर विश्वास करते है यानि परमात्मा ने भी अपनी ओर से बीज यानी धर्मी, सत्य, प्रेम, विश्वास, माफी करने वाला पुत्र (बीज) पैदा किया जो अपने मुंह से उसे अपनी जीवन में स्वीकार करेगा और विश्वास पर विश्वास करेगा और उसके नियमित हर्ष और उल्लास यानि खुशी खुशी बीज (दान) करेगा। वह फलवंत होगा यानी फूलेगा फलेगा उसके वंश में वंशबरकत होगी, धन में उन्नति तरक्की होगी, ईश्वर ने कहा मैं सर्वशक्तिमान ईश्वर उसके उपर अपने स्वर्गीय आशीषों को झंरखे खोल दूंगा और जितने भी तेरे विरोध में काम करेंगे या तेरे विरोध में होंगे मैं तेरे मैं उन सबकों तेरे पैरों के नीचे रख दूंगा।

ईस ब्रह्माण्ड का राजा सर्वशक्तिमान ईश्वर मैं ही हूं। आओ प्रियों ब्रह्म के पर पुत्र को अपने जीवन में स्वीकार करें और वे स्वर्गीय आनन्द प्राप्त करंे और आनन्द, छुटकारा बीज यानि दान में है जो दान करता है यानि वह विश्वास करता है और जिसने भी विश्वास किया और विश्वास से उसके लिए दान किया उसने विश्वास से ही उसके आनन्द में प्रवेश किया है।

ईश्वर ने अपने पुत्र की प्रार्थना से हम सबको माफ कर दिया है पर न्याय का अधिकार पुत्र के पास है जब स्वर्ग से जज्मेंट आयेगी तो न्याय अधिकार पुत्र के पास है और जिसका न्याय पुत्र करेगा ‘उसने कहा कि मेरा न्याय’ सच्चा होगा।

इन्हीं शब्दों यान वचनों और विश्वास के साथ परमपिता आपकी हर जरूरत की चींजें आपको दे चुका आपका आनन्द पूरा हो। धन्यवाद।


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