Paleo Sciences : भूविज्ञान में शोध की नई ऊँचाइयाँ नैनीताल निवासी डॉक्टर बिनीता फर्तियाल की अंतिम मौखिक परीक्षा…
Birbal Sahni Institute of Palaeosciences Lucknow
नैनीताल निवासी और बीरबल साहनी पालियो साइंसेज (Paleo Sciences) संस्थान, लखनऊ की वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉक्टर बिनीता फर्तियाल ने अपनी डीएससी की अंतिम मौखिक परीक्षा दी, जो उनके अद्वितीय शोध कार्य का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। उनकी यह उपलब्धि न केवल व्यक्तिगत रूप से बल्कि वैज्ञानिक समुदाय के लिए भी प्रेरणादायक है। इस लेख में हम डॉक्टर बिनीता फर्तियाल के शोध कार्यों, उनकी उपलब्धियों और उनकी मौखिक परीक्षा के आयोजन के बारे में विस्तृत जानकारी प्रदान करेंगे।
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
डॉक्टर बिनीता फर्तियाल का जन्म नैनीताल में हुआ था, जहाँ से उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की। भूविज्ञान के प्रति उनके गहरे रुचि ने उन्हें इस क्षेत्र में उत्कृष्टता हासिल करने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने कुमाऊं विश्वविद्यालय से 2000 में पीएचडी की उपाधि प्राप्त की, जहां उनके शोध निर्देशन प्रोफेसर बीएस कोटलिया ने किया। उनकी पीएचडी का विषय “लेट क्वार्टरनरी सेडीमेंटेशन इन लद्दाख रीजन ट्रांस हिमालय: इंप्लीकेशन ऑन क्लाइमेट एंड टेक्टोनिक्स” था, जो उनके भविष्य के शोध कार्यों की नींव बना।
डीएससी की प्राप्ति
डॉक्टर बिनीता फर्तियाल ने अपनी डीएससी की अंतिम मौखिक परीक्षा जियोलॉजी विभाग में दी। इस परीक्षा का आयोजन विभागाध्यक्ष प्रोफेसर प्रदीप गोस्वामी द्वारा किया गया, जिसमें विषय विशेषज्ञ के रूप में प्रोफेसर देवेश के सिन्हा (दिल्ली विश्वविद्यालय) और प्रोफेसर एलएस चमियाल (एमएस यूनिवर्सिटी, एफएनएसीसी) शामिल थे। उनकी डीएससी का शोध कार्य लद्दाख क्षेत्र के क्वार्टरनरी सेडिमेंटेशन पर आधारित था, जो हिमालय के पारिस्थितिकी तंत्र और भूवैज्ञानिक गतिविधियों पर उनके अध्ययन का निचोड़ प्रस्तुत करता है।
शोध कार्य और योगदान
डॉक्टर बिनीता फर्तियाल के शोध कार्य का मुख्य फोकस उच्च ऊंचाई वाले क्षेत्रों जैसे लद्दाख, अंटार्कटिक, आर्कटिक और अन्य ठंडे क्षेत्रों पर है। उन्होंने इन क्षेत्रों में जलवायु परिवर्तन और भूगर्भीय गतिविधियों के प्रभावों का गहन अध्ययन किया है। उनके शोध कार्य ने वैज्ञानिक समुदाय को महत्वपूर्ण अंतर्दृष्टि प्रदान की है, विशेषकर जलवायु परिवर्तन और टेक्टोनिक गतिविधियों के पारस्परिक संबंधों को समझने में।
उनके शोध का एक महत्वपूर्ण पहलू यह भी है कि उन्होंने अपने अध्ययन के दौरान विभिन्न नवीनतम तकनीकों और उपकरणों का उपयोग किया है, जिससे उनके निष्कर्ष अधिक सटीक और विश्वसनीय बने हैं। उनके शोध कार्य ने न केवल भारतीय बल्कि अंतर्राष्ट्रीय भूवैज्ञानिक समुदाय में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
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कुमाऊं विश्वविद्यालय और बीरबल साहनी पालियो साइंसेज संस्थान के बीच सहयोग
कुमाऊं विश्वविद्यालय और बीरबल साहनी पालियो साइंसेज संस्थान के बीच अनुसंधान कार्यों हेतु एक एमओयू (मेमोरैंडम ऑफ अंडरस्टैंडिंग) है। इस एमओयू के तहत दोनों संस्थान संयुक्त रूप से शोध कार्यों को आगे बढ़ाते हैं, जिससे छात्रों और शोधकर्ताओं को लाभ होता है। डॉक्टर बिनीता फर्तियाल का डीएससी का शोध कार्य भी इसी सहयोग का एक हिस्सा है, जो दोनों संस्थानों के बीच के मजबूत संबंधों को दर्शाता है।
मौखिकी परीक्षा में सहभागिता
डॉक्टर बिनीता फर्तियाल की अंतिम मौखिकी परीक्षा में प्रोफेसर राजीव उपाध्याय, डॉक्टर दीपा आर्य, डॉक्टर मौलश्री जोशी, डॉक्टर पूनम जलाल, डॉक्टर मनीषा सांगुरी, डॉक्टर तनुजा डियोपा, डॉक्टर संतोष जोशी, निर्मित साह समेत कई प्रमुख व्यक्ति उपस्थित रहे। इस परीक्षा का सफल आयोजन और उसमें विद्वानों की भागीदारी इस बात का प्रमाण है कि डॉक्टर फर्तियाल का शोध कार्य कितना महत्वपूर्ण और प्रभावशाली है।
बधाइयाँ और शुभकामनाएं
डॉक्टर बिनीता फर्तियाल की इस महान उपलब्धि पर कुमाऊं विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर दीवान एस रावत, निदेशक प्री नीता बोरा, डीएसडब्ल्यू प्रोफेसर संजय पंत, निदेशक विजिटिंग प्रोफेसर प्रोफेसर ललित तिवारी, निदेशक शोध प्रोफेसर नंद गोपाल साहू, डॉक्टर महेश आर्य, एलुमनी सेल के डॉक्टर बीएस कालाकोटी, डॉक्टर एसएस सामंत, डॉक्टर नीलू लोधियाल, डॉक्टर सुषमा टम्टा, डॉक्टर विजय कुमार सहित कूटा ने बधाई और शुभकामनाएं दी हैं। यह सभी बधाइयाँ इस बात की गवाही देती हैं कि डॉक्टर फर्तियाल ने अपने शोध कार्य के माध्यम से न केवल व्यक्तिगत सफलता हासिल की है बल्कि अपने संस्थानों और समाज के लिए भी गौरव का कारण बनी हैं।
निष्कर्ष
Paleo Sciences: डॉक्टर बिनीता फर्तियाल की डीएससी की प्राप्ति और उनके शोध कार्य ने भूविज्ञान के क्षेत्र में एक नई दिशा प्रदान की है। उनकी यह सफलता न केवल नैनीताल और कुमाऊं विश्वविद्यालय के लिए गर्व का विषय है बल्कि भारतीय वैज्ञानिक समुदाय के लिए भी एक महत्वपूर्ण प्रेरणा स्रोत है। उनके शोध कार्य और उनकी उपलब्धियों ने यह साबित किया है कि समर्पण, मेहनत और नवीनतम तकनीकों के उपयोग से वैज्ञानिक अनुसंधान में उत्कृष्टता प्राप्त की जा सकती है। हम आशा करते हैं कि डॉक्टर फर्तियाल भविष्य में भी इसी प्रकार अपने शोध कार्यों के माध्यम से वैज्ञानिक समुदाय को योगदान देती रहेंगी और नई ऊँचाइयाँ छूती रहेंगी।