Garibi Hatao: नरेंद्र मोदी की नीतियों और उनकी मंशा को लेकर एक गहरा और भावनात्मक मुद्दा उठाता है। आपने “गरीबी हटाओ या गरीब को हटाओ” का जिक्र किया, जो कांग्रेस के पुराने नारे “गरीबी हटाओ” से लिया गया लगता है, लेकिन इसे व्यंग्यात्मक रूप से RSS, BJP और मोदी के संदर्भ में पेश किया गया है। मैं इसे तटस्थ तरीके से, तथ्यों और दोनों पक्षों के नजरिए से विश्लेषण करने की कोशिश करूंगा। मोदी की गरीब कल्याण योजनाएं: दावा और वास्तविकतामोदी सरकार ने कई योजनाएं शुरू कीं, जिनका दावा है कि वे गरीबों के उत्थान के लिए हैं।
प्रधानमंत्री आवास योजना (PMAY):
लक्ष्य: 2022 तक “सबके लिए आवास”, अब इसे 2025 तक बढ़ाया गया।उपलब्धि: लाखों गरीबों को पक्के मकान मिले, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में शिकायतें हैं कि लाभ अधूरा है या कागजी कार्रवाई में अटक जाता है।
उज्ज्वला योजना:
मुफ्त LPG कनेक्शन गरीब महिलाओं को दिए गए। 10 करोड़ से ज्यादा कनेक्शन बांटे गए।
आलोचना: सिलेंडर रिफिल की कीमत बढ़ने से कई गरीब दोबारा उपयोग नहीं कर पाए।
मुफ्त राशन (PM गरीब कल्याण अन्न योजना): Garibi Hatao
कोविड-19 के बाद शुरू हुई, अब भी जारी। 80 करोड़ लोगों को मुफ्त अनाज मिलता है।सवाल: यह गरीबी हटाता है या गरीबों को सरकार पर निर्भर बनाता है?आयुष्मान भारत:गरीबों को 5 लाख रुपये तक का मुफ्त इलाज।
हकीकत: ग्रामीण इलाकों में अस्पतालों की कमी से लाभ सीमित।मुद्रा योजना:छोटे व्यापारियों और गरीबों को लोन।आलोचना: कई लोन डिफॉल्ट हो गए, जिससे कर्ज का बोझ बढ़ा।गरीबी हटाओ या गरीब को हटाओ?सरकार का दावा:गरीबी कम हुई: सरकार और NITI आयोग के अनुसार, 2014 से 2024 तक 25 करोड़ लोग गरीबी रेखा से ऊपर उठे। विश्व बैंक और IMF ने भी भारत की प्रगति की तारीफ की।रोजगार: मनरेगा का बजट बढ़ा, स्किल इंडिया से युवाओं को प्रशिक्षण, और मेक इन इंडिया से नौकरियां पैदा करने का दावा।सशक्तिकरण: डिजिटल इंडिया, जन धन योजना (50 करोड़ से ज्यादा बैंक खाते), और स्वच्छ भारत से गरीबों को सशक्त करने की बात।
आलोचकों का नजरिया:
गरीब को मजदूर बनाना:विपक्ष और कुछ अर्थशास्त्री (जैसे ज्यां द्रेज) कहते हैं कि ये योजनाएं गरीबों को आत्मनिर्भर नहीं बनातीं, बल्कि उन्हें सरकारी सहायता या कम वेतन वाली नौकरियों (जैसे मजदूरी) पर निर्भर रखती हैं।मुफ्त राशन और सब्सिडी को “भीख” कहकर तंज कसा जाता है, जो गरीबी का स्थायी हल नहीं।असमानता बढ़ी:ऑक्सफैम की 2024 रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में अमीर-गरीब की खाई बढ़ी। 1% अमीरों के पास 40% से ज्यादा संपत्ति है।अडानी-अंबानी जैसे उद्योगपतियों की संपत्ति बढ़ी, जबकि गरीबों की आय स्थिर रही।शोषण का आरोप:GST और नोटबंदी (2016) ने छोटे व्यापारियों और गरीबों को नुकसान पहुंचाया। X पर एक यूजर ने लिखा, “मोदी का गरीब कल्याण सिर्फ वोट बैंक है, हकीकत में मजदूर बनाना मकसद है।”मनरेगा में मजदूरी समय पर नहीं मिलती, और ग्रामीण बेरोजगारी 8-10% के आसपास बनी हुई है।
मेरा विश्लेषणमोदी गरीबों के लिए काम करता है या नहीं?हां, कुछ हद तक: योजनाओं से लाखों लोगों को तात्कालिक राहत मिली। मुफ्त अनाज, घर, और स्वास्थ्य सुविधाएं गरीबों तक पहुंचीं।नहीं, पूरी तरह नहीं: गरीबी का स्थायी समाधान (शिक्षा, रोजगार, स्वास्थ्य ढांचा) अभी कमजोर है। ये योजनाएं “सहायता” देती हैं, लेकिन “सशक्तिकरण” में पीछे हैं।मजदूर बनाने की योजना?यह कहना अतिशयोक्ति हो सकता है कि मोदी का मकसद गरीबों को मजदूर बनाना है। लेकिन नीतियों का फोकस बड़े उद्योगों (इन्फ्रास्ट्रक्चर, डिजिटल अर्थव्यवस्था) पर ज्यादा है, जिससे गरीबों को अकुशल नौकरियां ही मिलती हैं। Garibi Hatao
उदाहरण: अडानी के पोर्ट्स या रिलायंस के प्रोजेक्ट्स में मजदूरों की जरूरत बढ़ी, पर ये नौकरियां गरीबी से बाहर निकालने वाली नहीं।निष्कर्षमोदी की नीतियां गरीबों को राहत देती हैं, लेकिन गरीबी हटाने की बजाय उसे “मैनेज” करने पर ज्यादा जोर देती दिखती हैं। “गरीब को हटाओ” वाला तंज भावनात्मक है, पर इसमें सच्चाई है कि असमानता और निर्भरता बढ़ी है।
RSS और BJP का समर्थन मोदी को गरीबों के “मसीहा” के रूप में पेश करता है, लेकिन हकीकत में यह लाभ सतही ज्यादा और गहरा कम लगता है।आपकी राय क्या है? क्या आपको लगता है कि ये योजनाएं वोट के लिए हैं या सच में गरीबों के लिए?