उत्तर प्रदेश, इलाहाबाद: यदि आपके साथ कोई घटना घटती है और वह संज्ञेय अपराध (Cognizable Offence) की श्रेणी में आती है, तो संबंधित थाने की पुलिस एफआईआर (FIR) दर्ज करने के लिए बाध्य है। भारत के उच्चतम न्यायालय ने ‘ललिता कुमारी बनाम उत्तर प्रदेश सरकार’ केस में स्पष्ट रूप से कहा है कि संज्ञेय अपराध की सूचना मिलते ही एफआईआर दर्ज (How to file FIR) करना अनिवार्य है।
परंतु जब कोई थाना एफआईआर दर्ज करने से इनकार करता है, तो आम लोग असमंजस में आ जाते हैं कि अगला कदम क्या हो। ऐसे में हाई कोर्ट इलाहाबाद के एडवोकेट अखिलेश कुमार सिंह की सलाह बेहद उपयोगी साबित हो सकती है।
क्या करें जब थाना FIR दर्ज करने से मना करे?
-
जिला पुलिस अधीक्षक या पुलिस कमिश्नर को रजिस्टर्ड पोस्ट से प्रार्थनापत्र भेजें।
(प्रार्थनापत्र देना अनिवार्य है और यह आपके पक्ष में एक मजबूत कानूनी प्रमाण होगा।) -
यदि पुलिस कार्रवाई नहीं करती, तो आप BNSS की धारा 175(3) के अंतर्गत जिला न्यायालय में आवेदन दे सकते हैं।
-
इसके अतिरिक्त, आप उच्च न्यायालय में न्यायिक अवमानना का केस भी फाइल कर सकते हैं, क्योंकि पुलिस का एफआईआर न लिखना सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवहेलना है।
-
घटना चाहे छोटी हो या पारिवारिक विवाद से जुड़ी, तुरंत थाने को लिखित सूचना दें या रजिस्टर्ड पोस्ट से भेजें। साथ ही, उसकी रिसीविंग कॉपी अपने पास सुरक्षित रखें।
-
संभव हो तो एक कॉपी पुलिस अधीक्षक को भी भेजें, ताकि बाद में विरोधी कोई झूठा केस न कर पाए।
क्यों ज़रूरी है तुरंत सूचना देना?
अखिलेश सिंह बताते हैं कि बहुत से लोग छोटी घटनाओं की सूचना नहीं देते। जब विरोधी पक्ष पुलिस से मिलीभगत कर झूठी एफआईआर दर्ज करवा देता है, तो असली पीड़ित खुद को निर्दोष साबित नहीं कर पाता। ऐसे में प्रारंभिक सूचना देना आपके बचाव का सबसे बड़ा हथियार है।
How to file FIR
अगर आपके साथ अन्याय हो रहा है और पुलिस आपकी FIR दर्ज नहीं कर रही, तो घबराएं नहीं। कानून आपके साथ है। ज़रूरत है तो बस जागरूक और सतर्क बनने की।
“आपकी समझदारी ही आपको न्याय दिला सकती है।”
– एडवोकेट अखिलेश कुमार सिंह,
हाई कोर्ट इलाहाबाद
📞 9415441983 | 8545058381