Bioprospecting and Drug Discovery: कुमाऊं विश्वविद्यालय में ऑनलाइन व्याख्यान: बायोप्रोस्पेक्टिंग और दवा की खोज पर डॉ. बी.एस. कालाकोटी का मार्गदर्शन
Bioprospecting and Drug Discovery: कुमाऊं विश्वविद्यालय के इनोवेशन एंड इनक्यूबेशन सेल तथा विजिटिंग प्रोफेसर निदेशालय द्वारा आयोजित एक विशेष ऑनलाइन व्याख्यान में दवा की खोज और बायोप्रोस्पेक्टिंग के क्षेत्र में नए दृष्टिकोण प्रस्तुत किए गए। इस व्याख्यान के मुख्य वक्ता डॉ. बी.एस. कालाकोटी थे, जो मिनार्ड कंपनी, बाजपुर के निदेशक, एलुमनी सेल के अध्यक्ष, और “फ्लोरा ऑफ नैनीताल” पुस्तक के लेखक हैं।
डॉ. कालाकोटी ने अपने व्याख्यान में बायोप्रोस्पेक्टिंग और नई दवाओं की खोज के लिए पौधों की महत्वपूर्ण भूमिका पर प्रकाश डाला। उन्होंने पौधों के चयन, संग्रहण और खेती की आधुनिक तकनीकों की चर्चा की, जो इस क्षेत्र में उभरती चुनौतियों का समाधान प्रस्तुत करती हैं।
बायोप्रोस्पेक्टिंग: प्रकृति से दवा की खोज
डॉ. कालाकोटी ने बताया कि आज भी दवाओं के लिए 75% सामग्री जंगलों से प्राप्त होती है। यह दर्शाता है कि प्रकृति दवा निर्माण में कितनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। उन्होंने बताया कि पौधों की खेती को बढ़ावा देकर इस निर्भरता को नियंत्रित किया जा सकता है।
डॉ. कालाकोटी ने पौधों के चयन और संग्रहण की विधियों पर विस्तार से चर्चा की। उन्होंने बताया कि पौधों की गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए लैबोरेटरी जांच आवश्यक है। रासायनिक परीक्षण और उपकरणों का उपयोग करके पौधों की संरचना और उनके औषधीय गुणों की पहचान की जा सकती है।
डाइट्री सप्लीमेंट्स और न्यूट्रास्यूटिकल्स का महत्व
डॉ. कालाकोटी ने डाइट्री सप्लीमेंट्स और न्यूट्रास्यूटिकल्स की बढ़ती मांग के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि ये उत्पाद न केवल स्वास्थ्य को बढ़ावा देते हैं बल्कि कई बीमारियों की रोकथाम में भी मददगार हैं।
महत्वपूर्ण औषधीय पौधे और उनके उपयोग
अपने व्याख्यान में डॉ. कालाकोटी ने कुछ महत्वपूर्ण औषधीय पौधों और उनके उपयोग की जानकारी दी। उन्होंने लैवेंडर, केडर ऑयल, और जीनियम ऑयल के औषधीय गुणों पर विशेष जोर दिया। ये पौधे केवल दवाओं में ही नहीं बल्कि कॉस्मेटिक्स और सुगंधित उत्पादों में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
भारत में बायोप्रोस्पेक्टिंग की संभावनाएं और चुनौतियां
डॉ. कालाकोटी ने भारत में बायोप्रोस्पेक्टिंग के क्षेत्र में बड़ी संभावनाओं पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि भारत में वनस्पतियों की प्रचुरता है, जो दवा निर्माण में अनूठे अवसर प्रदान करती है। हालांकि, इस क्षेत्र में बेहतर शोध और तकनीकी उपकरणों की आवश्यकता है।
कार्यक्रम के मुख्य सहभागी और आयोजन की सफलता
इस व्याख्यान में 101 प्रतिभागियों ने भाग लिया। प्रतिभागियों में कुमाऊं विश्वविद्यालय के कई प्रमुख शिक्षाविद् शामिल थे, जिनमें डॉ. एस.एस. सामंत, प्रोफेसर एस.डी. तिवारी, प्रोफेसर सुषमा टम्टा, प्रोफेसर वीणा पांडे, डॉ. लज्जा भट्ट, और अन्य प्रतिष्ठित विद्वान शामिल थे।
कार्यक्रम का संचालन विजिटिंग प्रोफेसर निदेशालय के निदेशक प्रो. ललित तिवारी ने किया, जबकि इनोवेशन सेल के निदेशक प्रो. आशीष तिवारी ने सभी अतिथियों और प्रतिभागियों का स्वागत किया।
दवा क्षेत्र की जरूरतें और शोध का महत्व
डॉ. कालाकोटी ने इस बात पर जोर दिया कि बाजार में नई दवाओं की अत्यधिक आवश्यकता है। बेहतर शोध और आधुनिक उपकरणों का उपयोग करके इस मांग को पूरा किया जा सकता है। उन्होंने बताया कि गुणवत्तापूर्ण शोध के लिए पौधों की सही पहचान और उनकी औषधीय क्षमता का अध्ययन आवश्यक है।
कुमाऊं विश्वविद्यालय का यह ऑनलाइन व्याख्यान न केवल प्रतिभागियों के लिए ज्ञानवर्धक रहा, बल्कि बायोप्रोस्पेक्टिंग के क्षेत्र में नए शोध और संभावनाओं के द्वार भी खोले। डॉ. बी.एस. कालाकोटी के व्याख्यान ने प्रतिभागियों को दवा निर्माण, पौधों की खेती, और उनकी जांच के महत्व को समझने में मदद की।
यह आयोजन विश्वविद्यालय के इनोवेशन सेल और विजिटिंग प्रोफेसर निदेशालय की एक बड़ी उपलब्धि थी। इस तरह के कार्यक्रम न केवल शोधकर्ताओं को प्रेरित करते हैं बल्कि औद्योगिक और शैक्षणिक जगत के बीच सेतु का काम भी करते हैं।