Dadagiri दादागिरी का दौर खत्मःअब सरकार को जनता के बारे में सोचने के लिए मजबूर होना पड़ा; विपक्ष की मजबूती ने सुनिश्चित किया सरकार जनता के प्रति जवाबदेह रहे : ukjosh

Dadagiri दादागिरी का दौर खत्मःअब सरकार को जनता के बारे में सोचने के लिए मजबूर होना पड़ा; विपक्ष की मजबूती ने सुनिश्चित किया सरकार जनता के प्रति जवाबदेह रहे


Dadagiri दादागिरी का दौर खत्मः विपक्ष की मजबूत आवाज से जनता का विश्वास तंत्र पर होने लगा है, मंत्री अपने ही लोगों से सरकारी सीटों को भरने की होड़ में लगे रहते…

संसद का मॉनसून सत्र: विपक्ष की बढ़ती ताकत और नई दिशा

शुरुआत: सरकार का दूसरा सत्र

यह सरकार बनने के बाद संसद का दूसरा सत्र है। पहले एक विशेष सत्र था और अब यह मॉनसून सत्र है। इन दोनों सत्रों में कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा हुई और निर्णय लिए गए। लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बदलाव यह है कि अब संसद में दादागिरी (Dadagiri) नहीं चलती है। पहले यह एकतरफा था, जहां वे लोग जो कभी प्रधानमंत्री पद तक नहीं पहुंचे, उन्होंने पीएम पद तक पहुंचने के बाद आनाब सानाब बोलने और कार्य करने लगे थे।

 दादागिरी का दौर

उनकी दादागिरी इतनी फैल गई थी कि लोग दहशत में जीवन जीने को मजबूर हो गए थे। परीक्षाओं में वे अपने ही लोगों को निकालने की परीक्षा करवाते थे। उदाहरण के लिए, नीट परीक्षा and etc में मंत्री अपने ही लोगों से सरकारी सीटों को भरने की होड़ में लगे रहते थे। इससे जनता का विश्वास तंत्र पर से उठ गया था और लोग न्याय की उम्मीद खो चुके थे।

विपक्ष की मजबूती

लेकिन जब से विपक्ष मजबूत हुआ है, दादागिरी समाप्त हो गई है और अब सरकार को जनता के बारे में सोचने के लिए मजबूर होना पड़ा है। पहले सत्ता में बैठे लोग सातवें आसमान पर थे और उन्हें जनता की चिंता नहीं थी। लेकिन अब विपक्ष ने अपनी आवाज़ उठाकर यह साबित कर दिया है कि वे जनता के हितों की रक्षा के लिए हमेशा तत्पर हैं।

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मजबूत विपक्ष की आवाज़

मैं आपको उन नामों के बारे में बताता हूँ जिन्होंने इस बीच अपनी आवाज़ से यह एहसास दिलाया है कि विपक्ष बहुत मजबूत है:

  1. राहुल गांधी: कांग्रेस पार्टी के नेता, जिन्होंने संसद में कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर सरकार को घेरा और जनता के हितों की बात की।
  2. अखिलेश यादव: समाजवादी पार्टी के नेता, जिन्होंने उत्तर प्रदेश में किसानों और युवाओं के मुद्दों को जोर-शोर से उठाया।
  3. दीपेंद्र हुड्डा: कांग्रेस के प्रमुख नेता, जिन्होंने हरियाणा में किसानों के आंदोलन का समर्थन किया और उनकी मांगों को संसद में रखा।
  4. गौरव गुगोई: कांग्रेस के युवा नेता, जिन्होंने असम के मुद्दों को राष्ट्रीय स्तर पर उठाया।
  5. पप्पू यादव: बिहार के नेता, जिन्होंने राज्य में स्वास्थ्य सेवाओं की खराब स्थिति पर सरकार को घेरा।
  6. कल्याण बनर्जी: तृणमूल कांग्रेस के वरिष्ठ नेता, जिन्होंने पश्चिम बंगाल के विकास के मुद्दों को प्रमुखता से उठाया।
  7. अभिषेक बनर्जी: तृणमूल कांग्रेस के युवा नेता, जिन्होंने पार्टी की युवा शक्ति को संसद में मजबूती दी।
  8. महुआ मोइत्रा: तृणमूल कांग्रेस की महिला नेता, जिन्होंने अपने तीखे और प्रभावशाली भाषणों से सरकार को चुनौती दी।
  9. चंद्रशेखर आज़ाद: दलित नेता, जिन्होंने समाज के पिछड़े और दलित वर्गों के मुद्दों को प्रमुखता से उठाया।
  10. धर्मेंद्र यादव: समाजवादी पार्टी के युवा नेता, जिन्होंने उत्तर प्रदेश के ग्रामीण इलाकों की समस्याओं को संसद में रखा।

नई दिशा की ओर

इन नेताओं ने अपनी मेहनत और संघर्ष से यह साबित कर दिया है कि विपक्ष को कमजोर नहीं समझा जा सकता। उन्होंने न केवल संसद में सरकार को घेरा बल्कि जनता के बीच जाकर उनके मुद्दों को उठाया और उनके समाधान के लिए आवाज़ बुलंद की। यह एक नई दिशा है जो भारतीय लोकतंत्र को मजबूती प्रदान कर रही है।

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Dadagiri दादागिरी का दौर खत्मः अब संसद में दादागिरी नहीं चलती है विपक्ष की मजबूती ने यह सुनिश्चित किया है कि सरकार जनता के प्रति जवाबदेह रहे

जनता की आवाज़

अब सरकार को जनता के मुद्दों पर ध्यान देना ही होगा। विपक्ष की मजबूती ने यह सुनिश्चित किया है कि सरकार जनता के प्रति जवाबदेह रहे। विपक्ष ने यह सिद्ध कर दिया है कि वे सिर्फ विरोध के लिए विरोध नहीं कर रहे, बल्कि वे जनता की भलाई के लिए संघर्ष कर रहे हैं। यह एक सकारात्मक परिवर्तन है जो भारतीय लोकतंत्र को एक नई ऊँचाई पर ले जाएगा।

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संसद का यह मॉनसून सत्र और विपक्ष की मजबूत स्थिति ने भारतीय लोकतंत्र को एक नई दिशा दी है। अब जनता के मुद्दों पर ध्यान दिया जा रहा है और सरकार को अपनी नीतियों पर पुनर्विचार करना पड़ रहा है। विपक्ष ने यह साबित कर दिया है कि वे जनता के साथ हैं और उनके हितों की रक्षा के लिए हमेशा तत्पर रहेंगे। यह एक सकारात्मक संकेत है जो भारतीय लोकतंत्र को और भी मजबूत बनाएगा।


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