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Dabal Engine डंबल इंजन का खस्ता हाल; फयाटनोला गांव की बदहाली: सड़क, पानी और स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी से जूझते ग्रामीण

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Dabal Engine डंबल इंजन का खस्ता हाल; फयाटनोला गांव की बदहाली: सड़क, पानी और स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी से जूझते ग्रामीण

Dabal Engine: उत्तराखंड के अल्मोड़ा जनपद के ताड़ीखेत ब्लॉक का फयाटनोला गांव एक ऐसा क्षेत्र है जहां के लोग आज भी बुनियादी सुविधाओं से वंचित हैं। सुदूर पहाड़ी इलाकों में बसे इस गांव के निवासी सड़क, पानी और स्वास्थ्य सेवाओं की कमी से जूझ रहे हैं। यह कहानी केवल फयाटनोला गांव की नहीं, बल्कि उत्तराखंड के कई अन्य पर्वतीय गांवों की भी है, जो सरकारी योजनाओं और विकास के दावों के बावजूद आज भी पीछे छूटे हुए हैं। Dabal Engine

सड़क की बदहाली: गांव तक पहुंचने का एकमात्र साधन Dabal Engine

फयाटनोला गांव की सबसे बड़ी समस्या उसकी खस्ताहाल सड़कें हैं। गांव से नजदीकी मुख्य सड़क तक पहुंचने के लिए लोगों को कई किलोमीटर पैदल चलना पड़ता है। सड़क निर्माण का कार्य कई सालों से अधर में लटका हुआ है, और इसके पूरा न होने की वजह से गांव के लोगों को बड़ी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। Dabal Engine

हाल ही में 90 साल की एक बुजुर्ग महिला, रधुली देवी, की तबीयत अचानक खराब हो गई। उनकी गंभीर स्थिति के बावजूद उन्हें अस्पताल तक पहुंचाने में काफी मुश्किलें आईं। गांव के दो युवक, गोविंद बबलू और योगेश, ने कंधों पर बैठाकर उन्हें कई किलोमीटर दूर मुख्य सड़क तक पहुंचाया, जहां से उन्हें हल्द्वानी ले जाया गया। यह घटना इस बात की ओर इशारा करती है कि अगर गांव में सड़क की सुविधा होती, तो मरीज को जल्द अस्पताल पहुंचाया जा सकता था और उनका इलाज समय पर हो सकता था।

अधूरी सड़क निर्माण योजना

फयाटनोला गांव का हिस्सा बनने वाली चमड़खान से सेलापानी मोटरमार्ग की कुल लंबाई 8 किलोमीटर है, लेकिन यह सड़क भी केवल 5 किलोमीटर तक ही बन पाई है। बाकी के 3 किलोमीटर का काम फंड की कमी के कारण अधर में लटका हुआ है। लोक निर्माण विभाग के अनुसार, सड़क के शेष 3 किलोमीटर के लिए 40.65 लाख का बजट राज्य सरकार को भेजा गया है, लेकिन अभी तक बजट आवंटित नहीं किया गया है।

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यह सड़क गांव के लिए जीवनरेखा साबित हो सकती है, लेकिन बजट और निर्माण कार्य की धीमी गति के कारण यह परियोजना पूरी नहीं हो पाई है। स्थानीय निवासी लंबे समय से सड़क निर्माण के लिए संघर्ष कर रहे हैं, लेकिन सरकार और प्रशासन की उदासीनता के कारण उनकी समस्याएं जस की तस बनी हुई हैं।

स्वास्थ्य सुविधाओं का अभाव

फयाटनोला और आसपास के गांवों में स्वास्थ्य सुविधाओं की भी भारी कमी है। यहां कोई प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र नहीं है, और न ही किसी प्रकार की मेडिकल सेवाएं उपलब्ध हैं। जब गांव में कोई बीमार पड़ता है, तो उसे कई किलोमीटर दूर मुख्य सड़क तक ले जाना पड़ता है और वहां से निकटतम अस्पताल तक पहुंचाने में घंटों लग जाते हैं। Dabal Engine

रधुली देवी की घटना इसका जीता-जागता उदाहरण है, जब उन्हें कंधों पर बैठाकर मुख्य सड़क तक ले जाया गया। इस तरह की स्थिति में अगर किसी गंभीर बीमारी या आपातकालीन स्थिति का सामना करना पड़े, तो मरीज की जान भी जा सकती है। ग्रामीणों की मांग है कि गांव के नजदीक एक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र या मोबाइल मेडिकल यूनिट की व्यवस्था की जाए, ताकि ऐसी आपातकालीन स्थितियों में मरीजों को तुरंत इलाज मिल सके।

पानी की किल्लत

सड़क और स्वास्थ्य सुविधाओं के अलावा, फयाटनोला गांव के लोग पानी की कमी से भी परेशान हैं। गांव में पिछले दो हफ्तों से पीने के पानी की आपूर्ति बंद है, जिससे ग्रामीणों को भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। नलों में पानी नहीं आ रहा है, और ग्रामीणों को बरसात में जमा किए गए पानी का उपयोग करना पड़ रहा है।

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इससे लोग बीमार हो रहे हैं, लेकिन जल संस्थान और स्थानीय प्रशासन की ओर से कोई समाधान नहीं निकाला गया है। जल संस्थान रानीखेत के अधिशासी अभियंता से कई बार संपर्क करने की कोशिश की गई, लेकिन उन्होंने फोन तक नहीं उठाया।

रिवर्स पलायन और सरकारी उदासीनता

फयाटनोला गांव में कई लोग नौकरी से रिटायर होकर गांव में वापस लौटे हैं। रिवर्स पलायन के तहत ये लोग शहर की आरामदायक जिंदगी छोड़कर गांव में अपनी मातृभूमि की सेवा करने के लिए लौटे हैं। लेकिन गांव में बुनियादी सुविधाओं की कमी ने उनके मन को खट्टा कर दिया है।

राजेंद्र सिंह, जो रिटायरमेंट के बाद गांव लौटे हैं, बताते हैं कि उन्होंने सरकार के ‘गांव की ओर लौटें’ कैंपेन का समर्थन करते हुए शहर की जिंदगी को त्याग दिया, लेकिन अब गांव की स्थिति देखकर उन्हें निराशा हो रही है। न तो सड़क की सुविधा है, न पानी, और न ही स्वास्थ्य सेवाएं। सरकार द्वारा शुरू किए गए विकास कार्यक्रम केवल कागजों तक ही सीमित रह गए हैं।

स्वतंत्रता सेनानी का संघर्ष Dabal Engine

फयाटनोला गांव से सटे कनोली गांव के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, स्वर्गीय मोती सिंह नेगी, ने अपने जीवनकाल में गांव के लिए सड़क की मांग की थी। उन्होंने उत्तर प्रदेश के समय में लखनऊ और बाद में देहरादून जाकर सड़क निर्माण के लिए आंदोलन किए। लेकिन उनके देहांत के बाद भी, गांव को सड़क की सुविधा नहीं मिल पाई है। Dabal Engine

यह विडंबना है कि उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत का गांव, मोहनरी, फयाटनोला से मात्र 10-12 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है, फिर भी इस क्षेत्र की बदहाल स्थिति पर ध्यान नहीं दिया गया। ग्रामीणों का आरोप है कि बड़े-बड़े पदों पर बैठे नेता अपने पड़ोस के गांवों की समस्याओं से अनजान बने रहते हैं।

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विकास के लिए ठोस कदम उठाने की जरूरत

फयाटनोला गांव की स्थिति उत्तराखंड के अन्य पहाड़ी गांवों की दुर्दशा का प्रतीक है, जहां सरकारी योजनाओं का क्रियान्वयन धीमी गति से होता है और लोग बुनियादी सुविधाओं के लिए तरसते रहते हैं।

सरकार और प्रशासन को तुरंत प्रभावी कदम उठाने की जरूरत है। सबसे पहले, सड़क निर्माण कार्य को पूरा किया जाना चाहिए, ताकि गांव के लोग शहरों से जुड़ सकें और उन्हें आपातकालीन स्थिति में आसानी से स्वास्थ्य सेवाएं मिल सकें।

दूसरे, पानी की समस्या का समाधान किया जाना चाहिए। ग्रामीणों के घरों में नियमित पानी की आपूर्ति सुनिश्चित की जानी चाहिए, ताकि उन्हें बीमारियों से बचाया जा सके।

तीसरे, गांव के नजदीक एक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र की स्थापना की जानी चाहिए, ताकि ग्रामीणों को समय पर चिकित्सा सेवाएं मिल सकें।

Dabal Engine

फयाटनोला गांव की स्थिति सरकारी योजनाओं और विकास के दावों के विपरीत है। सड़क, पानी और स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी से जूझते इस गांव के लोगों को सरकार और प्रशासन की उपेक्षा का सामना करना पड़ रहा है।

यदि समय रहते इन समस्याओं का समाधान नहीं किया गया, तो गांव के लोग और भी कठिनाइयों का सामना करेंगे। विकास की गति को तेज करना और पहाड़ी गांवों में बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध कराना सरकार की प्राथमिकता होनी चाहिए, ताकि ग्रामीणों का जीवन आसान हो सके और उन्हें अपने गांव में रहकर ही बेहतर भविष्य मिल सके।


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