कुमाऊं विश्वविद्यालय, नैनीताल के संगीत विभाग में “भारतीय शास्त्रीय संगीत कार्यक्रम श्रृंखला” (Indian Classical Music Program Series) के चतुर्थ अध्याय का आयोजन हुआ। इस कार्यक्रम का आयोजन विभागाध्यक्ष डॉक्टर गगनदीप होठी (A-Grade आर्टिस्ट) द्वारा “KEU IFR” प्रोजेक्ट के अंतर्गत किया गया। इस अवसर पर कई ख्यातिप्राप्त संगीतज्ञों ने अपनी प्रस्तुति दी, जिससे सभागार में उपस्थित श्रोतागण मंत्रमुग्ध हो गए।
भारतीय शास्त्रीय संगीत और इसका महत्व
भारतीय शास्त्रीय संगीत हजारों वर्षों पुरानी परंपरा है, जिसका उल्लेख सामवेद में मिलता है। यह न केवल आध्यात्मिक उन्नति का साधन है, बल्कि मानसिक शांति और एकाग्रता को भी बढ़ाता है। भारतीय संगीत की दो प्रमुख धाराएं – हिंदुस्तानी और कर्नाटकी संगीत – वर्षों से समृद्ध होती रही हैं। कुमाऊं विश्वविद्यालय के इस संगीत समारोह का उद्देश्य युवा छात्रों को भारतीय संगीत की इस प्राचीन विरासत से जोड़ना था।
शानदार सरोद वादन की प्रस्तुति
कार्यक्रम में हल्द्वानी के सुविख्यात कलाकार एवं A-Grade आर्टिस्ट श्री स्मित तिवारी ने अपनी सरोद वादन कला का प्रदर्शन किया। श्री स्मित तिवारी को 2015 में संगीत नाटक अकादमी द्वारा “उस्ताद बिस्मिल्लाह ख़ान युवा पुरस्कार” से सम्मानित किया गया था। उनके वादन की शैली में गायकी और मैहर घराने की विशेषताएं स्पष्ट रूप से दिखाई दीं।
उन्होंने सर्वप्रथम राग जौनपुरी का आलाप प्रस्तुत किया, जो श्रोताओं के लिए एक अद्भुत अनुभव रहा। इसके बाद उन्होंने राग हेमंत में दो रचनाएँ बजाईं, जिनमें उनकी संगीत कला का उत्कृष्ट प्रदर्शन देखने को मिला। अंत में उन्होंने राग सिंधु भैरवी से अपनी प्रस्तुति का समापन किया। उनकी इस प्रस्तुति को दर्शकों ने खूब सराहा।
तबला संगत का जादू
सरोद वादन में तबले पर संगत हल्द्वानी के उभरते हुए तबलावादक श्री लोकेश जोशी ने की। वे कुमाऊं विश्वविद्यालय के डी०एस०बी० परिसर के संगीत विभाग के पूर्व छात्र भी हैं। उनकी तबला संगत ने प्रस्तुति में चार चांद लगा दिए। ताल और लय का ऐसा संगम दर्शकों को संगीतमय अनुभूति प्रदान करने में सफल रहा।
मुख्य अतिथि का स्वागत एवं विचार
कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि कुमाऊं विश्वविद्यालय के वनस्पति विज्ञान विभाग के विभागाध्यक्ष एवं निदेशक विजिटिंग प्रोफेसर प्रो. ललित तिवारी उपस्थित रहे। उन्होंने अपने संबोधन में संगीत के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि – Indian Classical Music
उनके विचारों ने छात्रों को संगीत की वैज्ञानिक और आध्यात्मिक उपयोगिता को समझने का अवसर प्रदान किया।
भारतीय शास्त्रीय संगीत के प्रचार-प्रसार पर जोर
संगीत विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. गगनदीप होठी ने बताया कि इस कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य विश्वविद्यालय के विभिन्न विभागों के छात्र-छात्राओं को भारतीय शास्त्रीय संगीत की समृद्ध परंपरा से परिचित करवाना और भारतीय संस्कृति को मजबूत बनाना है। उन्होंने यह भी कहा कि –
“भारतीय संगीत केवल मनोरंजन का साधन नहीं, बल्कि ध्यान और साधना का भी एक माध्यम है। इस प्रकार के कार्यक्रम युवाओं को भारतीय संगीत और उसकी विरासत से जोड़ने का काम करते हैं।”
कलाकारों का सम्मान और विशेष उपहार Indian Classical Music
कार्यक्रम के दौरान बी.एफ़.ए. (बैचलर ऑफ़ फाइन आर्ट्स) की छात्रा ख़ुशी उप्रेती ने मुख्य अतिथि और कलाकारों के स्केच पोट्रेट बनाए, जिन्हें भेंट करके उनका सम्मान किया गया। यह पहल कार्यक्रम को और भी खास बना गई।
कार्यक्रम में मौजूद गणमान्य व्यक्तित्व
इस भव्य संगीतमय आयोजन में विश्वविद्यालय के विभिन्न संकायों के प्रमुख सदस्य और छात्र-छात्राएँ बड़ी संख्या में उपस्थित रहे। इनमें प्रमुख रूप से –
- प्रो. नीता बोरा शर्मा (मुख्य परिसर निदेशक)
- प्रो. पदम सिंह बिष्ट (संकायाध्यक्ष, कला संकाय)
- प्रो. संजय पंत (डी.एस.डब्ल्यू)
- प्रो. हरीश सिंह बिष्ट (चीफ प्रॉक्टर)
- प्रो. ज्योति जोशी
- प्रो. संजय घिल्डियाल
- प्रो. शिरीष मौर्य
- प्रो. सुषमा टम्टा
- प्रो. अनिल बिष्ट
- डॉ. लज्जा भट्ट
- डॉ. कपिल खुलबे
- डॉ. अशोक कुमार
- डॉ. दीपक कुमार
- श्री दिनेश डंडरियाल
- श्री योगेश वर्मा
- श्रीमती गीता वर्मा
- विशाल बिष्ट, आनंद कुमार, वसुंधरा, कुंजिका, यशस्वी चंद्रा, शिवांगी, पूजा, फिजा, अदिति आदि प्रमुख रूप से उपस्थित रहे।
कार्यक्रम की शानदार सफलता
कार्यक्रम का समापन प्रो. नीता बोरा शर्मा के आशीर्वचन से हुआ। उन्होंने संगीत की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए कहा कि –
“संगीत वह साधन है, जो मानव हृदय को सुकून प्रदान करता है और समाज में समरसता लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। कुमाऊं विश्वविद्यालय भारतीय संस्कृति और संगीत के प्रचार-प्रसार के लिए सदैव तत्पर रहेगा।”
Indian Classical Music
कुमाऊं विश्वविद्यालय, नैनीताल में आयोजित इस भव्य भारतीय शास्त्रीय संगीत समारोह (Indian Classical Music) ने विद्यार्थियों को भारतीय संगीत परंपरा की गहराइयों से अवगत कराया। श्री स्मित तिवारी के सरोद वादन और श्री लोकेश जोशी की तबला संगत ने दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। इस आयोजन ने यह साबित किया कि भारतीय शास्त्रीय संगीत न केवल मनोरंजन का माध्यम है, बल्कि यह मन, आत्मा और समाज को जोड़ने वाला एक महत्वपूर्ण स्तंभ भी है।
भविष्य में भी ऐसे आयोजन होते रहें, जिससे भारतीय संगीत की परंपरा और अधिक समृद्ध हो और युवा पीढ़ी इसे आत्मसात कर सके। इस कार्यक्रम की सफलता ने यह दर्शाया कि संगीत सिर्फ़ ध्वनि नहीं, बल्कि जीवन को सुरों में पिरोने की एक कला है।