Mrs Radha Raturi at Doon Library: साहित्य और इतिहास समाज का आईना होते हैं। ये न केवल हमें अतीत से जोड़ते हैं, बल्कि वर्तमान और भविष्य को समझने में भी मदद करते हैं। ऐसी ही ऐतिहासिक यात्रा पर आधारित पुस्तक “गढ़वाल और प्रथम विश्व युद्ध” का विमोचन आज दून लाइब्रेरी में मुख्य सचिव श्रीमती राधा रतूड़ी के द्वारा किया गया। यह अवसर केवल एक पुस्तक के विमोचन तक सीमित नहीं था, बल्कि यह इतिहास, संस्कृति, और साहित्य के प्रति श्रद्धांजलि का एक यादगार क्षण भी था।
गढ़वाल और प्रथम विश्व युद्ध: पुस्तक की झलक
लेखक श्री देवेश जोशी की यह पुस्तक गढ़वाल की वीरता और प्रथम विश्व युद्ध में उसकी अनोखी भूमिका को रेखांकित करती है। गढ़वाल क्षेत्र ने इस युद्ध में अपनी अदम्य साहस और निष्ठा का परिचय दिया था। इस पुस्तक में उन गुमनाम योद्धाओं की कहानियों को उजागर किया गया है, जिन्होंने अपने प्राणों की आहुति देकर देश का मान बढ़ाया।
लेखक ने इस पुस्तक में ऐतिहासिक तथ्यों, दस्तावेजों और युद्ध के दौरान गढ़वाल के योगदान को बड़े ही रोचक और गहन तरीके से प्रस्तुत किया है। यह पुस्तक न केवल इतिहास प्रेमियों के लिए उपयोगी है, बल्कि आने वाली पीढ़ियों को प्रेरणा देने का कार्य भी करती है।
कार्यक्रम की प्रमुख झलकियां
मुख्य अतिथि और अन्य विशिष्टजन
इस ऐतिहासिक विमोचन कार्यक्रम में मुख्य अतिथि मुख्य सचिव श्रीमती राधा रतूड़ी ने पुस्तक को विमोचित करते हुए लेखक के प्रयासों की सराहना की। उन्होंने कहा, “गढ़वाल की वीरता और प्रथम विश्व युद्ध के दौरान उनके योगदान को इस पुस्तक के माध्यम से अमर कर दिया गया है। यह एक ऐतिहासिक और प्रेरणादायक दस्तावेज है।”
कार्यक्रम में कई गणमान्य व्यक्तियों ने भाग लिया, जिनमें अपर सचिव श्री ललित मोहन रयाल, पूर्व पुलिस महानिदेशक श्री अनिल रतूड़ी, दून यूनिवर्सिटी की कुलपति श्रीमती सुरेखा डंगवाल और सुप्रसिद्ध लोक गायक श्री नरेन्द्र सिंह नेगी शामिल थे।
लेखक देवेश जोशी का दृष्टिकोण
पुस्तक के लेखक श्री देवेश जोशी ने अपने संबोधन में कहा, “यह पुस्तक मेरे लिए केवल एक लेखन का कार्य नहीं था, बल्कि गढ़वाल के उन वीर योद्धाओं के प्रति एक श्रद्धांजलि है जिन्होंने प्रथम विश्व युद्ध में अपने प्राणों की आहुति दी। मेरा उद्देश्य इन कहानियों को हर भारतीय तक पहुंचाना है।”
गढ़वाल और प्रथम विश्व युद्ध का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य
प्रथम विश्व युद्ध (1914-1918) में भारत के कई क्षेत्रों ने ब्रिटिश सेना के लिए अपने सैनिक भेजे। गढ़वाल की भूमि, जो अपनी वीरता और निष्ठा के लिए जानी जाती है, ने भी इस युद्ध में अहम भूमिका निभाई।
गढ़वाल राइफल्स का योगदान
गढ़वाल राइफल्स की वीरता प्रथम विश्व युद्ध के दौरान इतिहास के पन्नों में दर्ज हुई। उनके अनुशासन, साहस और बलिदान ने न केवल युद्ध में बल्कि वैश्विक स्तर पर भी उनकी पहचान बनाई। पुस्तक में इस रेजिमेंट की अद्भुत गाथाओं का वर्णन किया गया है, जो पाठकों को गर्व का अनुभव कराती हैं।
लोक संस्कृति में युद्ध का प्रभाव
गढ़वाल के सैनिकों का युद्ध में जाना न केवल एक सैन्य योगदान था, बल्कि इसका प्रभाव क्षेत्र की लोक संस्कृति, गीतों और परंपराओं पर भी पड़ा। लोक गायक श्री नरेन्द्र सिंह नेगी ने इस पहलू पर प्रकाश डालते हुए कहा कि “गढ़वाल के बलिदानों को लोक संगीत के माध्यम से जीवंत रखने का प्रयास किया गया है।”
Mrs Radha Raturi at Doon Library: “गढ़वाल और प्रथम विश्व युद्ध” पुस्तक का विमोचन: इतिहास और साहित्य का संगम….
कार्यक्रम के दौरान व्यक्त विचार Mrs Radha Raturi at Doon Library:
श्रीमती सुरेखा डंगवाल का दृष्टिकोण
दून यूनिवर्सिटी की कुलपति श्रीमती सुरेखा डंगवाल ने पुस्तक को ऐतिहासिक शोध का अद्भुत उदाहरण बताया। उन्होंने कहा, “इस पुस्तक में इतिहास को न केवल तथ्यों के रूप में प्रस्तुत किया गया है, बल्कि इसे भावनात्मक और साहित्यिक दृष्टिकोण से भी सजीव किया गया है। यह शोध और लेखन का बेजोड़ संगम है।”
श्री ललित मोहन रयाल की बात
अपर सचिव श्री ललित मोहन रयाल ने कहा, “गढ़वाल और प्रथम विश्व युद्ध जैसी पुस्तकें इतिहास को जनमानस तक पहुंचाने का सशक्त माध्यम हैं। यह हमें हमारी जड़ों से जोड़ती हैं और हमारी सांस्कृतिक पहचान को सुदृढ़ करती हैं।”
लोक गायक का संगीत और साहित्य से जुड़ाव
कार्यक्रम में सुप्रसिद्ध लोक गायक श्री नरेन्द्र सिंह नेगी ने अपने गीतों के माध्यम से गढ़वाल की वीरता को सलाम किया। उन्होंने कहा, “पुस्तक और संगीत दोनों ही हमारी सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित रखने के माध्यम हैं। ‘गढ़वाल और प्रथम विश्व युद्ध’ पुस्तक ने इस धरोहर को साहित्यिक स्वरूप में प्रस्तुत किया है।”
पुस्तक का महत्व और प्रभाव
युवाओं के लिए प्रेरणा
यह पुस्तक न केवल इतिहास की गहराइयों में जाने का अवसर प्रदान करती है, बल्कि युवाओं को अपने पूर्वजों की वीरता और देशभक्ति से प्रेरित होने का मौका भी देती है। मुख्य सचिव श्रीमती राधा रतूड़ी ने इस बात पर जोर दिया कि “युवाओं को ऐसी पुस्तकों से सीख लेकर समाज और देश के प्रति अपनी जिम्मेदारी समझनी चाहिए।”
शोधकर्ताओं के लिए उपयोगी
यह पुस्तक शोधकर्ताओं, इतिहासकारों और छात्रों के लिए एक अनमोल संसाधन साबित हो सकती है। इसमें दी गई जानकारी ऐतिहासिक तथ्यों और प्राथमिक स्रोतों पर आधारित है, जो इसे और भी प्रामाणिक बनाती है।
लेखक के प्रति सम्मान
कार्यक्रम के अंत में लेखक श्री देवेश जोशी को सम्मानित किया गया। उन्हें इस ऐतिहासिक और साहित्यिक योगदान के लिए विशेष प्रशंसा पत्र प्रदान किया गया। सभी गणमान्य व्यक्तियों ने उनकी इस कृति को आने वाली पीढ़ियों के लिए एक धरोहर बताया।
Mrs Radha Raturi at Doon Library
“गढ़वाल और प्रथम विश्व युद्ध” न केवल एक पुस्तक है, बल्कि यह गढ़वाल की वीरता और इतिहास को श्रद्धांजलि है। यह पाठकों को न केवल अतीत से जोड़ती है, बल्कि वर्तमान में भी प्रेरित करती है। ऐसे साहित्यिक प्रयास हमारे समाज और संस्कृति को समृद्ध करते हैं और हमें अपनी पहचान पर गर्व करने का अवसर प्रदान करते हैं।
“इतिहास को याद रखें, क्योंकि यह भविष्य के लिए मार्गदर्शक है।”