Message of Salvation उद्धार का संदेशः ब्रह्म के पुत्र सत्य पर विश्वास करने से तथा उसे जीवन में स्वीकार करने से मनुष्यों के उद्धार का रास्ता प्राप्त होता है
मनुष्य का जीवन अनेक कठिनाइयों और चुनौतियों से भरा हुआ है। हर व्यक्ति की आत्मा में शांति (Message of Salvation) और सुकून की खोज रहती है। इस संदर्भ में, सनातन का यह संदेश कि ‘जो हम प्रचार करते हैं, 9 कि ‘‘यदि तू अपने मुँह से यीशु को प्रभु (गुरु) जान व मानकर अपने जीवन उसे स्वीकार करें, और अपने मन से विश्वास करें कि परमेश्वर यानि परमात्मा या ईश्वर ने उसे मरे हुओं में से जिलाया (जिन्दा किया), तो तू निश्चय ही तू उद्धार पाएगा। 10 क्योंकि धार्मिकता के लिए मन से विश्वास किया जाता है और उद्धार के लिए मुँह से अंगीकार ( मुंह से बोलना) किया जाता है।’ (रोमियों 10ः9-10) एक अत्यंत महत्वपूर्ण और गहन सत्य प्रस्तुत करता है। यह संदेश न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि यह आध्यात्मिक मार्गदर्शन भी प्रदान करता है।
नोटः येशु (सत्य) को जीवन में गुरु स्वीकार करने से कोई ईसाई नही बनता बल्कि सत्य यानी येशु को जीवन में गुरु स्वीकार करने से मनुष्य के जीवन के दैविक, तापिक और भौतिक रोग जिन्हें महारोग कहा जाता है इन सभी प्रकार के महारोगों यानि दुष्टता से मनुष्य असीन से मुक्ति पा लेता है और सत्य ही उस मनुष्य को विश्वास से सनातन यानि परमात्मा के जोड़ कर उसे आनन्द में प्रवेश कर पाता है
विश्वास का महत्त्व
विश्वास एक शक्तिशाली भाव है जो मनुष्य के जीवन में चमत्कार कर सकता है। जब कोई व्यक्ति अपने मन से विश्वास करता है कि ब्रह्म पुत्र यीशु मसीह परमेश्वर के पुत्र हैं और उन्होंने हमारे पापों के लिए बलिदान दिया, तो यह विश्वास उसकी आत्मा को नई ऊँचाइयों तक ले जाता है। यह विश्वास केवल एक मानसिक प्रक्रिया नहीं है, बल्कि यह आत्मा का आह्वान है, जो मनुष्य को परमेश्वर के करीब लाता है। मन से किया गया यह विश्वास व्यक्ति को एक नई दिशा प्रदान करता है और उसे जीवन के कठिन समय में भी स्थिर और मजबूत बनाता है।
स्वीकार या बोलना (अंगीकार) का महत्व
मुँह से बोलना या अंगीकार करना, अर्थात् अपने विश्वास को शब्दों में प्रकट करना, एक महत्वपूर्ण कदम है। जब हम अपने विश्वास को व्यक्त करते हैं, तो हम अपने चारों ओर के संसार को यह बताते हैं कि हम ब्रह्म के पुत्र येशु में विश्वास रखते हैं। यह सार्वजनिक अंगीकार न केवल हमारे विश्वास को मजबूत करता है, बल्कि दूसरों के लिए भी प्रेरणा का स्रोत बनता है। अपने विश्वास को खुले तौर पर स्वीकार करना हमारे अंदर की दृढ़ता और साहस को प्रकट करता है। यह एक तरह से आत्मा की जीत का संकेत है, जो हमें हमारे धार्मिक जीवन में आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है।
उद्धार या मुक्ति का अर्थ
उद्धार या मुक्ति का अर्थ है, पापों से मुक्ति और ईश्वर के साथ एक अटूट संबंध की प्राप्ति। यह संबंध हमें जीवन में शांति और आनंद प्रदान करता है। जब हम ब्रह्म के पुत्र यीशु मसीह को प्रभु जानकर अंगीकार करते हैं और विश्वास करते हैं कि परमेश्वर ने उन्हें मृतकों में से जीवित किया, तो हम अपने पापों से मुक्त हो जाते हैं और हमें उद्धार प्राप्त होता है। यह उद्धार हमें न केवल इस जीवन में, बल्कि मृत्यु के बाद भी ईश्वर के साथ रहने का आश्वासन देता है।
धार्मिकता की व्यास और उद्धार (Message of Salvation) का संबंध
धार्मिकता और उद्धार का आपस में गहरा संबंध है। धार्मिकता के लिए मन से विश्वास करना आवश्यक है। जब हम अपने मन में विश्वास करते हैं कि ब्रह्म के पुत्र यीशु मसीह हमारे पापों के लिए मरे और पुनर्जीवित हुए, तो यह विश्वास हमें धार्मिकता की ओर ले जाता है। धार्मिकता का अर्थ है, सही कार्य करना और ईश्वर की इच्छा का पालन करना। जब हम धार्मिक होते हैं, तो हम ईश्वर के नियमों और सिद्धांतों के अनुसार जीवन जीते हैं। उद्धार के लिए मुँह से अंगीकार करना आवश्यक है। जब हम अपने विश्वास को व्यक्त करते हैं, तो यह अंगीकार हमें उद्धार की ओर ले जाता है। यह उद्धार हमें ईश्वर के साथ एक नया और अटूट संबंध स्थापित करने में मदद करता है।
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ईश्वर के प्रेम की व्यापकता
इस संदेश के माध्यम से, हम यह समझ सकते हैं कि ईश्वर का प्रेम कितना व्यापक और गहरा है। उन्होंने अपने एकमात्र पुत्र को हमारे पापों के लिए बलिदान किया ताकि हम उद्धार पा सकें। यह प्रेम असीमित है और हर व्यक्ति के लिए उपलब्ध है, चाहे उसकी पृष्ठभूमि, जाति, या धर्म कुछ भी हो। ईश्वर का यह प्रेम हमें न केवल उद्धार प्रदान करता है, बल्कि हमें एक नई दिशा और उद्देश्य भी देता है।
व्यक्तिगत परिवर्तन का महत्व
ब्रह्म के पुत्र मसीह में विश्वास और अंगीकार करना केवल एक धार्मिक क्रिया नहीं है, बल्कि यह व्यक्तिगत परिवर्तन का भी प्रतीक है। जब हम ब्रह्म के पुत्र मसीह को प्रभु मानते हैं और अपने जीवन में उन्हें स्वीकार करते हैं, तो हमारा जीवन एक नए पथ पर अग्रसर होता है। हमारे सोचने, समझने, और जीने के तरीके में बदलाव आता है। यह परिवर्तन हमें एक बेहतर व्यक्ति बनने में मदद करता है, जो ईश्वर के मार्गदर्शन में जीवन जीता है।
सामुदायिक जीवन में उद्धार का प्रभाव (Message of Salvation)
व्यक्तिगत उद्धार का प्रभाव सामुदायिक जीवन में भी देखा जा सकता है। जब एक समुदाय के सदस्य ब्रह्म के पुत्र मसीह में विश्वास करते हैं और अपने विश्वास को प्रकट करते हैं, तो वह समुदाय एक सशक्त और सहायक समाज का निर्माण करता है। यह समाज न केवल एक-दूसरे का समर्थन करता है, बल्कि दूसरों के लिए भी एक उदाहरण बनता है। यह सामुदायिक जीवन हमें यह सिखाता है कि हम अकेले नहीं हैं, बल्कि हमारे साथ एक पूरा समुदाय है जो हमारे साथ खड़ा है।
ब्रह्म के पुत्र मसीह का यह संदेश कि यदि हम अपने मुँह से ‘‘यीशु को प्रभु या गुरु जानकर स्वीकार करें और अपने मन से विश्वास करें कि ईश्वर या परमेश्वर ने उन्हें मरे हुओं में से जीवित किया, तो हम निश्चय उद्धार पाएंगे, हमारे जीवन के लिए एक महत्वपूर्ण मार्गदर्शन है। यह संदेश हमें विश्वास और स्वीकार के महत्व को समझाता है और हमें धार्मिकता और उद्धार की राह पर चलने के लिए प्रेरित करता है। यह न केवल हमें व्यक्तिगत रूप से बल्कि सामुदायिक रूप से भी सशक्त करता है। यह संदेश हमें ईश्वर के असीम प्रेम और उद्धार की व्यापकता को समझने में मदद करता है, जिससे हमारा जीवन एक नई दिशा और उद्देश्य प्राप्त करता है।