Printing-Advt-ukjosh

Mahalaxmi Poojan : ज्योतिषीय दृष्टिकोण से तिथि निर्धारण; महालक्ष्मी पूजन 2024- शास्त्रीय दृष्टिकोण और परंपरा


Mahalaxmi Poojan महालक्ष्मी पूजन 2024: शास्त्रीय दृष्टिकोण और परंपरा

Mahalaxmi Poojan : इस वर्ष (संवत 2081) के महालक्ष्मी पूजन की तिथि को लेकर श्रद्धालुओं और विद्वानों के बीच किंचित असमंजस की स्थिति बनी हुई है। दीपावली के अंतर्गत महालक्ष्मी पूजन की तिथि को लेकर विवाद इसलिए उत्पन्न हुआ है क्योंकि कुछ लोग 31 अक्टूबर 2024 को इसे मनाने का सुझाव दे रहे हैं, जबकि प्रतिष्ठित ज्योतिषीय संस्थानों और विद्वानों ने 1 नवंबर 2024 को पूजन के लिए सर्वसम्मति से स्वीकृति प्रदान की है।

इस संदर्भ में सेवा निवृत्त वन क्षेत्राधिकारी और प्रख्यात ज्योतिषाचार्य श्री कैलाश चंद्र सुयाल जी से ज्ञान प्राप्त करने का सौभाग्य मुझे (बृजमोहन जोशी) प्राप्त हुआ। उनके अनुसार, पूजन की तिथि को लेकर जो भी भ्रम की स्थिति है, वह ज्योतिषीय गणनाओं के गहन विश्लेषण के अभाव में उत्पन्न हुआ है।


महालक्ष्मी पूजन की तिथि को लेकर विवाद और समाधान Mahalaxmi Poojan : 

आचार्य श्री सुयाल जी के अनुसार, कांची पीठाधीश्वर शंकराचार्य स्वामी विजयेन्द्र सरस्वती जी महाराज ने इस वर्ष के महालक्ष्मी पूजन के लिए 1 नवंबर 2024 की तिथि को ही उपयुक्त बताया था। उनके मार्गदर्शन में यह निर्णय विभिन्न विद्वानों से विचार-विमर्श के उपरांत लिया गया था, जिसे चुनौती देना उचित नहीं माना जा सकता। कुमाऊँ क्षेत्र के तीन प्रमुख पंचांगों—श्री गणेश मार्तण्ड, श्री तारा प्रसाद पंचांग, और नक्षत्र लोक—ने भी इस बात की पुष्टि की है कि महालक्ष्मी पूजन 1 नवंबर को ही मनाया जाना चाहिए।


ज्योतिषीय दृष्टिकोण से तिथि निर्धारण

ज्योतिष के अनुसार, इस वर्ष दोनों दिन प्रदोष व्यापिनी अमावस्या का संयोग बन रहा है, लेकिन 31 अक्टूबर को अमावस्या चतुर्दशी विद्धा है। ऐसे में, पहले दिन पूजन करना शास्त्रों के अनुसार उपयुक्त नहीं है। विद्वानों के अनुसार, “तिथि तत्व” नामक प्राचीन ग्रंथ में स्पष्ट रूप से कहा गया है:

“दण्डैकरजनी योगे दर्श: स्यात्तु परेsहनि तथा विहार पूर्वेद्यु:”

इस श्लोक के अनुसार, प्रदोष व्यापिनी अमावस्या के दूसरे दिन, अर्थात् 1 नवंबर को महालक्ष्मी पूजन करना अधिक उचित है। नैनीताल के मां नयना देवी मंदिर के सूचना पटल पर भी यही तिथि प्रदर्शित की गई है।


अन्य स्थानों के निर्णय और सम्मतियाँ

न केवल नैनीताल, बल्कि आसपास के प्रमुख धार्मिक और सामाजिक संगठनों ने भी इस तिथि का समर्थन किया है। प्रांतीय व्यापार मंडल, हल्द्वानी द्वारा आयोजित निर्णय सभा में भी सर्वसम्मति से 1 नवंबर को पूजन के लिए चुना गया। इसी प्रकार, देहरादून के श्री कालिका मंदिर में विद्वानों की एक सभा आयोजित की गई, जिसमें सभी ने 1 नवंबर को महालक्ष्मी पूजन का दिन तय किया।


ज्योतिषीय मतभेद: एक स्वाभाविक प्रक्रिया

आचार्य श्री कैलाश चंद्र सुयाल जी बताते हैं कि पूजन की तिथि को लेकर मतभेद होना भारतीय ज्योतिष की गहनता और सूक्ष्मता को दर्शाता है। यह केवल एक धार्मिक निर्णय नहीं है, बल्कि इसमें ग्रहों, नक्षत्रों और कालचक्र का सूक्ष्म अध्ययन शामिल होता है। विद्वानों के बीच होने वाले मतभेदों को त्रुटि मानना अनुचित होगा क्योंकि ज्योतिषीय सिद्धांत इतने गूढ़ और जटिल होते हैं कि उनमें विचारों का विभाजन स्वाभाविक है।

Football competition कुमाऊं विश्वविद्यालय में अंतर महाविद्यालय फुटबॉल प्रतियोगिता का सफल समापन

वास्तव में, विश्व के किसी भी अन्य कैलेंडर में ग्रह-नक्षत्रों का इतना सूक्ष्म परिज्ञान नहीं किया जाता जितना भारतीय पंचांगों और ज्योतिषीय गणनाओं में होता है। इसलिए यह स्पष्ट है कि ज्योतिष की परंपरा में तिथियों के बारे में वैचारिक भिन्नता होना स्वाभाविक है।


विवाद का समाधान: द्वितीय दिवस का चयन

श्री सुयाल जी के अनुसार, यह विवाद इस बात से समाप्त हो जाता है कि चूंकि 31 अक्टूबर को अमावस्या चतुर्दशी से युक्त है, इसलिए उस दिन पूजन करना उचित नहीं होगा। द्वितीय दिवस, अर्थात् 1 नवंबर को ही महालक्ष्मी पूजन का आयोजन करना शास्त्र सम्मत है। इससे यह भी स्पष्ट होता है कि तर्क और परंपरा दोनों ही 1 नवंबर की तिथि को उचित ठहराते हैं।


महालक्ष्मी पूजन का महत्व और परंपरा

महालक्ष्मी पूजन भारतीय संस्कृति में अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान रखता है। दीपावली के अवसर पर लक्ष्मी माता की पूजा से घर-परिवार में सुख-समृद्धि और शांति का आह्वान होता है। यह पूजन केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक नहीं है, बल्कि यह जीवन में सकारात्मकता और ऊर्जा का भी संचार करता है। सही मुहूर्त और तिथि पर पूजन करने से माता लक्ष्मी का आशीर्वाद प्राप्त होता है और जीवन में आर्थिक समृद्धि के द्वार खुलते हैं।


आग्रह और आह्वान

आचार्य श्री कैलाश चंद्र सुयाल जी का यह भी कहना है कि नागरिकों को किसी भी प्रकार के भ्रम में पड़े बिना 1 नवंबर 2024 को महालक्ष्मी पूजन करना चाहिए। यह तिथि ज्योतिषीय गणनाओं और परंपरागत मान्यताओं के अनुसार सर्वथा उचित है। समाज में व्याप्त मतभेदों को शांतिपूर्ण ढंग से सुलझाना भी हमारी सांस्कृतिक परंपरा का हिस्सा है।


समापन संदेश Mahalaxmi Poojan : 

अंत में, हम यह कह सकते हैं कि दोनों तिथियों में से किसी भी दिन महालक्ष्मी पूजन करना श्रद्धा का विषय है, लेकिन द्वितीय दिवस को मनाना अधिक तर्कसंगत और शास्त्र सम्मत है। इस ज्ञानवर्धक जानकारी को श्रृद्धालुओं तक पहुँचाने के लिए परंपरा नैनीताल परिवार की ओर से आचार्य श्री कैलाश चंद्र सुयाल जी का हार्दिक धन्यवाद।

Research Student Megha Bhandari जंतु विज्ञान विभाग डीएसबी परिसर, नैनीताल की शोध छात्रा मेघा भंडारी की उपलब्धि

आइए, इस दीपावली हम सभी एकजुट होकर लक्ष्मी माता का पूजन सही तिथि पर करें और समृद्धि तथा शांति की कामना करें।

“इस वर्ष महालक्ष्मी पूजन: 1 नवंबर 2024 को”—इस संदेश को सभी तक पहुँचाना हम सबकी जिम्मेदारी है।


Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

स्किल उत्तराखण्डः युवाओं को मिले साढ़े तीन लाख रुपए मासिक वेतन के ऑफर Anti Ragging Rally डीएसबी परिसर में एंटी ड्रग्स और एंटी रैगिंग रैली: सामाजिक जागरूकता की एक महत्वपूर्ण पहल छात्रों द्वारा बनाए गए मेहंदी के डिज़ाइनों में पारंपरिक और आधुनिक दोनों प्रकार के डिज़ाइन देखने को मिले Football Tournament 76वें एचएन पांडे इंडिपेंडेंस डे चिल्ड्रन फुटबॉल टूर्नामेंट का आगाज, सैनिक स्कूल ने शानदार प्रदर्शन करते हासिल जीत Gold Price सोने के दामों में 9 फीसदी की कमी; 1 अगस्त से देश में आ जाएगा सस्ता वाला सोना ‘मरद अभी बच्चा बा’ गाना खेसारी लाल यादव और आम्रपाली दुबे की जोड़ी का एक और सुपरहिट गाना Havey Rain उत्तरकाशी में भारी बारिश से तबाही: गंगोत्री और यमुनोत्री राष्ट्रीय राजमार्ग बंद, राहत कार्य जारी Manu Bhaker: कैसे कर्मयोग की शिक्षाएं मनु भाकर की सफलता की कुंजी बनीं