Mahila Doctor कोलकाता में महिला डॉक्टर के साथ हुई बर्बरता के खिलाफ नैनीताल के मेडिकल स्टाफ और छात्रों का विरोध प्रदर्शन
Mahila Doctor: पश्चिम बंगाल के कोलकाता में आर.जी. कर अस्पताल की महिला डॉक्टर के साथ हुए बर्बर बलात्कार और नृशंस हत्या ने पूरे देश को हिला कर रख दिया है। इस घटना ने न केवल चिकित्सा समुदाय में आक्रोश पैदा किया है, बल्कि आम जनता भी इस जघन्य अपराध के खिलाफ सड़कों पर उतर आई है। इसी क्रम में नैनीताल के बी.डी. पांडे अस्पताल और नर्सिंग कॉलेज के छात्र-छात्राओं ने भी इस घटना के विरोध में एकजुट होकर जोरदार प्रदर्शन किया और न्याय की मांग की।
विरोध प्रदर्शन: नैनीताल की सड़कों पर उतरा मेडिकल समुदाय Mahila Doctor
- नैनीताल में 17 अगस्त 2024 को बी.डी. पांडे अस्पताल और नर्सिंग कॉलेज के छात्र-छात्राएं, डॉक्टर, नर्स, और अन्य मेडिकल स्टाफ ने कोलकाता में हुई इस बर्बर घटना के खिलाफ सड़कों पर उतरकर विरोध जताया। विरोध प्रदर्शन की शुरुआत मल्लीताल स्थित बी.डी. पांडे अस्पताल से हुई, जहां से एक बड़ी रैली निकाली गई। यह रैली मॉलरोड होते हुए तल्लीताल की गांधी प्रतिमा तक पहुंची और फिर वापस मॉलरोड होते हुए मल्लीताल में समाप्त हुई। Mahila Doctor
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न्याय की मांग: ‘सफेद कोट लाल हो जाता है, तो समाज काला हो जाता है’
रैली के दौरान आंदोलनकारियों ने जोरदार नारेबाजी की और बैनर हाथ में लेकर अपने गुस्से का इज़हार किया। उनके नारों में गुस्सा और बेबसी दोनों झलक रही थी। “जब सफेद कोट लाल हो जाता है, तो समाज काला हो जाता है”, “फांसी दो फांसी दो, बलात्कारियों को फांसी दो”, “हमें न्याय चाहिए”, “महिला हिंसा बंद करो”, “सुरक्षा नहीं तो ड्यूटी नहीं” जैसे नारों से माहौल गूंज उठा।
यह नारे न केवल इस घटना की निंदा करने के लिए थे, बल्कि यह उन तमाम घटनाओं के खिलाफ भी थे जो देश में लगातार हो रही हैं और जिनके खिलाफ आवाज उठाने की जरूरत है।
चिकित्सा समुदाय का आक्रोश: ‘सुरक्षा नहीं तो ड्यूटी नहीं’
इस घटना के बाद से चिकित्सा समुदाय में गहरा आक्रोश है। डॉक्टरों और नर्सों का कहना है कि जब तक उन्हें सुरक्षित माहौल नहीं मिलेगा, तब तक उनका काम करना मुश्किल हो जाएगा। उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि अगर सरकार और संबंधित अधिकारियों द्वारा उनकी सुरक्षा के लिए ठोस कदम नहीं उठाए गए तो वे ड्यूटी पर नहीं लौटेंगे।
यह विरोध प्रदर्शन केवल एक घटना के खिलाफ नहीं था, बल्कि यह एक आवाज थी उस समग्रता के खिलाफ जो महिला डॉक्टरों और स्वास्थ्यकर्मियों के साथ हो रही हिंसा के खिलाफ उठी। यह नारा “सुरक्षा नहीं तो ड्यूटी नहीं” इस बात का स्पष्ट संकेत था कि अब चिकित्सा समुदाय अपने अधिकारों और सुरक्षा के लिए समझौता नहीं करेगा।
मेडिकल स्टाफ और समाज का एकजुट होना
इस विरोध प्रदर्शन में नैनीताल के मेडिकल स्टाफ के साथ-साथ स्थानीय व्यापार मंडलों के प्रतिनिधियों ने भी हिस्सा लिया। माँ नयना देवी व्यापार मंडल के अध्यक्ष पुनीत टंडन, तल्लीताल व्यापार मंडल के अध्यक्ष मारुति नंदन साह, और अन्य स्थानीय नेताओं ने भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराई और इस आंदोलन को अपना समर्थन दिया।
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बी.डी. पांडे अस्पताल के पी.एम.एस. डॉ. तरुण कुमार टम्टा, डॉ. एम.एस. दुगताल, डॉ. द्रौपदी गर्भयाल, डॉ. अनिरुद्ध गंगोला, डॉ. नरेंद्र सिंह रावत, डॉ. दीपिका लोहानी, डॉ. आरुषि गुप्ता, डॉ. कोमल गुरुरानी, डॉ. यति उप्रेती, डॉ. मोनिका कांडपाल, डॉ. अभिषेक गुप्ता, डॉ. हर्षवर्धन पंत, डॉ. हिमांशु शरण, नेहा कांडपाल, डॉ. सुधांशु सिंह, डॉ. वी.के. मिश्रा, शशिकला पांडेय, ऋतु डेविड, डी.सी. पांडे, आई.के. जोशी, बी.एस. गंगोला, मनोज के. पांडे, हिमांशु मठपाल, आरती राणा, भुवनेश्वरी रूपवाल, ललित जोशी समेत कई लोग इस आंदोलन में शामिल हुए और अपना विरोध जताया।
क्या है आगे की राह?
इस घटना ने देशभर के चिकित्सा समुदाय में असुरक्षा की भावना को जन्म दिया है। डॉक्टर, नर्स, और अन्य स्वास्थ्यकर्मी अब खुद को असुरक्षित महसूस कर रहे हैं और यह स्थिति किसी भी देश के लिए चिंताजनक हो सकती है। इस विरोध प्रदर्शन के जरिए नैनीताल के चिकित्सा समुदाय ने न केवल कोलकाता की घटना की निंदा की है, बल्कि उन्होंने यह भी स्पष्ट संदेश दिया है कि अगर उनकी सुरक्षा की गारंटी नहीं दी गई तो वे अपने कामकाज को लेकर कड़ा रुख अपनाएंगे।
यह आंदोलन देश के अन्य हिस्सों में भी फैल सकता है और सरकार के लिए यह जरूरी हो जाता है कि वह जल्द से जल्द इस मामले में कार्रवाई करे।
न्याय की मांग और सुरक्षा की गारंटी Mahila Doctor
कोलकाता में महिला डॉक्टर के साथ हुई इस बर्बर घटना ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है। नैनीताल में हुए इस विरोध प्रदर्शन ने यह दिखाया कि देशभर के चिकित्सा समुदाय के लोग इस घटना के खिलाफ एकजुट हैं और वे न्याय की मांग कर रहे हैं।
इस घटना ने यह स्पष्ट कर दिया है कि महिलाओं के खिलाफ होने वाली हिंसा अब और बर्दाश्त नहीं की जाएगी। चिकित्सा समुदाय ने जिस तरह से एकजुट होकर इस घटना के खिलाफ आवाज उठाई है, वह एक उदाहरण है कि जब समाज एकजुट होता है, तो कोई भी समस्या हल हो सकती है। अब यह सरकार की जिम्मेदारी है कि वह जल्द से जल्द इस मामले में न्याय दिलाए और देशभर के चिकित्सा समुदाय को उनकी सुरक्षा की गारंटी दे।
“सुरक्षा नहीं तो ड्यूटी नहीं” का नारा अब सिर्फ एक नारा नहीं, बल्कि एक सच्चाई बन चुका है। इस सच्चाई को समझने और इसके अनुसार कार्य करने की जरूरत है, ताकि भविष्य में ऐसी घटनाएं दोबारा न हों और देश का चिकित्सा समुदाय खुद को सुरक्षित महसूस कर सके।