Come back my Son: मायावी के इन तीन मायावी बंधनों एवं ताप और महाताप से मनुष्य को सिर्फ ईश्वर का ही वचन बचा सकता है। : ukjosh

Come back my Son: मायावी के इन तीन मायावी बंधनों एवं ताप और महाताप से मनुष्य को सिर्फ ईश्वर का ही वचन बचा सकता है।


लेखक: सुशील कुमार | uttrakhandjosh.com  Come back my Son

आसमान चाहिएः यदि यह लेख पढ़ते या सुनते समय आपके हृदय में कुछ हिलता है, तो समझिए आपके अंदर आत्मिक युद्ध शुरू हो चुका है। Come back my Son

आत्मा की पुकार और मुक्ति की राह “हे मेरे पुत्र, लौट आ। मैं तुझे नया जीवन देना चाहता हूँ।” “Come back, my son. I want to give you new life.”

मनुष्य का जीवन केवल मांस और रक्त की यात्रा नहीं, बल्कि यह आत्मा की एक पुकार है—आसमान की ओर, प्रकाश की ओर, उस शाश्वत सत्य की ओर जहाँ से जीवन की सच्ची पहचान शुरू होती है। आत्मा का यह “आसमान” ईश्वर की ओर इंगित करता है—वह सर्वोच्च ज्योति जो अंधकार को चीरकर जीवन उत्पन्न करती है; मृत्यु में भी आशा की किरण जगाती है; और हर जड़त्व यानि मृत में गति और चैतन्य यानि प्राण भर देती है। Come back my son

आत्मा बनाम शरीर: दो मार्गों की पहचान Come back my son

इस संसार में दो शक्तियाँ कार्य कर रही हैं—एक ईश्वर की, जो जीवन, प्रकाश, और आशा का स्रोत है; दूसरी शैतान की, जो मृत्यु, अंधकार और धोखे की जननी है। आत्मा “आसमान” की ओर देखती है—उच्चतम सोच, सकारात्मक ऊर्जा, शांति और सच्चाई की ओर। शरीर—जो परिवर्तनशील, नाशवान और माटी से बना है—वह संसार के आकर्षणों, इच्छाओं और पीड़ाओं में उलझा रहता है।

जो व्यक्ति ईश्वर को पहचान लेता है, उसका मार्ग संसार से भिन्न हो जाता है। वह संसार में रहते हुए भी संसार से नहीं होता। उसमें एक नई बुद्धि, नई समझ, और पवित्रता प्रकट होती है। ईश्वर की प्रतिज्ञा है:

“मैं तुम्हें नया हृदय दूंगा और नई आत्मा तुम्हारे भीतर डालूंगा, जो तुम्हें सब सत्य की ओर ले चलेगी।”

परमेश्वर की अद्भुत योजना

ईश्वर ने मनुष्य को अपनी ही छवि में रचा—महान, अधिकारयुक्त, और ब्रह्मांड पर राज्य करने वाला। पृथ्वी, आकाश, समुद्र, पशु-पक्षी, फल-फूल—सब पर मनुष्य को प्रभुत्व दिया गया था। परंतु शैतान ने इस अद्वितीय सृष्टि को भ्रष्ट कर दिया। उसने मनुष्य से उसके अधिकार, आनन्द और मुक्ति को छीन लिया। मृत्यु का प्रवेश हुआ, और मनुष्य जीवन के बजाय विनाश की ओर बढ़ने लगा। Come back my son

शैतान ने मनुष्य को भ्रम में डाल दिया—मूर्ति पूजा, विधियों, छुआछूत, व्रतों, तीर्थों और बाहरी धार्मिकता में फँसा दिया। इससे मनुष्य ईश्वर के मूल स्वरूप और सच्चे संबंध को खो बैठा। वह अपने सच्चे पिता, अपने परमेश्वर को पहचान नहीं पा रहा।

शैतानी बंधन

शैतान ने तीन मुख्य बंधनों से मनुष्य को जकड़ा है:

  1. दैवीक दोष – आत्मिक भ्रांति और भ्रम।

  2. आर्थिक दोष – दरिद्रता, ऋण, आर्थिक व्यथा।

  3. तापिक दोष – मानसिक तनाव, रोग, शोक, और भय।

इसके अतिरिक्त “महाताप”, “काल”, और “महाकाल” जैसे अज्ञात शक्तियों ने मनुष्य को ऐसे जाल में फँसा दिया है जिससे वह अपनी मेहनत या धार्मिक प्रयासों एवं बाहरी आडंबरों से बाहर नहीं निकल सकता। भले ही वह तीर्थ करे, व्रत रखे, नियम माने—परंतु आत्मा फिर भी मुक्ति को तरसती रहती है।

मायावी के इन तीनों मायावी बंधनों से और ताप महाताप, काल महाकाल से मनुष्य को मुक्त करने के लिए ईश्वर ने अपने जीवन में शुद्ध, पवित्र, शक्तिशाली, सहनशील, अहिंसा हथियारयुक्त, जो पाप यानि व्यविचार स्त्री पुरुष के आपसी संबंधों से पैदा न हुआ हो एसी सुपर पॉवर को पृथ्वी पर उतारा जो सबके पापों के लिए बलिदान हुआ

मनुष्य के उद्धार के लिए ऐसा मार्ग जो सरल, सीधा और सामर्थ्यशाली है

ईश्वर ने देखा कि उसकी प्रिय सृष्टि मनुष्य विनाश की ओर जा रही है। वह चुप नहीं बैठा। उसने एक नई योजना बनाई—एक ऐसा मार्ग जो सरल, सीधा और सामर्थ्यशाली हो। उसने स्वर्ग से एक अद्भुत आत्मा को पृथ्वी पर भेजा, जो स्त्री-पुरुष की इच्छा से नहीं, बल्कि पवित्र आत्मा और एक कुंवारी कन्या से उत्पन्न हुआ। मायावी के इन तीनों मायावी बंधनों से और ताप महाताप, काल महाकाल से मनुष्य को मुक्त करने के लिए ईश्वर ने मनुष्य के उद्धार के लिए एक शुद्ध, पवित्र, शक्तिशाली, सहनशील, अहिंसा हथियारयुक्त, जो पाप यानि व्यविचार स्त्री पुरुष के आपसी संबंधों से पैदा न हुआ हो एसी सुपर पॉवर को पृथ्वी पर उतारा जो सबके पापों के लिए बलिदान हुआ और उसका नाम था:

यीशु यानि सत्य, जीवन और मार्ग।

यीशु! अहिंसा का पुजारी, प्रेम और बलिदान का स्वरूप था। उसने मनुष्य के पापों को अपने ऊपर लेकर क्रूस पर प्राण दिए। वह केवल शिक्षक या भविष्यवक्ता नहीं था, वह स्वयं परमेश्वर की देह में प्रकट एक पवित्र महिमा था। अब जो अपने मुंह से इस यीशु को अपने जीवन का प्रभु स्वीकार करेगा और विश्वास करेगा ईश्वर की इस सरल योजना पर तो उसका उद्धार हो गया। और उसके जीवन की यात्रा में मायावी के तीन बंधनों और ताप महाताप नष्ट होगे और उनसे जीवन में बचे रहने के लिए अपने जीवन और घर में ये तीन काम करेगा

1. नित्या विनती प्राथना,

2. ईश्वर के राज्य और धर्म के लिए तन, मन और धन की सेवा और

3. हर घड़ी सुमिरन में रहेगा तो मसीह यीशु नाम में तो उसको मायावी यानि शैतान छू भी नहीं पाएगा

क्योंकि उस मनुष्य के अंदर मसीह यानि ईश्वर का आत्मा है यानि ईश्वर के पुत्र यीशु मसीह ईश्वर का आत्मा है यीशु साधारण मनुष्य नहीं था वह स्वयं ईश्वर का आत्मा है जो भी नेगेटिव विचार या शक्ति उसे छुएगी वह भस्म हो जाएगी इसलिए मनुष्य आजाद हो जाता है जो कोई यीशु को गुरु यानि अपना मार्ग दर्शक स्वीकार करता हैं

यीशु यानि ईश्वर का आत्मा

वह मनुष्य जो यीशु को अपने जीवन का प्रभु स्वीकार करता है उसे दैविक दोष, भौतिक दोष और तापिक दोष और ताप महाताप, काल महाकाल उसके नजदीक झांकते तक नहीं हैं जो कोई बुरे विचार या मन से उस मनुष्य को छूने की कोशिश करेगा जो प्रभु की अगुवाई में चल रहा हो तो वह स्वयं ही नष्ट हो जाएगा।

(इसे कहते है god power) ईश्वर अपने अभिषिक्त की रक्षा स्वयं करता है इसलिए ईश्वर ने लिखित में साफ साफ लिखकर दे दिया कि “मेरे अभिषिक्त को मत छुना”।

इसका मतलब है कि सारे rights © यानि अधिकार ईश्वर के पास सुरक्षित है। कब किसके कान खींचने है किसके नहीं। कब किसको उखाड़ना है कब किसको लगना है इधर उखाड़े उधर लगाए, उधर लगाए इधर उखाड़े वही एक माली हो जो समुद्र को चुलू भर पानी में नापता है वही है जो पहाड़ों को सींचता है वही अदभुत माली यानि किसान है किसको नर्क भेजना है किसको स्वर्ग, किसको उखाड़ना है किसको लगाना है यानि जो उसके रूल यानि नियम आज्ञाओं पर चलता है और उसका भय यानि डर यानि उसको हाजर नाजर अंग संग देखता है यानि उसके प्रति श्रद्धा रखता है और अपने गुनाहों को मान लेता है तो वह उसका लेखा नहीं रखता मैं उसे माफ कर देता हूं। जिसे पुत्र यानि यीशु माफ करेगा उसका लेखा परमपिता परमेश्वर नहीं रखेगा।

यीशु ने कहा जो मुझमें यानि मेरे नाम से बोता है यानि देता है तन से, मन से और धन से वह कभी नाश नहीं होता बल्कि वह बढ़ोतरी पाएगा और नहीं उसे चोर यानि शैतान चुरा सकता है। अपने लिए पृथ्वी पर येसा धन एकत्रित मत करो जिससे तुम्हारा मन उसमें फंसा रहे तुम पृथ्वी में एसा धन एकत्रित करो जिससे तुम स्वर्ग में bahuaayat से प्राप्त हो।

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उद्धार का रहस्य यही है वह सरल मार्ग

यीशु आज भी जीवित हैं, और जो कोई उन्हें अपने जीवन का प्रभु स्वीकार करता है, उसे नया हृदय और आत्मा मिलती है। वह व्यक्ति आत्मिक बंधनों को तोड़ता है, पापों से मुक्त होता है और शांति, समृद्धि और अनंत जीवन को प्राप्त करता है।

“यदि तू अपने मुंह से यीशु को प्रभु माने और अपने हृदय से विश्वास करे कि परमेश्वर ने उसे मृतकों में से जिलाया, तो तेरा उद्धार होगा।”
(रोमियों 10:9)

यीशु अब हमारे भीतर आत्मा के द्वारा निवास करते हैं। जब हम आत्मिक युद्धों में उतरते हैं, तो यह वही आत्मा—यीशु की आत्मा—हमें बल देती है, दिशा देती है, और हमें विजयी बनाती है।

आत्मिक युद्ध और मोक्ष

अब निर्णय हमारे हाथ में है या तो हम शैतान के झूठ, अंधकार और नाश में फँसे रहें यानि ईंट पत्थर के मठ, मन्दिरों, गुरूद्वारों या चर्चों या फिर चर्च के पोस्टरों या फिर नियम, व्रत, यात्रा, स्नानों, पंडित, नवी, मौलवी या सांसारिक गुरुओं जो स्त्री पुरूष के आपसी संबंधों से पैदा हुए बाबाओं, माताओं, या फिर भावी आत्माओं जैसे चांवल देखने या कुंडली देखना, ग्रह पूजन, जादू टोटका में अपने आपको फांस के रखें या फिर इन सभी आडंबरों, भ्रम भ्रांतियों, दैविक दोष, भौतिक दोष, तापिक दोष की दीवारों को गिराने और जलाकर भस्म करने के लिए ईश्वर की सरल योजना यीशु को अपनी आत्मा का गुरु स्वीकार कर मुक्त, शुद्ध, उज्ज्वल जीवन की ओर कदम बढ़ाएं।

यहां पर हम समझेंगे कि ईश्वर ने साफ कहा है और लिखित में दिया है कि “मेरी इन सभी से रंजिश की लड़ाई है मैं रंजिश रखने वाला ईश्वर हूं इन शैतानों ने ही मनुष्य को भ्रम में डाल हुआ है”

यह लेख और वीडियो केवल शब्द नहीं,  बल्कि मनुष्य की आत्मा की पुकार और मनुष्य के खुशहाल जीवन और आत्मा के कल्याण और प्राण को मोक्ष के मार्ग की ओर अग्रसित करता है।

ईश्वर आज भी द्वार पर खड़ा है और कहता है:

“हे मेरे पुत्र, लौट आ। मैं तुझे नया जीवन देना चाहता हूँ।” 

यदि यह लेख पढ़ते या सुनते समय आपके हृदय में कुछ हिलता है, तो समझिए आत्मिक युद्ध शुरू हो चुका है। अब यह आप की स्वेच्छा पर निर्भर करता है कि आप किस ओर जाएंगे—अंधकार की ओर या प्रकाश की ओर।धन्यवाद।


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