Dev Deepawali देव दीपावली: देवताओं की दिवाली का पर्व और उसकी पौराणिक महत्ता
Dev Deepawali: “ॐ श्रीं ह्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं ॐ महालक्ष्मयै नम:”—इस पावन मंत्र के साथ जब दीप जलाए जाते हैं, तो वातावरण में एक अद्भुत ऊर्जा और दिव्यता का संचार होता है। यह विशेष पर्व देव दीपावली के नाम से जाना जाता है, जिसे दिवाली के 15 दिन बाद कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर मनाया जाता है। इस दिन को “देवताओं की दिवाली” के रूप में जाना जाता है, क्योंकि ऐसा माना जाता है कि इस दिन देवता स्वयं धरती पर आकर दीप जलाकर उत्सव मनाते हैं।
देव दीपावली का पौराणिक महत्व और इतिहास Dev Deepawali
देव दीपावली का उत्सव कार्तिक मास की पूर्णिमा को बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। इस दिन का महत्व केवल धार्मिक ही नहीं, बल्कि सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी अत्यधिक महत्वपूर्ण है। पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान शिव ने इसी दिन त्रिपुरासुर नामक राक्षस का वध कर देवताओं को आतंक से मुक्त किया था। त्रिपुरासुर की मृत्यु के उपलक्ष्य में देवताओं ने धरती पर आकर दीपों की मालाएँ सजाकर विजय का उत्सव मनाया था। इस घटना को श्रद्धा और आस्था के साथ हर वर्ष “देव दीपावली” के रूप में मनाया जाता है।
इस पर्व का एक और महत्त्व यह भी है कि इसी दिन सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक देव जी का जन्म हुआ था, जिसे “गुरुपर्व” के रूप में मनाया जाता है। इस प्रकार, देव दीपावली धार्मिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से अद्वितीय महत्व रखती है। Dev Deepawali
काशी और प्रयागराज की प्रसिद्ध देव दीपावली
भारत के धार्मिक नगरों में, विशेषकर काशी (वाराणसी) और प्रयागराज में देव दीपावली का उत्सव बहुत धूमधाम से मनाया जाता है। गंगा नदी के किनारे हज़ारों दीपों की ज्योति से सजी हुई सीढ़ियाँ और घाट, एक अनूठा दृश्य प्रस्तुत करती हैं। ऐसा माना जाता है कि इस दिन देवता स्वयं गंगा के तट पर आकर दीप जलाते हैं और धरती पर दिव्यता का संचार करते हैं। काशी के घाटों पर लाखों श्रद्धालु एकत्र होते हैं, गंगा आरती और दीपदान के माध्यम से भगवान शिव और विष्णु की आराधना करते हैं।
देव दीपावली के अनुष्ठान और पूजा विधि
देव दीपावली के दिन दीप जलाने की परंपरा अत्यधिक महत्वपूर्ण मानी जाती है। इस पर्व पर 8 या 12 मुख वाले दीपक जलाने की विशेष महत्ता है, क्योंकि भगवान भोलेनाथ (शिव) की पूजा इसी प्रकार के दीपों से की जाती है। शास्त्रों के अनुसार, इस दिन सोना, चांदी, और लोहे के तत्वों का निर्माण हुआ था, इसलिए इन धातुओं से बने दीप जलाने से शुभ फल प्राप्त होते हैं।
पांच प्रमुख स्थानों पर दीपदान की परंपरा:
- घर के मंदिर में दीपक जलाना – घर की सुख-समृद्धि और शांति के लिए।
- भगवान विष्णु और शिव मंदिर में दीपदान – भगवान की कृपा और आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए।
- नदी किनारे दीप जलाना – देवताओं का स्वागत करने के लिए।
- गुरु पीपल वृक्ष के नीचे दीपक जलाना – गुरु कृपा और ज्ञान प्राप्ति के लिए।
- खेतों में दीप जलाना – कृषि की उन्नति और बेहतर फसल के लिए।
इन स्थानों पर दीप जलाने से न केवल घर और जीवन में सुख-शांति आती है, बल्कि यह माना जाता है कि इससे सभी प्रकार के कष्टों का निवारण होता है।
अहंकार, क्रोध, और लोभ का अंत
देव दीपावली के दिन का आध्यात्मिक महत्व यह है कि इस दिन हम अपने भीतर के राक्षसी गुणों जैसे अहंकार, क्रोध, लोभ, और वासना का अंत कर सकते हैं। इस पर्व के माध्यम से हम अपने भीतर छिपे देवत्व को जागृत करने का प्रयास करते हैं। यह पर्व आत्मशुद्धि और अंतर्मन की दिव्यता को स्वीकारने का प्रतीक है।
देव दीपावली का संदेश यह है कि हम अपने अंदर के अंधकार को मिटाकर जीवन में उजाला फैलाएं। इस दिन आकाशदीप के माध्यम से देवताओं का स्वागत किया जाता है और पूर्वजों की आत्माओं को श्रद्धांजलि दी जाती है।
आकाशदीप और पूर्वजों का आह्वान
देव दीपावली के अवसर पर आकाशदीप जलाने की भी परंपरा है। इसे आकाशीय दीपदान कहा जाता है। यह दीप आकाश में ऊंचाई पर बांधा जाता है ताकि देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त हो और पूर्वजों की आत्मा को शांति मिले। इस परंपरा का उद्देश्य धरती पर देवताओं के आगमन का स्वागत करना और उन सभी पितरों को श्रद्धांजलि देना है जिन्होंने इस जीवन में हमें अपना मार्गदर्शन और संरक्षण प्रदान किया।
भविष्य के लिए शुभकामनाएँ
इस पावन अवसर पर हम सभी के लिए प्रार्थना करते हैं कि भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की कृपा से हर घर में समृद्धि और शांति बनी रहे। भगवान शिव की आराधना से जीवन के सभी दुखों और कष्टों का निवारण हो।
“नारायणाय विद्महे। वासुदेवाय धीमहि। तन्नो विष्णु प्रचोदयात्।” इस मंत्र का जाप करने से मन और आत्मा को शांति प्राप्त होती है और जीवन के हर क्षेत्र में सफलता प्राप्त होती है।
Dev Deepawali-दिव्यता और आध्यात्मिकता का उत्सव
देव दीपावली हमें यह याद दिलाती है कि जीवन में प्रकाश और अंधकार के बीच संतुलन बनाना कितना आवश्यक है। इस पर्व के माध्यम से हम अपने भीतर की बुराइयों को समाप्त कर, देवत्व का स्वागत कर सकते हैं। आइए, इस देव दीपावली पर हम सभी अपने भीतर के अंधकार को दूर करें और दीपों की ज्योति से जीवन को रोशन करें।
भगवान की कृपा और आशीर्वाद हम सभी पर बना रहे, यही शुभकामनाएँ हैं। सभी को देव दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ!