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Ultrasound Center गर्भावस्था में लिंग जांच एक गंभीर अपराध है; एक सामाजिक और कानूनी दृष्टिकोण

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Ultrasound Center गर्भावस्था में लिंग जांच: एक सामाजिक और कानूनी दृष्टिकोण

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Ultrasound Center: भारत में, गर्भावस्था के दौरान लिंग जांच करवाना एक गंभीर अपराध माना जाता है। यह प्रथा लैंगिक असमानता को बढ़ावा देने के साथ-साथ समाज में बेटियों के खिलाफ भेदभाव को प्रोत्साहित करती है। इस लेख में हम गर्भावस्था में लिंग जांच के सामाजिक, कानूनी और नैतिक पहलुओं (Ultrasound Center) पर विस्तार से चर्चा करेंगे, और इसके दुष्प्रभावों तथा रोकथाम के उपायों पर विचार करेंगे।

गर्भावस्था में लिंग जांच की पृष्ठभूमि

भारतीय समाज में बेटे को ज्यादा महत्व दिया जाता है, जिसके कारण कई परिवार यह जानने के लिए उत्सुक रहते हैं कि उनकी संतान बेटा है या बेटी। यह सोच हमारे समाज में गहराई तक जड़ें जमाए हुए है। इस प्रवृत्ति के कारण गर्भावस्था में लिंग जांच की मांग बढ़ी है। हालांकि, यह जांच कानूनन अपराध है और इसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं।

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MN Kuriyal Ultrasound Center

कानून और प्रावधान

भारत सरकार ने गर्भधारण और प्रसव पूर्व निदान तकनीक (पीसीपीएनडीटी) अधिनियम, 1994 पारित किया है, जो गर्भावस्था के दौरान लिंग की जांच पर पूर्ण रूप से प्रतिबंध लगाता है। इस अधिनियम का मुख्य उद्देश्य कन्या भ्रूण हत्या को रोकना और लैंगिक असमानता को समाप्त करना है। इस कानून के तहत, लिंग जांच करवाने और करने वाले दोनों को कड़ी सजा दी जाती है।

  1. पीसीपीएनडीटी अधिनियम: इस अधिनियम के अनुसार, कोई भी व्यक्ति, क्लिनिक या डॉक्टर गर्भावस्था के दौरान लिंग निर्धारण नहीं कर सकता। यदि कोई ऐसा करता है, तो उसे जेल की सजा, भारी जुर्माना या दोनों का सामना करना पड़ सकता है।
  2. जेल की सजा: कानून का उल्लंघन करने पर पांच साल तक की जेल हो सकती है।
  3. जुर्माना: इसके साथ ही, अपराधी को 50,000 रुपये तक का जुर्माना भी भुगतना पड़ सकता है।

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सामाजिक प्रभाव

गर्भावस्था में लिंग जांच का सबसे बड़ा नकारात्मक प्रभाव समाज पर पड़ता है। इससे लैंगिक असमानता बढ़ती है और कन्या भ्रूण हत्या को बढ़ावा मिलता है। इसके परिणामस्वरूप, समाज में बेटियों की संख्या घटती जाती है, जो कि गंभीर सामाजिक असंतुलन का कारण बनता है।


गर्भावस्था में लिंग की जांच करवाना अपराध है ऐसा करने और कराने वाले दोनों को कानून कड़ी सजा देता है


MN Kuriyal Ultrasound Center

Dr. S P Kuriyal

Sr Radiologist
Former CMO Chamoli
Principal Superintendent
District Hospital Uttarkashi
Sr Consultant MAX Hospital Dehradun
and Doon Hospital

  1. लैंगिक असमानता: लिंग जांच के कारण बेटे को अधिक महत्व मिलता है और बेटियों को कमतर समझा जाता है। इससे समाज में लैंगिक असमानता बढ़ती है।
  2. कन्या भ्रूण हत्या: कई मामलों में, अगर जांच से यह पता चलता है कि गर्भ में बेटी है, तो उसे गर्भपात करवा दिया जाता है। यह न केवल नैतिक दृष्टि से गलत है बल्कि सामाजिक दृष्टि से भी हानिकारक है।
  3. महिलाओं की स्थिति: यह प्रवृत्ति महिलाओं की स्थिति को कमजोर करती है और उनके प्रति भेदभाव को बढ़ावा देती है।

नैतिक और चिकित्सीय दृष्टिकोण

नैतिक दृष्टिकोण से, गर्भावस्था में लिंग जांच न केवल गलत है बल्कि अमानवीय भी है। यह मानवाधिकारों का उल्लंघन है और समाज में नैतिक पतन का प्रतीक है। चिकित्सीय दृष्टिकोण से भी, यह प्रथा असुरक्षित और अनैतिक है।

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  1. नैतिक दृष्टिकोण: हर संतान, चाहे वह बेटा हो या बेटी, समान रूप से महत्वपूर्ण और मूल्यवान होती है। लिंग जांच और इसके परिणामस्वरूप होने वाले गर्भपात नैतिकता के खिलाफ हैं।
  2. चिकित्सीय दृष्टिकोण: लिंग जांच और अवैध गर्भपात कई बार असुरक्षित होते हैं और गर्भवती महिला के स्वास्थ्य के लिए खतरनाक साबित हो सकते हैं।

रोकथाम और जागरूकता

गर्भावस्था में लिंग जांच को रोकने के लिए सरकार और समाज को मिलकर काम करना होगा। इसके लिए कानून का सख्ती से पालन और लोगों में जागरूकता बढ़ाना आवश्यक है।

  1. कानून का सख्ती से पालन: पीसीपीएनडीटी अधिनियम का सख्ती से पालन करना चाहिए और इसका उल्लंघन करने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जानी चाहिए।
  2. जागरूकता अभियान: समाज में लिंग जांच के खिलाफ जागरूकता फैलाने के लिए व्यापक अभियान चलाने चाहिए। लोगों को यह समझाना जरूरी है कि बेटियां भी उतनी ही महत्वपूर्ण हैं जितने बेटे।
  3. शिक्षा का प्रचार: समाज में शिक्षा का प्रचार-प्रसार करना चाहिए, जिससे लोग लैंगिक समानता के महत्व को समझ सकें।

एम एन कुरियाल अल्ट्रासाउंड सेंटर (MN Kuriyal Ultrasound Center) की भूमिका

एम एन कुरियाल अल्ट्रासाउंड सेंटर, उत्तरकाशी में डॉ. एस पी कुरियाल द्वारा संचालित, गर्भावस्था में लिंग जांच के खिलाफ जागरूकता फैलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। डॉ. कुरियाल एक वरिष्ठ रेडियोलॉजिस्ट हैं, जिन्होंने अपने करियर में कई महत्वपूर्ण पदों पर काम किया है, जैसे कि पूर्व सीएमओ चमोली, प्रिंसिपल सुपरिंटेंडेंट जिला अस्पताल उत्तरकाशी, वरिष्ठ सलाहकार मैक्स अस्पताल देहरादून और दून अस्पताल।

  1. जागरूकता फैलाना: डॉ. कुरियाल अपने सेंटर में गर्भवती महिलाओं और उनके परिवारों को लिंग जांच के खिलाफ जागरूक करते हैं और उन्हें इसके कानूनी और नैतिक पहलुओं के बारे में जानकारी देते हैं।
  2. कानूनी सहायता: सेंटर में आने वाले मरीजों को पीसीपीएनडीटी अधिनियम और इसके तहत दिए जाने वाले दंड के बारे में जानकारी प्रदान की जाती है।
  3. समुदाय में प्रचार: डॉ. कुरियाल और उनकी टीम समुदाय में लिंग जांच के खिलाफ प्रचार करते हैं और लोगों को इसके दुष्प्रभावों के बारे में बताते हैं।

निष्कर्ष

गर्भावस्था में लिंग जांच एक गंभीर अपराध है जो समाज में लैंगिक असमानता और कन्या भ्रूण हत्या को बढ़ावा देता है। इसे रोकने के लिए सरकार, समाज और चिकित्सा समुदाय को मिलकर काम करना होगा। कानून का सख्ती से पालन, जागरूकता अभियान और शिक्षा के प्रचार-प्रसार से ही हम इस समस्या का समाधान कर सकते हैं। एम एन कुरियाल अल्ट्रासाउंड सेंटर जैसे संस्थान इस दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं और हमें उम्मीद है कि उनके प्रयास समाज में सकारात्मक बदलाव लाएंगे।


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