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Murti Pooja कभी ऐसे मूर्ख लोगों को शांति प्राप्ति नहीं हो सकती है जो मूर्ख लोग मिट्टी, पत्थर, धातु अथवा लकड़ी की मूर्तियों को ईश्वर समझते हैं


Murti Pooja मूर्ति पूजा और धार्मिक ग्रंथों की दृष्टि: एक आलोचनात्मक विवेचना

Murti Pooja : भारत की धार्मिक और सांस्कृतिक परंपरा में मूर्ति पूजा का एक महत्वपूर्ण स्थान है। प्राचीन काल से लेकर आज तक, विभिन्न धर्मों और संप्रदायों ने मूर्तियों को ईश्वर के प्रतीक रूप में पूजा किया है। लेकिन, कुछ धार्मिक ग्रंथ और विचारधाराएं इस प्रथा की आलोचना भी करती हैं, और इसे मूर्खता या अज्ञानता का परिणाम मानती हैं। इस लेख में, हम इन धार्मिक ग्रंथों में मूर्ति पूजा के खिलाफ दिए गए तर्कों और विचारों की चर्चा करेंगे, साथ ही उनके सांस्कृतिक और आध्यात्मिक महत्व पर भी विचार करेंगे। Murti Pooja

मूर्ति पूजा: एक परिचय

मूर्ति पूजा की परंपरा भारत में हजारों साल पुरानी है। हिंदू धर्म, बौद्ध धर्म, जैन धर्म और सिख धर्म जैसे धर्मों में विभिन्न देवताओं और देवी-देवताओं की मूर्तियों की पूजा की जाती है। मूर्तियाँ उन देवताओं का प्रतिनिधित्व करती हैं जो मानवता की विभिन्न आवश्यकताओं और इच्छाओं का प्रतीक होती हैं। उदाहरण के लिए, शिवलिंग शिव भगवान का प्रतीक है, जो सृजन, संरक्षण और विनाश के देवता माने जाते हैं। Murti Pooja

शिव पुराण और मूर्ति पूजा की आलोचना Murti Pooja

शिव पुराण के बिंदेश्वर संहिता में एक स्पष्ट दृष्टिकोण प्रस्तुत किया गया है, जिसमें मूर्ति पूजा को अज्ञानता का परिणाम बताया गया है।

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शूद्र का अर्थ मूर्ख:

शिव पुराण के बिंदेश्वर संहिता में यह लिखा गया है कि पत्थर का लिंग शूद्रों के लिए है। यहां शूद्र शब्द को “मूर्ख” के रूप में परिभाषित किया गया है, और कहा गया है कि द्विजाति (उच्च जाति) के लोग और बुद्धिमान व्यक्ति पत्थर के शिवलिंग की पूजा नहीं करनी चाहिए। इस विचार के अनुसार, मूर्तियों की पूजा करना बुद्धिहीनता का प्रतीक है और इसे केवल अज्ञानी लोगों के लिए उचित माना जाता है।

महा-निर्वाण तंत्र की आलोचना

महा-निर्वाण तंत्र, एक और धार्मिक ग्रंथ, भी इस दृष्टिकोण को साझा करता है। इस ग्रंथ के अनुसार, मिट्टी, पत्थर, धातु या लकड़ी की मूर्तियों को ईश्वर समझना मूर्खता है। इनको पूजा करने वाले लोगों को शांति की प्राप्ति नहीं हो सकती है। यह दृष्टिकोण यह संकेत देता है कि मूर्ति पूजा करने वाले लोग सच्चे आध्यात्मिक अनुभव और आंतरिक शांति से वंचित रहते हैं।

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भागवत पुराण की दृष्टि

भागवत पुराण में भी मूर्ति पूजा की आलोचना की गई है। इस पुराण में कहा गया है कि जलमय तीर्थ (जल से बने तीर्थ) और मिट्टी के देवता वास्तव में देवता नहीं होते। इसका अर्थ है कि इन प्रतीकों की पूजा करना एक भ्रम है, और इसे सच्ची भक्ति नहीं माना जा सकता।

धार्मिक आलोचनाओं का सांस्कृतिक महत्व

इन धार्मिक ग्रंथों में मूर्ति पूजा की आलोचना करने का एक महत्वपूर्ण कारण यह है कि यह लोगों को प्रतीकात्मकता से परे जाने के लिए प्रेरित करता है। मूर्तियाँ केवल प्रतीक हैं, जो एक व्यक्ति को ईश्वर के करीब महसूस कराने में मदद करती हैं। लेकिन अगर कोई व्यक्ति केवल इन प्रतीकों पर ही विश्वास करता है और उनके माध्यम से वास्तविक ईश्वरत्व को समझने की कोशिश नहीं करता, तो उसे शांति या आध्यात्मिक विकास की प्राप्ति नहीं हो सकती।

मूर्ति पूजा का आध्यात्मिक महत्व

मूर्ति पूजा की आलोचना करने वाले विचारों के बावजूद, यह भी महत्वपूर्ण है कि हम मूर्ति पूजा के आध्यात्मिक महत्व को समझें। हिंदू धर्म में, मूर्तियाँ ध्यान और भक्ति का केंद्र होती हैं। वे एक साधक को ईश्वर की ओर केंद्रित करने में मदद करती हैं। मूर्तियाँ एक साधक को उस अलौकिक शक्ति के प्रतीक के रूप में सेवा प्रदान करती हैं, जिसे वे ईश्वर मानते हैं। इस दृष्टिकोण से, मूर्ति पूजा व्यक्ति की आत्मा को शुद्ध करने और उसे ईश्वर के साथ जोड़ने का एक साधन है।

मूर्ति पूजा के मनोवैज्ञानिक पहलू Murti Pooja

मूर्ति पूजा के मनोवैज्ञानिक पहलुओं को भी समझना आवश्यक है। प्रतीकात्मकता और मूर्तियों के माध्यम से, व्यक्ति अपने विचारों और भावनाओं को एक दिशा में केंद्रित कर सकता है। यह ध्यान और भक्ति के लिए एक सरल और प्रभावी साधन है। जब एक व्यक्ति मूर्ति की पूजा करता है, तो वह उस मूर्ति में ईश्वर की उपस्थिति का अनुभव करता है, जो उसके मन में शांति और संतोष की भावना उत्पन्न करता है। Murkh log

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धार्मिक विविधता और सहिष्णुता Murkh log

यह भी महत्वपूर्ण है कि हम धार्मिक विविधता और सहिष्णुता के महत्व को समझें। विभिन्न धार्मिक परंपराओं में अलग-अलग पूजा पद्धतियाँ और विश्वास होते हैं। यह आवश्यक है कि हम एक-दूसरे के विश्वासों का सम्मान करें और उन्हें समझने की कोशिश करें। किसी भी धार्मिक प्रथा की आलोचना करते समय, हमें यह ध्यान में रखना चाहिए कि वह प्रथा उस धर्म के अनुयायियों के लिए महत्वपूर्ण है और उनकी आस्था का हिस्सा है।

ऐसे लोगों को कभी शांति प्राप्ति नहीं हो सकती है जो मूर्ख लोग मिट्टी, पत्थर, धातु अथवा लकड़ी की मूर्तियों को ईश्वर समझते हैं Murti Pooja

शूद्र का अर्थ है मूर्ख, शिव पुराण बिंदेश्वर संहिता पेज नम्बर 18 पर लिखा हुआ है मूर्ख लोग मूर्ति को ईश्वर समझते है

शिव पुराण बिदेश्वर संहिता

अर्थ- पत्थर का लिंग शूद्रों के लिए है। शूद्र का अर्थ ही मूर्ख होता है। द्विजातियों को और बुद्धिमानों को ये पत्थर के शिवलिंग नहीं पूजने चाहिए। यह पुराण का स्पष्ट आदेश है।

मूर्ख लोग मूर्ति को ईश्वर समझते हैं

मृच्छिता धातुर्दार्वादि मूर्तावीश्वर युद्धः।
क्लिश्यन्तितपसामूढ़ाः परांशान्तिं न यान्ति ते।।

(महानिर्वाणतंत्र)

अर्थ- मूर्ख लोग मिट्टी, पत्थर, धातु अथवा लकड़ी की मूर्तियों को ईश्वर समझते हैं। इनको कभी शांति प्राप्ति नहीं हो सकती है।

जलमय तीर्थ व मिट्टी के देवता नहीं होते
न हा्रम्यानि तीर्थनि न देवा मृच्छिलामयाः।।

(भागवत पुराण….)”

ऐसे लोगों को कभी शांति प्राप्ति नहीं हो सकती है जो मूर्ख लोग मिट्टी, पत्थर, धातु अथवा लकड़ी की मूर्तियों को ईश्वर समझते हैं

शूद्र का अर्थ है मूर्ख, शिव पुराण बिंदेश्वर संहिता पेज नम्बर 18 पर लिखा हुआ है मूर्ख लोग मूर्ति को ईश्वर समझते है

शिव पुराण बिदेश्वर संहिता

अर्थ- पत्थर का लिंग शूद्रों के लिए है। शूद्र का अर्थ ही मूर्ख होता है। द्विजातियों को और बुद्धिमानों को ये पत्थर के शिवलिंग नहीं पूजने चाहिए। यह पुराण का स्पष्ट आदेश है।

मूर्ख लोग मूर्ति को ईश्वर समझते हैं

मृच्छिता धातुर्दार्वादि मूर्तावीश्वर युद्धः।
क्लिश्यन्तितपसामूढ़ाः परांशान्तिं न यान्ति ते।।

(महानिर्वाणतंत्र)

अर्थ- मूर्ख लोग मिट्टी, पत्थर, धातु अथवा लकड़ी की मूर्तियों को ईश्वर समझते हैं। इनको कभी शांति प्राप्ति नहीं हो सकती है।

जलमय तीर्थ व मिट्टी के देवता नहीं होते
न हा्रम्यानि तीर्थनि न देवा मृच्छिलामयाः।।

(भागवत पुराण….)”

मूर्ति पूजा के प्रति धार्मिक ग्रंथों की आलोचना हमें यह सिखाती है कि ईश्वर की सच्ची प्राप्ति प्रतीकों और बाहरी रूपों से परे है। यह हमें आंतरिक शुद्धि, ध्यान और सच्ची भक्ति की ओर प्रेरित करती है। लेकिन साथ ही, हमें यह भी समझना चाहिए कि हर व्यक्ति की आध्यात्मिक यात्रा अलग होती है, क्योंकि पृथ्वी एक जलता हुआ अंगार है इस पृथ्वी दो प्रकार के लोग रहते है धर्मी और अधर्मी। Murti Pooja

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पृथ्वी में मनुष्य ही एक ऐसी जाति है जिससे ईश्वर प्रेम रखता है जो धर्मी लोग है वे धर्म यानी भगवान को लेकर आगे बढ़ते है और इस संसार पर विजय प्राप्त करते है मगर जो अधर्मी लोग होते है जैसे जो ईश्वर का भय नही मानते है और अपनी मन मर्जी करते रहते है जैसे चोर करना, पढ़ाई के नाम पर छात्रों के साथ खिलवाड़ करना, झूठ बोलना, रिश्वत देना और लेना आदि। Murti Pooja

अंत में, यह कह सकते हैं कि मूर्ति पूजा और इसकी आलोचना दोनों ही मनुष्य अपने-अपने तरीके से इन रास्तों को चुनता है कि उसे मृत्यु लोग यानी नरक जाना है या फिर सच्चाई खराई और नेकी के रास्तों को अपने जीवन में अपना कर स्वर्गीय स्थानों पर विराजमान होना। यह इंसान के अपने हाथ में है क्योंकि इंसान को ईश्वर ने तरक वितरक, सच्च झूठ यानी चेतन योनी दी है जो प्रतीकात्मकता और ध्यान के माध्यम से आध्यात्मिकता की ओर बढ़ने का एक साधन है, वहीं दूसरी ओर यह भी आवश्यक है कि हम इस प्रतीकात्मकता से परे जाकर सच्ची भक्ति और ईश्वर के साथ एकता की दिशा में प्रयास करें। धार्मिक ग्रंथों में दी गई शिक्षाएँ हमें इस दिशा में मार्गदर्शन करती हैं और हमें एक संतुलित दृष्टिकोण अपनाने के लिए प्रेरित करती हैं। जिससे मनुष्य योनी चेतन योनी का फायदा हमारी आत्मा और प्राण की सुरक्षा करने में सहायक हो सकते है।


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