Guru Purnima गुरु पूर्णिमा: गुरुओं का महापर्व
गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु: गुरुर्देवो महेश्वरः
गुरुः साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः।
गुरु पूर्णिमा (Guru Purnima), भारतीय संस्कृति और परंपरा में एक महत्वपूर्ण दिन है। यह पर्व महर्षि वेदव्यास को समर्पित है, जिनका जन्म आषाढ़ शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा के दिन लगभग 3000 वर्ष पूर्व हुआ था। यह दिन न केवल वेदव्यास जी के अद्वितीय योगदान को स्मरण करने का अवसर है, बल्कि यह गुरुओं के महत्व और उनकी महत्ता को भी समझने का दिन है। गुरु पूर्णिमा का पर्व गुरु-शिष्य परंपरा के पालन का प्रतीक है और इसे व्यास पूजा पर्व भी कहा जाता है।
महर्षि वेदव्यास: गुरुओं के गुरु
महर्षि वेदव्यास, ब्रह्मसूत्र, महाभारत, श्रीमद्भागवत, और अट्ठारह पुराणों जैसे अद्भुत साहित्यों के रचयिता, भारतीय ज्ञान-विज्ञान के महान स्तंभ हैं। उनका जन्म आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा को हुआ था और उनका जन्मोत्सव गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है। वेदव्यास जी पाराशर ऋषि के पुत्र और महर्षि वशिष्ठ के पौत्र थे। उन्हें गुरुओं का गुरु माना जाता है, जो अपने शिष्यों को अज्ञान के अंधकार से निकालकर ज्ञान के उजाले की ओर ले जाते हैं।
Guru Purnima / गुरु का महत्व
गुरु का अर्थ है ‘अंधकार से उजाले की ओर ले जाने वाला’। ‘गु’ का अर्थ अंधकार और ‘रु’ का अर्थ मिटाने वाला। गुरु अपने सदुपदेशों के माध्यम से शिष्य के अज्ञानरुपी अंधकार को नष्ट कर देते हैं। गुरु शिष्य को साक्षात् सर्वेश्वर का साक्षात्कार करवाकर उसे जन्म-मरण के बन्धन से मुक्त करते हैं। गुरु का स्थान संसार में विशेष है। गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरित मानस के आरंभ में गुरु को आदि गुरु सदाशिव का स्थान दिया है। शिव स्वयं बोध रुप एवम सृष्टि के सूत्र संचालक हैं। जब माता पार्वती ने भोलेनाथ से ब्रह्म के बारे में प्रश्न पूछा, तो भोलेनाथ ने उत्तर दिया, ‘गुरु के अतिरिक्त कोई ब्रह्म नहीं है।’
भारतीय संस्कृति में गुरु का स्थान Guru Purnima
भारतीय मान्यताओं के अनुसार, महर्षि वेदव्यास प्रत्येक द्वापर युग में जन्म लेकर वेदों का संकलन, संपादन और विभाजन करते हैं। इसीलिए उन्हें वेदव्यास या संक्षेप में व्यास कहते हैं। वेदव्यास जी वेद, पुराण, महाभारत और ब्रह्मसूत्र का प्रणयन करके भारतीय ज्ञान-विज्ञान, शास्त्र, और कलाओं की गंगा प्रवाहित करते हैं और मानव धर्म का आधार सूत्र प्रस्तुत करते हैं कि दूसरों का उपकार करना ही सबसे बड़ा पुण्य है। यही व्यास जी का चिंतन और शाश्वत संदेश है। वे भारतीयता का सृजन करके भारतीय संस्कृति के अखण्ड प्रवाह को युगों-युगों तक अक्षुण्य बनाए रखते हैं।
Parmanand परमानन्द यानी परमात्मा की सामर्थ आत्मदान से मिलता है
गुरु-शिष्य परंपरा का पालन
गुरु पूर्णिमा के दिन शिष्य अपने गुरुओं का सम्मान करते हैं और उनसे आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। यह दिन विशेष रूप से महर्षि वेदव्यास को समर्पित है, जो गुरु-शिष्य परंपरा के पालन का आदर्श उदाहरण हैं। श्रीराम के गुरु वशिष्ठ, विवेकानंद के गुरु रामकृष्ण परमहंस, और अन्य महान गुरुओं ने अपने शिष्यों को अद्वितीय ज्ञान और मार्गदर्शन प्रदान किया है। यह परंपरा हमें यह सिखाती है कि गुरु का स्थान जीवन में सर्वोपरि है और उनके बिना ज्ञान प्राप्त करना असंभव है।
गुरु पूर्णिमा का आयोजन
गुरु पूर्णिमा के दिन शिष्य अपने गुरुओं का पूजन करते हैं और उनके प्रति श्रद्धा और सम्मान व्यक्त करते हैं। इस दिन को व्यास पूजा के रूप में भी मनाया जाता है, जहां शिष्य अपने गुरुओं को नमन करते हैं और उनके द्वारा दिए गए ज्ञान के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हैं। यह पर्व न केवल गुरुओं के प्रति सम्मान का प्रतीक है, बल्कि यह हमें यह भी सिखाता है कि ज्ञान का स्रोत गुरु ही होते हैं और उनके बिना जीवन अधूरा है।
गुरु पूर्णिमा की शुभकामनाएं
गुरु पूर्णिमा के अवसर पर हम सभी को यह संकल्प लेना चाहिए कि हम अपने गुरुओं के प्रति सदैव श्रद्धा और सम्मान बनाए रखेंगे और उनके द्वारा दिए गए ज्ञान का सदुपयोग करेंगे। यह पर्व हमें यह याद दिलाता है कि गुरु ही हमारे जीवन के मार्गदर्शक होते हैं और उनके बिना हम अपने जीवन में सही दिशा नहीं पा सकते। गुरु पूर्णिमा के इस पावन अवसर पर सभी को हार्दिक शुभकामनाएं। हम सभी अपने गुरुओं के प्रति कृतज्ञ रहें और उनके मार्गदर्शन में अपने जीवन को सफल बनाएं।
Guru Purnima
गुरु पूर्णिमा (Guru Purnima) का पर्व भारतीय संस्कृति और परंपरा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह पर्व हमें यह सिखाता है कि गुरु का स्थान जीवन में सर्वोपरि है और उनके बिना जीवन अधूरा है। महर्षि वेदव्यास जैसे महान गुरुओं की स्मृति में मनाया जाने वाला यह पर्व हमें यह भी याद दिलाता है कि ज्ञान का स्रोत गुरु ही होते हैं और उनके द्वारा दिए गए ज्ञान का सदुपयोग करना हमारा कर्तव्य है। गुरु पूर्णिमा के इस पावन अवसर पर हम सभी को अपने गुरुओं के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करनी चाहिए और उनके मार्गदर्शन में अपने जीवन को सफल बनाना चाहिए।