Ek Ped Maan Ke Naam कुमाऊं विश्वविद्यालय में ‘एक पेड़ मां के नाम’ थीम पर मनाया गया हरेला महोत्सव
नैनीताल: प्रकृति से जुड़ाव और पर्यावरण संरक्षण की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए कुमाऊं विश्वविद्यालय के डीएसबी परिसर में प्रतिवर्ष की भाँति इस वर्ष भी हरेला महोत्सव का आयोजन किया गया। इस वर्ष की थीम ‘एक पेड़ मां के नाम’ (Ek Ped Maan Ke Naam) पर आधारित रही। महोत्सव का शुभारम्भ कुलपति प्रो. दीवान एस रावत ने भौतिकी विभाग के सामने बांज का पौधा रोप कर किया।
हरेला महोत्सव का आयोजन एक विशेष उद्देश्य के साथ किया गया, जिसका मुख्य उद्देश्य पर्यावरण संरक्षण और वृक्षारोपण के प्रति जागरूकता फैलाना था। इस थीम ‘एक पेड़ मां के नाम’ के माध्यम से मातृत्व और प्रकृति के बीच संबंध को दर्शाने का प्रयास किया गया।
कार्यक्रम की शुरुआत
कार्यक्रम की शुरुआत में एम.एससी. वनस्पति विज्ञान के तृतीय सेमेस्टर के विद्यार्थियों ने कुलपति प्रो. दीवान एस रावत का स्वागत परिजात हरसिंगार का पौधा भेंट कर किया। यह पौधा स्वर्ग से पृथ्वी पर आया माना जाता है और इसे शुभता का प्रतीक माना जाता है।
कुलपति प्रो. रावत ने अपने उद्बोधन में कहा, “हरेला महोत्सव हमें प्रकृति से जोड़ता है और हमारे पर्यावरण की सुरक्षा के प्रति हमारी जिम्मेदारी को याद दिलाता है। हमें अपना भविष्य सुरक्षित रखने के लिए अपने पर्यावरण की देखभाल करनी चाहिए और अपने आस-पास अधिक से अधिक वृक्षारोपण करना चाहिए ताकि हमारी धरती हरी-भरी और स्वच्छ बनी रहे।”
भागीदारी और सहयोग Ek Ped Maan Ke Naam
इस महोत्सव में विश्वविद्यालय के विभिन्न विभागों और छात्रों ने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया, जिससे परिसर में हरियाली और सुंदरता का माहौल बना। इस अवसर पर कुलपति प्रो. रावत ने बांज का पौधा रोप कर महोत्सव का शुभारम्भ किया। उन्होंने विद्यार्थियों को पौधारोपण के महत्व के बारे में बताया और इस दिशा में उन्हें प्रेरित किया।
विजिटिंग प्रोफेसर निदेशालय द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम में विश्वविद्यालय के अन्य अधिकारियों, संकाय सदस्यों और छात्रों ने भी भाग लिया और ‘एक पेड़ मां के नाम’ थीम को सफल बनाने में सहयोग दिया। कार्यक्रम का संचालन निदेशक विजिटिंग प्रोफेसर निदेशालय प्रो० ललित तिवारी द्वारा किया गया।
प्रमुख उपस्थितिगण
इस अवसर पर निदेशक डीएसबी परिसर प्रो० नीता बोरा शर्मा, संकायाध्यक्ष विज्ञान प्रो० चित्रा पांडे, संकायाध्यक्ष छात्र कल्याण प्रो० संजय पंत, प्रो० राजीव उपाध्याय, प्रो० गीता तिवारी, प्रो० नीलू लोधियाल, प्रो० सुषमा टम्टा, प्रो० गिरीश रंजन तिवारी, डॉ० विजय कुमार, डॉ० प्रियंका रूबली, डॉ० दीपिका गोस्वामी, डॉ० सीमा चौहान, छात्र संघ सचिव हिमांशु मेहरा, महासंघ सचिव भावेश सोंटी याल, नंदा बल्लभ पालीवाल, कुंदन सिंह, गोपाल बिष्ट, वसुंधरा, दिशा उप्रेती, कुंजिका, आनंद कुमार, स्वाति जोशी, शिवानी रावत, अंजली, विदुषी, कृतिका, दीपक अग्री सहित अन्य विद्यार्थियों ने भी पौधारोपण किया।
वृक्षारोपण का महत्व
हरेला महोत्सव के माध्यम से पौधारोपण के महत्व को रेखांकित किया गया। वृक्षारोपण न केवल पर्यावरण को हरा-भरा बनाता है, बल्कि यह जलवायु परिवर्तन से निपटने में भी सहायक होता है। पेड़ कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करते हैं और ऑक्सीजन छोड़ते हैं, जो जीवों के लिए आवश्यक है। इसके साथ ही, पेड़ मृदा संरक्षण में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं और बाढ़ और भू-क्षरण को रोकते हैं।
पर्यावरण संरक्षण की दिशा में एक कदम
कुमाऊं विश्वविद्यालय के इस पहल से यह संदेश जाता है कि हमें अपने पर्यावरण की सुरक्षा के प्रति सजग रहना चाहिए और अधिक से अधिक वृक्षारोपण करना चाहिए। ‘एक पेड़ मां के नाम’ थीम के माध्यम से इस बात पर जोर दिया गया कि जैसे एक मां अपने बच्चों की देखभाल करती है, वैसे ही हमें भी अपने पर्यावरण की देखभाल करनी चाहिए।
सामुदायिक भागीदारी
इस महोत्सव में सामुदायिक भागीदारी का महत्व भी उजागर हुआ। विभिन्न विभागों के छात्रों और संकाय सदस्यों ने एक साथ मिलकर पौधारोपण किया और पर्यावरण संरक्षण के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दिखाई। इस सामूहिक प्रयास ने यह साबित किया कि सामूहिक प्रयास से किसी भी लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है।
Ek Ped Maan Ke Naam कुमाऊं विश्वविद्यालय में ‘एक पेड़ मां के नाम’ थीम पर मनाया गया हरेला महोत्सव
हरेला महोत्सव ने न केवल कुमाऊं विश्वविद्यालय के परिसर को हरा-भरा बनाने में योगदान दिया, बल्कि पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूकता भी बढ़ाई। ‘एक पेड़ मां के नाम’ थीम ने मातृत्व और प्रकृति के बीच के गहरे संबंध को दर्शाया और हमें यह याद दिलाया कि हमारी धरती भी हमारी मां के समान है, जिसे हमें संजोना और संरक्षित करना चाहिए।
कुमाऊं विश्वविद्यालय की यह पहल निस्संदेह एक प्रेरणादायक उदाहरण है और इससे अन्य संस्थानों को भी प्रेरणा मिलनी चाहिए कि वे भी पर्यावरण संरक्षण की दिशा में ऐसे ही सार्थक कदम उठाएं।
हरेला महोत्सव का यह आयोजन निश्चित ही पर्यावरण संरक्षण की दिशा में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित होगा और आने वाले वर्षों में भी यह महोत्सव इसी उत्साह और समर्पण के साथ मनाया जाएगा।