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Baudh Dham चित्त की चेतना के चार खंड: बौद्ध धम्म में आत्मा की अस्वीकृति और चित्त का महत्व

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Baudh Dham चित्त की चेतना के चार खंड: बौद्ध धम्म में आत्मा की अस्वीकृति और चित्त का महत्व

बौद्ध धम्म (Baudh Dham) में चित्त की चेतना के चार खंडों का वर्णन किया गया है, जिनके माध्यम से मनुष्य अपने अनुभवों को समझता और प्रतिक्रियाएँ देता है। ये खंड क्रमशः मन (विज्ञान), बुद्धि (संज्ञा), चित्त (वेदना), और अहंकार (संस्कार) के रूप में कार्य करते हैं। इन खंडों के माध्यम से, बौद्ध धम्म की शिक्षा हमें यह समझने में मदद करती है कि चित्त अस्थायी, परिवर्तनशील, और अनित्य है, और इस संसार में स्थायी आत्मा का कोई अस्तित्व नहीं है।

1. मन (विज्ञान) – संवेदनाओं का पहला संपर्क

चित्त का पहला खंड “मन” विज्ञान का कार्य करता है, जिसमें संवेदनाओं का प्रथम संपर्क होता है। जब भी किसी इंद्रिय (आँख, नाक, कान, जीभ, त्वचा, और मन) के माध्यम से बाहरी वस्तुओं का संपर्क होता है, तो सबसे पहले यह खंड सक्रिय होता है। यह खंड किसी भी प्रकार की संवेदना को जाग्रत करता है, चाहे वह दृश्य, गंध, ध्वनि, स्वाद, स्पर्श, या विचार के रूप में हो। उदाहरण के लिए, जब कानों में कोई शब्द प्रवेश करता है, तो मन का विज्ञान जाग्रत होता है, जिससे पूरा शरीर एक प्रकार की तरंगों से प्रभावित होता है। यह तरंगें न्यूट्रल होती हैं, जिनमें कोई सुख-दुख की भावना नहीं होती।

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2. बुद्धि (संज्ञा) – पहचान और मूल्यांकन

दूसरा खंड, “बुद्धि,” संज्ञा का कार्य करता है, जो संवेदनाओं की पहचान और मूल्यांकन करता है। यह खंड न केवल संवेदनाओं की पहचान करता है बल्कि उन्हें एक अर्थ देता है। उदाहरण के लिए, जब कानों में कोई शब्द प्रवेश करता है, तो बुद्धि उस शब्द की पहचान करती है और उसका मूल्यांकन करती है कि वह गाली है या प्रशंसा। इस मूल्यांकन के आधार पर आगे की प्रक्रियाएँ शुरू होती हैं, जो चित्त की प्रतिक्रिया को निर्धारित करती हैं।

3. चित्त (वेदना) – संवेदनाओं की प्रतिक्रिया

तीसरा खंड, “चित्त,” वेदना का कार्य करता है, जो संवेदनाओं के प्रति प्रतिक्रिया को आकार देता है। जब बुद्धि ने यह मूल्यांकन कर लिया कि शब्द गाली है या प्रशंसा, तो चित्त की प्रतिक्रिया उत्पन्न होती है। यदि मूल्यांकन के अनुसार वह गाली है, तो न्यूट्रल तरंगें दुखद संवेदनाओं में परिवर्तित हो जाती हैं, और यदि वह प्रशंसा है, तो वे सुखद संवेदनाओं में बदल जाती हैं। इस प्रकार, चित्त का कार्य संवेदनाओं के प्रति हमारी आंतरिक प्रतिक्रिया को निर्धारित करना है।

4. अहंकार (संस्कार) – प्रतिक्रियाओं का निर्माण

चित्त का चौथा खंड “अहंकार” संस्कार का कार्य करता है, जो इन सुखद या दुखद संवेदनाओं के प्रति प्रतिक्रियाएँ उत्पन्न करता है। ये प्रतिक्रियाएँ राग (चाहना) और द्वेष (अवांछना) के रूप में प्रकट होती हैं। सुखद संवेदनाओं के प्रति राग उत्पन्न होता है, जिससे हम उन्हें बनाए रखने या और अधिक पाने की कोशिश करते हैं। वहीं, दुखद संवेदनाओं के प्रति द्वेष उत्पन्न होता है, जिससे हम उन्हें दूर करने की कोशिश करते हैं। यह प्रक्रिया हमारे संपूर्ण मानसिक और शारीरिक अनुभवों को नियंत्रित करती है।

आत्मा का अस्वीकार और चित्त का महत्व

बौद्ध धम्म में चित्त की महत्वपूर्ण भूमिका इस बात की ओर इशारा करती है कि चित्त अस्थायी, परिवर्तनशील, और अनित्य है। जब इस संसार में सब कुछ अस्थायी है, तो स्थायी आत्मा का कोई अस्तित्व कैसे हो सकता है? बौद्ध धम्म में आत्मा और परमात्मा की अवधारणा को अस्वीकार किया गया है, क्योंकि ये केवल स्थायित्व और अपरिवर्तनशीलता के मिथक पर आधारित हैं।

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ब्राह्मणवाद और आत्मवाद की आलोचना

बौद्ध धम्म में यह कहा गया है कि आत्मा और परमात्मा की अवधारणा केवल सत्ता और श्रेष्ठता बनाए रखने के लिए गढ़ी गई है। यदि आत्मा को स्वीकार किया जाता है, तो परमात्मा को भी स्वीकार करना पड़ेगा, और इसी के साथ ब्राह्मणवाद की श्रेष्ठता को भी मानना पड़ेगा। ब्राह्मणवाद एक विभाजनकारी विचारधारा है, जो मनुष्य को विभिन्न वर्गों में बांटती है, जिससे समाज में असमानता और अन्याय का जन्म होता है। बौद्ध धम्म इस विभाजनकारी विचारधारा के विपरीत, समानता, स्वतंत्रता, भाईचारा, और न्याय की वकालत करता है।

बौद्ध धम्म: मानवता और करुणा का संदेश

बुद्ध का धम्म एकमात्र ऐसा वास्तविक धम्म है, जो न केवल मनुष्यों के लिए, बल्कि सभी प्राणियों के कल्याण के लिए प्रतिबद्ध है। इसमें ईश्वरवाद या नास्तिकतावाद की कोई जगह नहीं है, बल्कि यह मनुष्य की आस्था को उसके भीतर और प्रकृति में स्थापित करता है। बुद्ध के सिद्धांत करुणा, मैत्री, मुदिता, और उपेक्षा पर आधारित हैं, जो सभी प्राणियों के लिए कल्याणकारी हैं।

Baudh Dham

चित्त की चेतना के चार खंड हमें यह समझने में मदद करते हैं कि हमारे मानसिक और शारीरिक अनुभव किस प्रकार कार्य करते हैं। बौद्ध धम्म में आत्मा और परमात्मा की अवधारणा को अस्वीकार करते हुए, चित्त की अस्थायित्वता और परिवर्तनशीलता को स्वीकार किया गया है। यह दृष्टिकोण मनुष्य के कल्याण और समाज में समानता, स्वतंत्रता, और न्याय की स्थापना के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। बौद्ध धम्म का संदेश हमें इस संसार में वास्तविकता को समझने और सही दिशा में कार्य करने की प्रेरणा देता है।


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