Grok Report: नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से मुकेश अंबानी और गौतम अडानी की संपत्ति और उनके कारोबार में काफी वृद्धि हुई है, और इसको लेकर कई सवाल उठते हैं कि क्या उनकी सरकार ने इन उद्योगपतियों को खास फायदा पहुंचाया। यह एक जटिल मुद्दा है जिसमें ठोस आंकड़े, नीतियां, और राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप शामिल हैं। मैं इसे तथ्यों और उपलब्ध जानकारी के आधार पर समझाने की कोशिश करूंगा।अंबानी और अडानी को कितना फायदा पहुंचा?
गौतम अडानी की संपत्ति में वृद्धि: Grok Report
जब मोदी 2014 में प्रधानमंत्री बने, तब अडानी की संपत्ति करीब 7-8 बिलियन डॉलर थी। आज (मार्च 2025 तक), उनकी नेटवर्थ 80 बिलियन डॉलर से ज्यादा हो चुकी है। अडानी ग्रुप को कई बड़े सरकारी प्रोजेक्ट्स मिले, जैसे हवाई अड्डों का संचालन (मुंबई, अहमदाबाद आदि), बंदरगाह, और रिन्यूएबल एनर्जी प्रोजेक्ट्स।
इन प्रोजेक्ट्स में सरकार की नीतियों और निवेश का बड़ा योगदान माना जाता है।उदाहरण के लिए, अडानी को 2019 में छह हवाई अड्डों के संचालन का ठेका मिला, जिसे लेकर विपक्ष ने “क्रोनी कैपिटलिज्म” (नजदीकी पूंजीवाद) का आरोप लगाया।
मुकेश अंबानी का लाभ:
रिलायंस इंडस्ट्रीज के चेयरमैन मुकेश अंबानी की संपत्ति भी इस दौरान बढ़ी। 2014 में उनकी नेटवर्थ करीब 20 बिलियन डॉलर थी, जो अब 100 बिलियन डॉलर से ऊपर पहुंच चुकी है।रिलायंस जियो के लॉन्च (2016) को सरकार की डिजिटल इंडिया पहल से जोड़ा जाता है। जियो को सस्ते डेटा और 4G सेवाओं के लिए स्पेक्ट्रम आवंटन में मदद मिली, जिससे टेलिकॉम सेक्टर में उनकी बादशाहत बढ़ी।राफेल डील में रिलायंस का नाम भी विवादों में आया, जब कहा गया कि अनिल अंबानी की कंपनी को ऑफसेट कॉन्ट्रैक्ट मिला, हालांकि मुकेश अंबानी की कंपनी इसमें सीधे शामिल नहीं थी।मोदी इनके लिए कैसे काम करता है?मोदी सरकार पर अंबानी और अडानी को फायदा पहुंचाने के लिए नीतियां बनाने का आरोप लगता रहा है। Grok Report
कुछ मुख्य बिंदु: Grok Report
गुजरात कनेक्शन:मोदी और अडानी का रिश्ता गुजरात से शुरू होता है, जब मोदी वहां मुख्यमंत्री थे। अडानी को सस्ती जमीन और टैक्स छूट जैसी सुविधाएं मिलीं, जो बाद में राष्ट्रीय स्तर पर भी जारी रहीं।
उदाहरण: मुंद्रा पोर्ट प्रोजेक्ट में अडानी को जमीन और इन्फ्रास्ट्रक्चर सपोर्ट मिला।नीतिगत समर्थन:अडानी ग्रुप को कोयला खनन, रिन्यूएबल एनर्जी, और डिफेंस सेक्टर में कई कॉन्ट्रैक्ट्स मिले। विपक्ष का दावा है कि ये कॉन्ट्रैक्ट्स पारदर्शी बोली के बिना दिए गए।जियो के लिए टेलिकॉम नीतियों को लचीला बनाया गया, जिससे प्रतिस्पर्धी कंपनियां (जैसे वोडाफोन, आइडिया) कमजोर हुईं।राजनीतिक आरोप:कांग्रेस और अन्य विपक्षी दल कहते हैं कि मोदी ने अडानी और अंबानी को “टेंपो भरकर नोट” दिए, जैसा कि मोदी ने खुद 2024 के चुनाव में कांग्रेस पर तंज कसते हुए कहा था। यह एक उल्टा आरोप था, लेकिन इससे यह बहस फिर छिड़ गई।हालांकि, कोई ठोस सबूत नहीं है कि मोदी व्यक्तिगत रूप से इनके लिए काम करते हैं।
सरकार का कहना है कि ये नीतियां देश की अर्थव्यवस्था को बढ़ाने के लिए हैं, न कि किसी खास उद्योगपति के लिए।क्या कहते हैं आलोचक और समर्थक?आलोचक: उनका मानना है कि अडानी और अंबानी को फायदा पहुंचाने के लिए नियम बदले गए, जिससे देश के खजाने को नुकसान हुआ। मिसाल के तौर पर, अडानी पर स्टॉक मैनिपुलेशन और विदेशी फंडिंग के आरोप भी लगे हैं (हिंडनबर्ग रिपोर्ट, 2023)।समर्थक: मोदी समर्थक कहते हैं कि अडानी और अंबानी की सफलता उनकी अपनी मेहनत और सरकार की “मेक इन इंडिया” जैसी नीतियों का नतीजा है, जो सभी उद्योगपतियों के लिए खुली हैं।
मोदी के कार्यकाल में अंबानी और अडानी की संपत्ति में कई गुना इजाफा हुआ, और इसमें सरकार की नीतियों की भूमिका से इनकार नहीं किया जा सकता। लेकिन यह कहना कि मोदी सिर्फ इनके लिए काम करते हैं, एक अतिशयोक्ति हो सकती है। यह लाभ आपसी हितों, कारोबारी रणनीति, और सरकारी नीतियों का मिश्रण लगता है। सटीक आंकड़े और सबूतों की कमी के कारण यह सवाल अब भी बहस का विषय बना हुआ है।आपके विचार क्या हैं? क्या आपको लगता है कि यह सिर्फ राजनीति है या सच में कुछ गहरी सांठगांठ है?
आपने “अंबानी और अडानी के साथ और डिटेल्स” मांगा है, लेकिन सवाल थोड़ा अस्पष्ट है। मैं मान रहा हूँ कि आप मुकेश अंबानी और गौतम अडानी के बीच संबंधों, उनके कारोबार, और शायद नरेंद्र मोदी के साथ उनके कथित जुड़ाव के बारे में और जानकारी चाहते हैं। इसे आधार बनाकर मैं आपको विस्तृत जवाब देता हूँ। अगर आप कुछ और विशिष्ट चाहते हैं, तो कृपया साफ करें।
अंबानी और अडानी: एक तुलनात्मक नजरमुकेश अंबानी और गौतम अडानी भारत के दो सबसे बड़े उद्योगपति हैं, जिनके कारोबार देश की अर्थव्यवस्था में अहम भूमिका निभाते हैं। दोनों की कंपनियाँ अलग-अलग क्षेत्रों में काम करती हैं, लेकिन कई बार इनके हित एक-दूसरे से टकराते भी हैं।मुकेश अंबानी (रिलायंस इंडस्ट्रीज)
नेटवर्थ: मार्च 2025 तक, मुकेश अंबानी की संपत्ति 100 बिलियन डॉलर से ऊपर है, जो उन्हें एशिया का सबसे अमीर व्यक्ति बनाती है।
मुख्य कारोबार:
टेलिकॉम: रिलायंस जियो ने 2016 में सस्ते डेटा के साथ टेलिकॉम सेक्टर में क्रांति ला दी। आज यह भारत की सबसे बड़ी टेलिकॉम कंपनी है।पेट्रोकेमिकल्स: रिलायंस दुनिया के सबसे बड़े रिफाइनरी संयंत्रों में से एक (जामनगर, गुजरात) का मालिक है।रिटेल: रिलायंस रिटेल तेजी से ऑनलाइन और ऑफलाइन बाजार में विस्तार कर रहा है।
नई ऊर्जा: अंबानी ने 2030 तक 100 गीगावाट रिन्यूएबल एनर्जी का लक्ष्य रखा है।मोदी से जुड़ाव:जियो के लॉन्च को डिजिटल इंडिया अभियान से जोड़ा जाता है। सरकार की नीतियों (स्पेक्ट्रम आवंटन, 4G को बढ़ावा) ने जियो को फायदा पहुंचाया।राफेल डील में अनिल अंबानी की रिलायंस डिफेंस का नाम आया था, जिसे विपक्ष ने मुकेश से जोड़ने की कोशिश की, हालाँकि इसका कोई ठोस सबूत नहीं है।गौतम अडानी (अडानी ग्रुप)नेटवर्थ: मार्च 2025 तक, अडानी की संपत्ति 80 बिलियन डॉलर से ज्यादा है, जो उन्हें भारत का दूसरा सबसे अमीर व्यक्ति बनाती है।
मुख्य कारोबार:
इन्फ्रास्ट्रक्चर: अडानी भारत का सबसे बड़ा पोर्ट ऑपरेटर है (मुंद्रा पोर्ट) और छह हवाई अड्डों का संचालन करता है।
ऊर्जा: कोयला आधारित बिजली उत्पादन से लेकर रिन्यूएबल एनर्जी तक, अडानी का बड़ा दबदबा है। खावड़ा (गुजरात) में दुनिया का सबसे बड़ा सोलर-विंड हाइब्रिड प्लांट बन रहा है।खनन और लॉजिस्टिक्स: कोयला खनन और सप्लाई चेन में अडानी का बड़ा रोल है।मोदी से जुड़ाव:गुजरात में मोदी के मुख्यमंत्री रहते हुए अडानी को सस्ती जमीन और टैक्स छूट मिली, जिससे उनका कारोबार बढ़ा।राष्ट्रीय स्तर पर हवाई अड्डों, बंदरगाहों, और बिजली प्रोजेक्ट्स में अडानी को बड़े ठेके मिले, जिसे विपक्ष “नजदीकी पूंजीवाद” कहता है।अंबानी और अडानी के बीच संबंधप्रतिस्पर्धा: दोनों के बीच सीधी प्रतिस्पर्धा कम है, क्योंकि उनके मुख्य क्षेत्र अलग हैं। लेकिन रिन्यूएबल एनर्जी और डेटा सेंटर्स जैसे नए सेक्टर्स में टक्कर बढ़ रही है। उदाहरण के लिए, अडानी डेटा सेंटर्स और लॉजिस्टिक्स पर फोकस कर रहा है, जबकि जियो डिजिटल इन्फ्रास्ट्रक्चर में आगे है।
सहयोग: संकट के समय दोनों एक-दूसरे के हितों की रक्षा करते दिखते हैं। 2023 में हिंडनबर्ग रिपोर्ट के बाद अडानी ग्रुप के शेयर गिरे, तब अंबानी का समर्थन (प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष) चर्चा में रहा। यह रणनीतिक गठजोड़ हो सकता है, न कि व्यक्तिगत दोस्ती।संपत्ति की तुलना: अंबानी की संपत्ति अडानी से ज्यादा है, लेकिन अडानी की वृद्धि दर पिछले दशक में तेज रही। 2014 में अडानी की नेटवर्थ 7-8 बिलियन डॉलर थी, जो अब 10 गुना से ज्यादा हो चुकी है।
मोदी के साथ कथित संबंधआरोप:विपक्ष का दावा है कि मोदी सरकार ने अंबानी और अडानी को फायदा पहुंचाने के लिए नीतियाँ बनाईं। जैसे, अडानी को कोयला खनन में छूट और हवाई अड्डों के ठेके, और अंबानी को टेलिकॉम में राहत।हिंडनबर्ग रिपोर्ट (2023) ने अडानी पर स्टॉक मैनिपुलेशन और धोखाधड़ी के आरोप लगाए, जिसे विपक्ष ने मोदी से जोड़ा, हालाँकि सुप्रीम कोर्ट ने 2024 में इसे खारिज कर दिया।तर्क:सरकार का कहना है कि ये नीतियाँ देश के आर्थिक विकास के लिए हैं, न कि किसी खास व्यक्ति के लिए।
“मेक इन इंडिया” और इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स इसका हिस्सा हैं।अंबानी और अडानी की सफलता को उनकी कारोबारी कुशलता से भी जोड़ा जाता है, न कि सिर्फ सरकारी समर्थन से।और डिटेल्सअंबानी की जीवनशैली: मुकेश अंबानी का घर “एंटीलिया” दुनिया के सबसे महंगे निजी आवासों में से एक है। उनके बेटे अनंत की शादी (जुलाई 2024) ने वैश्विक ध्यान खींचा।अडानी की परोपकारिता: अडानी ने 2025 में स्वास्थ्य और शिक्षा के लिए 10,000 करोड़ रुपये दान किए, जिसमें मायो क्लिनिक के साथ अस्पताल बनाने की योजना शामिल है।
विवाद: अडानी पर 2024 में अमेरिका में 250 मिलियन डॉलर की रिश्वतखोरी का आरोप लगा, जिसका असर उनके शेयरों पर पड़ा। अंबानी इससे अपेक्षाकृत कम विवादों में रहे।निष्कर्षअंबानी और अडानी भारत के आर्थिक परिदृश्य के दो柱 हैं, जिनके कारोबार और प्रभाव अलग-अलग हैं, लेकिन मोदी सरकार के साथ उनके कथित संबंधों ने इन्हें चर्चा में रखा है। दोनों के बीच प्रतिस्पर्धा और सहयोग का मिश्रण है, जो भारत की कारोबारी दुनिया को आकार दे रहा है।अगर आप किसी खास पहलू पर और जानकारी चाहते हैं (जैसे उनकी संपत्ति का ब्रेकअप, प्रोजेक्ट्स की लिस्ट, या विवादों की डिटेल)
भारत में GST (वस्तु एवं सेवा कर) एक अप्रत्यक्ष कर है, जो वस्तुओं और सेवाओं की खरीद-बिक्री पर लगाया जाता है।
यह 1 जुलाई 2017 को नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा लागू किया गया था, जिसे “वन नेशन, वन टैक्स” के रूप में प्रचारित किया गया। आपका सवाल है कि वित्त मंत्री और मोदी इस पैसे का क्या करते हैं और इसका लाभ किसे मिलता है। इसे तथ्यों और उपलब्ध जानकारी के आधार पर समझते हैं।GST से कितना पैसा इकट्ठा होता है? Grok Report
मार्च 2025 तक, GST से मासिक संग्रह औसतन 1.5 से 1.7 लाख करोड़ रुपये के बीच रहता है। उदाहरण के लिए, अक्टूबर 2022 में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा था कि मासिक GST संग्रह 1.4 लाख करोड़ रुपये तक पहुंचा था, और यह आंकड़ा अब बढ़ चुका है।2024-25 के वित्तीय वर्ष में, सरकार ने GST से लगभग 20-22 लाख करोड़ रुपये जुटाने का अनुमान लगाया है। यह कुल कर राजस्व का एक बड़ा हिस्सा है।इस पैसे का क्या होता है?GST का पैसा केंद्र और राज्य सरकारों के बीच बंटता है। यह कैसे काम करता है:
GST के प्रकार: CGST (केंद्रीय GST): यह हिस्सा केंद्र सरकार के पास जाता है।SGST (राज्य GST): यह राज्य सरकारों को मिलता है।IGST (एकीकृत GST): अंतरराज्यीय व्यापार से आने वाला कर, जो केंद्र और राज्यों में बंट जाता है।सेस: कुछ वस्तुओं (जैसे तंबाकू, शराब, पेट्रोलियम) पर अतिरिक्त कर, जो विशेष उद्देश्यों (जैसे आपदा राहत) के लिए रखा जाता है।
उपयोग:केंद्र सरकार: रक्षा, बुनियादी ढांचा (सड़क, रेल), स्वास्थ्य (AIIMS, वैक्सीन), शिक्षा, और सब्सिडी (खाद, उर्वरक, LPG) जैसी योजनाओं पर खर्च करती है।राज्य सरकारें: शिक्षा, स्वास्थ्य, पुलिस, ग्रामीण विकास, और स्थानीय योजनाओं पर खर्च करती हैं।विकास परियोजनाएं: जैसे स्मार्ट सिटी, बुलेट ट्रेन, और स्वच्छ भारत अभियान।ऋण चुकाना: भारत का कर्ज (लगभग 200 लाख करोड़ रुपये) चुकाने में भी इसका इस्तेमाल होता है।वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण बजट में हर साल यह बताती हैं कि यह पैसा कहां खर्च होगा। उदाहरण के लिए, 2025-26 के बजट में सड़कों, रेलवे, और रिन्यूएबल एनर्जी पर भारी निवेश की बात हो सकती है।
इसका लाभ किसे पहुंचाया जाता है?यहां दो नजरिए हैं—सरकार का दावा और आलोचकों का आरोप:सरकार का दावा:आम जनता:GST से कर प्रणाली आसान हुई, पहले के कई कर (VAT, सर्विस टैक्स, एक्साइज) हट गए।सस्ती सेवाएं और वस्तुएं: कुछ चीजों (जैसे कपड़े, दवाइयां) पर कर कम हुआ।बुनियादी ढांचा: सड़क, बिजली, और पानी की सुविधाएं बढ़ीं।व्यवसाय: छोटे व्यापारियों को टैक्स क्रेडिट का लाभ मिलता है, जिससे उनकी लागत कम होती है।
अर्थव्यवस्था: पारदर्शिता बढ़ी, कर चोरी घटी, और GDP ग्रोथ को सपोर्ट मिला।आलोचकों का आरोप:बड़े उद्योगपति:विपक्ष (जैसे कांग्रेस) का कहना है कि GST से बड़े कारोबारियों (अंबानी, अडानी) को ज्यादा फायदा हुआ। उदाहरण के लिए, जियो को सस्ते स्पेक्ट्रम और अडानी को इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स में मदद मिली।छोटे व्यापारियों पर बोझ बढ़ा, क्योंकि उन्हें हर महीने रिटर्न फाइल करना पड़ता है।गरीब जनता:रोजमर्रा की चीजों (जैसे साबुन, तेल) पर 18-28% GST से गरीबों पर असर पड़ा।
X पर एक पोस्ट (जुलाई 2024) में दावा किया गया कि सरकार GST डेटा छुपाकर पूंजीपतियों को बचाती है, हालांकि यह साबित नहीं हुआ।राजनीतिक लाभ: कुछ का मानना है कि यह पैसा चुनावी कैंपेन और BJP की योजनाओं (जैसे मुफ्त राशन) में भी जाता है।
सच क्या है?तथ्य: GST का पैसा सरकारी खजाने में जाता है और बजट के जरिए खर्च होता है। इसका हिसाब CAG (नियंत्रक और महालेखा परीक्षक) जांचता है। लेकिन खर्च का तरीका सरकार की प्राथमिकताओं पर निर्भर करता है।विवाद: यह सच है कि बड़े उद्योगपतियों को नीतियों से फायदा मिला, लेकिन यह कहना मुश्किल है कि GST का पैसा “सीधे” उन्हें दिया जाता है। गरीबों को मुफ्त राशन, PM आवास जैसी योजनाओं से अप्रत्यक्ष लाभ मिलता है, पर टैक्स का बोझ भी उन पर पड़ता है।निष्कर्षमोदी और वित्त मंत्री GST के पैसे को देश के विकास, कर्ज चुकाने, और जनकल्याण योजनाओं में लगाते हैं। Grok Report
लाभ का दायरा आम जनता से लेकर उद्योगपतियों तक फैला है, लेकिन आलोचकों का मानना है कि यह असमान रूप से बंटता है। सच्चाई बीच में कहीं है—यह व्यवस्था पारदर्शी तो हुई, पर गरीबों पर कर का बोझ और बड़े कारोबारियों को फायदा एक साथ चल रहा है।आप क्या सोचते हैं? क्या आपको लगता है कि यह पैसा सही जगह जा रहा है या कुछ और होना चाहिए? Grok Report