कुमाऊं विश्वविद्यालय के विजिटिंग प्रोफेसर डॉ. रॉबर्ट जे. हैनलों, जो थॉमस रिवर यूनिवर्सिटी, कनाडा से जुड़े हुए हैं, ने हाल ही में “चीन: ह्यूमन सिक्योरिटी एंड पॉलिटिक्स ऑफ कॉरपोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी” (Canada and the Asia Pacifi Policy Project CAPPP) विषय पर एक ऑनलाइन व्याख्यान दिया। इस व्याख्यान में देश-विदेश के अनेकों प्रतिभागियों ने सक्रिय रूप से भाग लिया। कार्यक्रम का संचालन विजिटिंग निदेशक प्रोफेसर ललित तिवारी द्वारा किया गया, जबकि डॉ. रॉबर्ट जे. हैनलों का स्वागत और पूर्ण परिचय विभागाध्यक्ष राजनीति विज्ञान प्रोफेसर कल्पना अग्रहरी ने कराया।
व्याख्यान की मुख्य बातें
चीन का आर्थिक उत्थान और वैश्विक समीकरण
डॉ. हैनलों ने अपने व्याख्यान की शुरुआत चीन के आर्थिक उत्थान से की। उन्होंने बताया कि कैसे चीन की तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था ने वैश्विक स्तर पर एक नए समीकरण को जन्म दिया है। चीन की इस आर्थिक सफलता ने दुनिया के अन्य देशों को प्रभावित किया है और एक नए तरह की प्रतिस्पर्धा को जन्म दिया है।
कॉरपोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी (CSR) और चीन की राजनीतिक नीति
डॉ. हैनलों ने एक महत्वपूर्ण प्रश्न उठाया: चूंकि चीन में अधिकांश बड़े व्यवसाय राज्य के स्वामित्व में हैं, तो क्या इन व्यवसायों द्वारा की जा रही कॉरपोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी (CSR) को चीन की व्यापक राजनैतिक नीति का अंग कहा जा सकता है? उन्होंने बताया कि चीन में CSR को केवल एक व्यवसायिक अनिवार्यता के रूप में नहीं देखा जाता, बल्कि इसे राज्य की नीतियों और उद्देश्यों के साथ जुड़ा हुआ माना जाता है।
डॉ. हैनलों ने मानव सुरक्षा के सैद्धांतिक और व्यवहारिक अर्थों पर भी विस्तार से चर्चा की। उन्होंने बताया कि मानव सुरक्षा का मतलब केवल सैन्य सुरक्षा नहीं है, बल्कि इसमें आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरणीय सुरक्षा भी शामिल है। उन्होंने प्रोफेसर अमर्त्य सेन द्वारा दिए गए “कैपेबिलिटी एप्रोच” का जिक्र करते हुए बताया कि किस प्रकार यह दृष्टिकोण मानव सुरक्षा के विभिन्न पहलुओं को समाहित करता है।
कॉरपोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी के सिद्धांत
डॉ. हैनलों ने CSR के सैद्धांतिक पहलुओं को भी समझाया। उन्होंने बताया कि एक तरफ तो कॉरपोरेट अपने प्रॉफिट का एक हिस्सा सामान्य हित में व्यय करते हैं, वहीं दूसरी तरफ उस खर्च की जा रही राशि से वे अपनी छवि सुधारने का भी काम कर रहे होते हैं। उन्होंने बताया कि CSR के तहत खर्च की जा रही राशि और पर्यावरणीय, सामाजिक और गवर्नेंस (ESG) प्रथाओं के माध्यम से पृथ्वी को और अधिक स्थायी बनाया जा सकता है।
वैश्विक वार्मिंग और पर्यावरणीय चिंताएं
डॉ. हैनलों ने बताया कि विकसित देश, विशेष रूप से अमेरिका, ग्लोबल वार्मिंग के खतरे को लेकर चिंतित हैं। उन्होंने बताया कि अमेरिका ने चीन से आयातित इलेक्ट्रिक वाहनों (EVs) पर आयात शुल्क बढ़ा दिया है, जो एक महत्वपूर्ण मुद्दा है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि यह निर्णय चीन की बढ़ती आर्थिक शक्ति और पर्यावरणीय नीतियों के प्रति अमेरिका की चिंता को दर्शाता है।
प्रतिभागियों की सक्रियता और प्रश्नोत्तर सत्र
डॉ. हैनलों द्वारा दिए गए सारगर्भित व्याख्यान ने प्रतिभागियों के मन में जिज्ञासा जगाने का काम किया। व्याख्यान के अंत में, प्रतिभागियों ने सक्रिय रूप से प्रश्न पूछे और डॉ. हैनलों ने उनके प्रश्नों का उत्तर दिया। इस सत्र ने प्रतिभागियों को विषय की गहरी समझ प्रदान की और उन्हें चीन की राजनीतिक और आर्थिक नीतियों के विभिन्न पहलुओं पर विचार करने का मौका दिया।
व्याख्यान में शामिल प्रमुख व्यक्तित्व
इस व्याख्यान में कई महत्वपूर्ण व्यक्तित्व शामिल रहे। इनमें निदेशक डीएसबी परिसर प्रोफेसर नीता बोरा शर्मा, प्रो. गीता तिवारी, डॉ. सौरभ, ज्योति कांडपाल, डॉ. हर्देश कुमार, डॉ. भूमिका प्रसाद, डॉ. रूचि मित्तल, डॉ. पंकज सिंह और डॉ. मोहित सिंह रौतेला प्रमुख थे। इन सभी ने कार्यक्रम में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया और अपने विचार व्यक्त किए।
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निष्कर्ष
डॉ. रॉबर्ट जे. हैनलों का यह व्याख्यान न केवल चीन की आर्थिक और राजनीतिक नीतियों की गहरी समझ प्रदान करता है, बल्कि यह भी दिखाता है कि कैसे CSR और मानव सुरक्षा जैसे मुद्दे वैश्विक स्तर पर महत्वपूर्ण हो रहे हैं। उन्होंने अपने व्याख्यान में जिस प्रकार से विभिन्न पहलुओं को उजागर किया, उसने सभी प्रतिभागियों को सोचने पर मजबूर कर दिया। इस व्याख्यान ने न केवल शिक्षाविदों और शोधकर्ताओं के लिए महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान की, बल्कि वैश्विक राजनीति और अर्थशास्त्र में रुचि रखने वाले सभी व्यक्तियों के लिए भी इसे मूल्यवान बना दिया।
कुल मिलाकर, यह व्याख्यान कुमाऊं विश्वविद्यालय के छात्रों और शिक्षकों के लिए एक महत्वपूर्ण और ज्ञानवर्धक अवसर था। इसने उन्हें वैश्विक मुद्दों पर एक व्यापक दृष्टिकोण प्रदान किया और उन्हें चीन की नीतियों और उनके वैश्विक प्रभावों को समझने में मदद की। इस तरह के कार्यक्रम भविष्य में भी आयोजित किए जाने चाहिए ताकि छात्र और शिक्षक दोनों ही वैश्विक मुद्दों की गहरी समझ प्राप्त कर सकें।