History of Kedarnath Election: उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित केदारनाथ विधानसभा सीट, जिसे 11वें ज्योतिर्लिंग के नाम पर जाना जाता है, न केवल धार्मिक दृष्टि से बल्कि राजनीतिक रूप से भी एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है। केदारनाथ का राजनीतिक इतिहास और वर्तमान उपचुनाव का माहौल, भाजपा और कांग्रेस के बीच दिलचस्प प्रतिस्पर्धा का संकेत दे रहा है।
प्रत्याशियों का चयन और राजनीतिक गणित
भाजपा और कांग्रेस दोनों ही पार्टियों ने उपचुनाव में प्रत्याशी चयन में सावधानी बरती है। भाजपा ने आशा नौटियाल को टिकट देकर यह संदेश दिया है कि पार्टी न केवल अपने पुराने और अनुभवी नेताओं पर विश्वास करती है, बल्कि वह किसी भी प्रकार के दबाव में नहीं आएगी। आशा नौटियाल दो बार की विधायक हैं और उनके नाम केदारनाथ की पहली महिला विधायक होने का गौरव भी है।
कांग्रेस ने मनोज रावत को प्रत्याशी बनाकर अपने सुरक्षित पत्ते पर दांव खेला है। मनोज रावत, जो 2017 में विधायक रह चुके हैं, कांग्रेस के लिए एक भरोसेमंद चेहरा हैं। वहीं, भाजपा ने दिवंगत विधायक शैलारानी रावत की बेटी ऐश्वर्या रावत को टिकट न देकर यह स्पष्ट कर दिया है कि वह केवल सहानुभूति की राजनीति पर निर्भर नहीं है। इसके अलावा, कुलदीप सिंह रावत, जो निर्दलीय चुनाव लड़कर पहले भी 13,000-14,000 वोट ला चुके हैं, अब भाजपा के निर्णय पर अपना रुख स्पष्ट करेंगे।
क्या कुलदीप रावत देंगे निर्दलीय चुनौती? History of Kedarnath Election
कुलदीप रावत, जो हाल ही में भाजपा में शामिल हुए थे, ने संकेत दिए हैं कि यदि उन्हें टिकट नहीं मिला तो वे निर्दलीय चुनाव लड़ सकते हैं। हालांकि, जानकारों का मानना है कि यदि वे निर्दलीय चुनाव लड़ते भी हैं, तो इससे भाजपा को ही फायदा होगा। यहां तक कि कुछ विश्लेषकों का यह भी कहना है कि भाजपा ने जानबूझकर उन्हें निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ने का मौका दिया है, ताकि कांग्रेस का वोट बैंक विभाजित हो सके।
केदारनाथ सीट का ऐतिहासिक सफर
1951 से लेकर अब तक, इस सीट पर कई राजनीतिक समीकरण बनते और बिगड़ते रहे हैं। शुरुआती समय में यह सीट ‘चमोली पश्चिम सह पौड़ी उत्तर’ के नाम से जानी जाती थी। पहले विधायक गंगाधर मैठाणी प्रजा सोशलिस्ट पार्टी से चुने गए थे। समय के साथ सीट का सीमांकन और नाम बदलता रहा, और 1967 में यह ‘बदरी-केदार’ के नाम से प्रसिद्ध हो गई। History of Kedarnath Election
भाजपा और कांग्रेस दोनों का इस सीट पर अच्छा-खासा प्रभाव रहा है। 1989 के बाद से अब तक हुए नौ चुनावों में भाजपा ने छह बार और कांग्रेस ने तीन बार जीत हासिल की है। भाजपा के केदार सिंह फोनिया ने इस सीट पर तीन बार विधायक बनने का रिकॉर्ड बनाया है, और यदि आशा नौटियाल इस चुनाव में जीतती हैं तो वह भी इस रिकॉर्ड की बराबरी कर लेंगी।
महिला नेतृत्व का दबदबा History of Kedarnath Election
केदारनाथ सीट पर महिला नेताओं का प्रभाव हमेशा से देखा गया है। राज्य बनने के बाद हुए पांच चुनावों में चार बार महिला प्रत्याशियों ने जीत दर्ज की है। भाजपा की आशा नौटियाल और शैलारानी रावत ने दो-दो बार विधायक बनने का गौरव प्राप्त किया है। यह सीट इस बार भी एक महिला विधायक देने की दिशा में अग्रसर है, क्योंकि भाजपा की प्रत्याशी आशा नौटियाल यदि जीतती हैं, तो यह सिलसिला बरकरार रहेगा।
2017 में हुए चुनावों में भाजपा ने शैलारानी रावत को उम्मीदवार बनाया था, जिन्होंने कांग्रेस के मनोज रावत को हराकर जीत दर्ज की थी। लेकिन 2022 के चुनाव में कांग्रेस के प्रदर्शन में गिरावट आई, और मनोज रावत तीसरे स्थान पर खिसक गए। भाजपा की शैलारानी रावत ने निर्दलीय प्रत्याशी कुलदीप रावत को 8,000 से अधिक वोटों के अंतर से हराया था। History of Kedarnath Election
शैलारानी रावत के निधन के बाद इस उपचुनाव की स्थिति और भी दिलचस्प हो गई है। भाजपा ने आशा नौटियाल को प्रत्याशी बनाकर स्पष्ट किया है कि वह अनुभवी नेताओं पर ही भरोसा करेगी।
भाजपा और कांग्रेस की रणनीति History of Kedarnath Election
भाजपा और कांग्रेस दोनों ही पार्टियां इस उपचुनाव को लेकर गंभीर हैं। भाजपा जहां अपने संगठन और मजबूत वोट बैंक के बल पर चुनाव लड़ रही है, वहीं कांग्रेस ने अपने अनुभवी नेता मनोज रावत को मैदान में उतारा है। भाजपा ने अपने निर्णय से यह संकेत दिया है कि पार्टी दबाव में आकर निर्णय नहीं करती, और ऐश्वर्या रावत और कुलदीप रावत की बयानबाजी को भी नजरअंदाज किया गया है।
केदारनाथ विधानसभा सीट पर इस बार का उपचुनाव बेहद रोमांचक रहने वाला है। जहां भाजपा अपनी जीत की लय को बरकरार रखना चाहेगी, वहीं कांग्रेस पिछली हार का बदला लेने की पूरी कोशिश करेगी। कुलदीप रावत का रुख भी इस चुनाव में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है, क्योंकि यदि वे निर्दलीय चुनाव लड़ते हैं, तो भाजपा को अप्रत्यक्ष रूप से लाभ हो सकता है।
History of Kedarnath Election
केदारनाथ विधानसभा उपचुनाव न केवल स्थानीय राजनीति के लिहाज से बल्कि राज्य की राजनीति के लिए भी महत्वपूर्ण है। भाजपा और कांग्रेस दोनों ही पार्टियां अपने-अपने तरीके से मतदाताओं को आकर्षित करने की कोशिश कर रही हैं। इस चुनाव का परिणाम यह तय करेगा कि क्या भाजपा अपनी मजबूत पकड़ बरकरार रख पाएगी, या कांग्रेस वापसी करेगी।
इस उपचुनाव के परिणाम भविष्य के राजनीतिक समीकरणों को भी प्रभावित कर सकते हैं, खासकर 2024 के लोकसभा चुनावों के मद्देनजर। चाहे जो भी परिणाम हो, केदारनाथ का यह उपचुनाव उत्तराखंड की राजनीति में एक नया अध्याय जोड़ने के लिए तैयार है।