Nathu Singh Sajwan: नाथू सिंह सजवान भारतीय सैन्य इतिहास के प्रमुख व्यक्तित्व के रूप में उभरे। एक सैनिक से सेना के प्रमुख पद तक की उनकी यात्रा ने न केवल उन्हें प्रतिष्ठा दिलाई, बल्कि भारतीय समाज के लिए भी एक प्रेरणा का कार्य किया। प्रथम और द्वितीय विश्व युद्ध में उनकी विशिष्ट सेवाओं ने उनकी पहचान को और भी मजबूत किया।
प्रथम विश्व युद्ध में उनकी शुरुआत और किंग जॉर्ज पंचम के समारोह में प्रतिनिधित्व Nathu Singh Sajwan
प्रथम विश्व युद्ध के दौरान नाथू सिंह की वीरता और समर्पण ने उन्हें विशेष मान्यता दिलाई। 1925 में, उन्हें इंग्लैंड में किंग जॉर्ज पंचम के राज्याभिषेक समारोह में टिहरी रियासत का प्रतिनिधित्व करने का सम्मान प्राप्त हुआ। इस सम्मानजनक जिम्मेदारी ने उनके बढ़ते कद को दर्शाया। इंग्लैंड की चुनौतीपूर्ण यात्रा के बाद, टिहरी में उनके सम्मान में एक भव्य समारोह आयोजित किया गया। इस दौरान उन्हें ब्रिटिश साम्राज्य के सदस्य (M.B.E.) की उपाधि से अलंकृत किया गया, जो उनके असाधारण योगदान का प्रतीक था। Nathu Singh Sajwan
सेना प्रमुख के पद तक की यात्रा
नाथू सिंह सजवान ने 1929 तक लेफ्टिनेंट कर्नल का पद हासिल कर लिया। उनके नेतृत्व कौशल और अनुभव के चलते 1930 में उन्हें टिहरी राज्य की सेना का प्रमुख नियुक्त किया गया। यह उपलब्धि न केवल उनकी सैन्य कुशलता का प्रमाण थी, बल्कि उनके प्रति उनके वरिष्ठों के गहरे विश्वास को भी दर्शाती है। Nathu Singh Sajwan
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान नेतृत्व और वायसराय द्वारा प्रशंसा Nathu Singh Sajwan
1939 में द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान, उन्हें बर्मा और मलेशिया के अग्रिम मोर्चों पर तैनात किया गया। इस कठिन समय में उनके योगदान की सराहना 28 मई 1943 को भारत के तत्कालीन वायसराय विक्टर अलेक्जेंडर जॉन होप ने की। वायसराय ने उनके अनुकरणीय सेवाओं के लिए एक विशेष प्रशंसा पत्र प्रदान किया, जो उनकी कर्तव्यनिष्ठा और नेतृत्व का प्रमाण था।
शिक्षा की कमी से लेकर सैन्य प्रमुख बनने तक का सफर
नाथू सिंह का प्रारंभिक जीवन कठिनाइयों से भरा था। टिहरी राज्य में शिक्षा के सीमित अवसरों के बावजूद, पैडी-गढ़वाल से आए शिक्षक गुलाब सिंह नेगी की मदद से उन्होंने प्राथमिक शिक्षा ग्रहण की। यह शिक्षा उनके जीवन का महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुई और उनके नेतृत्व के विकास की नींव रखी।
सड़कों का निर्माण और सामुदायिक विकास
नाथू सिंह सजवान ने सैन्य जिम्मेदारियों के साथ-साथ टिहरी क्षेत्र में सड़कों और बुनियादी ढांचे के विकास को प्राथमिकता दी। उनके प्रयासों से 1940 तक टिहरी शहर में वाहनों की पहुंच संभव हुई। नरेंद्रनगर और देवप्रयाग के बीच सड़कों का निर्माण उनके दूरदर्शी दृष्टिकोण का प्रतीक है।
तिलाड़ी कांड में नैतिकता बनाम सैन्य निष्ठा
नाथू सिंह को तिलाड़ी कांड के दौरान टिहरी दीवान चक्रधर जुयाल के आदेश पर गोली चलाने का काम सौंपा गया। यह घटना उनके आंतरिक संघर्ष को दर्शाती है। सैन्य आदेशों के पालन और नैतिकता के बीच इस दुविधा ने उनकी मानवता और कर्तव्य के प्रति निष्ठा को उजागर किया।
संपत्ति और सामुदायिक भलाई का विचार
नाथू सिंह ने अपने व्यक्तिगत लाभ से अधिक सामुदायिक कल्याण को प्राथमिकता दी। उन्होंने टिहरी और देहरादून में मिली भूमि को जरूरतमंद परिवारों के बीच बांट दिया। यह परोपकारी दृष्टिकोण उनके उदार व्यक्तित्व और गांव के प्रति उनके गहरे लगाव को दर्शाता है।
राजनीति में प्रवेश और सुंदरलाल बहुगुणा की हार
1948 में सेना से सेवानिवृत्ति के बाद, नाथू सिंह ने टिहरी रियासत की राजनीति में कदम रखा। उन्होंने प्रजा मंडल का प्रतिनिधित्व करते हुए बामुंड, मनियार, उदकोट, और अठूर पट्टियों से चुनाव लड़ा और प्रसिद्ध नेता सुंदरलाल बहुगुणा को हराकर विजय प्राप्त की। यह जीत लोकतांत्रिक आदर्शों की बढ़ती स्वीकृति और उनके प्रति जनता के विश्वास का प्रतीक थी।
सेवानिवृत्ति और सामुदायिक प्रेरणा
नाथू सिंह की सेवानिवृत्ति के बाद, उनके प्रयासों ने चंबा क्षेत्र के युवाओं को सशस्त्र बलों में शामिल होने के लिए प्रेरित किया। 19 मई 1950 को एक सामान्य बीमारी के कारण उनका निधन हो गया, लेकिन उनकी विरासत आज भी उनके परिवार और समुदाय के बीच जीवित है।
पारिवारिक योगदान और स्मारक Nathu Singh Sajwan
नाथू सिंह के वंशज आज भी उनकी विरासत को संजोए हुए हैं। गुल्डी गांव के पास उनकी स्मृति में एक मूर्ति स्थापित की गई है। उनकी कहानी साहस, समर्पण, और नेतृत्व का प्रतीक बनी हुई है, जो आने वाली पीढ़ियों को प्रेरणा देती है।
नाथू सिंह सजवान की कहानी न केवल एक सैनिक की वीरता को दर्शाती है, बल्कि यह भी दिखाती है कि कैसे व्यक्तिगत दृढ़ संकल्प और सामुदायिक प्रयास समाज में सकारात्मक बदलाव ला सकते हैं।