Towards the True Path सच्चे मार्ग की ओर: सच्ची भक्ति आत्मा की शांति और ईश्वर की पहचान में है; धन के होने के बावजूद भी आदमी कंगाल यानी भिखारी ही रहते हैं
ईश्वर की प्रजा: सच्चे मार्ग की ओर
Towards the True Path: मनुष्य को ईश्वर की संतान कहा गया है क्योंकि उसे ईश्वर ने अपनी शकल सूरत में बनाया है। ईश्वर, जो सबसे उत्तम और पवित्र है, जिसका सिंहासन सर्वोच्च है और जो भरपूरी, शांति और आनंद का दाता है, उसकी संतान अगर उसे न पहचाने तो उसे दुख ही होगा। यहां हम इस बात को समझाने का प्रयास करेगा कि क्यों मनुष्य को अपने सच्चे ईश्वर को पहचानना और मानना चाहिए, और क्यों अन्य चीजों पर मन लगाने से उसके जीवन में शांति नहीं आ सकती।
ईश्वर की पहचान
ईश्वर को पहचानने का अर्थ है सच्चे मार्ग को अपनाना और उसके अनुसार जीवन जीना। ईश्वर ने हमें अपनी छवि में बनाया है, इसका मतलब है कि हममें वह सब गुण हैं जो ईश्वर में हैं, परंतु हमें उन्हें पहचानना और सही दिशा में उपयोग करना आना चाहिए। जब हम ईश्वर की पहचान करेंगे, तब ही हम अपनी आत्मा की गहराई को समझ पाएंगे और सच्चे सुख और शांति को प्राप्त कर सकेंगे।
मूर्तिपूजा और अन्य धार्मिक अनुष्ठान
बहुत से लोग अपने जीवन में मूर्तिपूजा, मंदिरों के चक्कर, पंडित और ज्योतिष के कहने पर ग्रहों की पूजा आदि में लगे रहते हैं। यह सब ईश्वर की सच्ची भक्ति से भटकाने वाले तत्व हैं। मनुष्य को यह समझना चाहिए कि सच्ची भक्ति आत्मा की शांति और ईश्वर की पहचान में है, न कि इन बाहरी अनुष्ठानों में।
शैतानी आत्माओं और देवी-देवताओं की पूजा This is a Not’s Towards the True Path
बहुत से लोग देवी-देवताओं, नबी, पंडित और अन्य शैतानी आत्माओं की पूजा में अपना समय और ऊर्जा खर्च करते हैं। यह सब ईश्वर की सच्ची भक्ति से भटकाने वाले तत्व हैं। मनुष्य को यह समझना चाहिए कि सच्ची भक्ति आत्मा की शांति और ईश्वर की पहचान में है, न कि इन बाहरी अनुष्ठानों में।
धन और अहंकार This is a not Towards the True Path
धन का होना जीवन में आवश्यक है, लेकिन इसका सही उपयोग करना और इसके प्रति आसक्ति न रखना भी उतना ही महत्वपूर्ण है। बहुत से लोग धन के होने के बावजूद भी कंगाल यानी भिखारी ही रहते हैं क्योंकि वे अपने सच्चे ईश्वर को नहीं पहचानते और धन के प्रति आसक्त रहते हैं। उन्हें यह समझना चाहिए कि सच्ची संपत्ति आत्मा की शांति और ईश्वर की पहचान में है।
मानव जीवन का उद्देश्य
मनुष्य को इस जीवन में अपने सच्चे ईश्वर को पहचानने और उसके अनुसार जीवन जीने का अवसर मिला है। अगर वह इस अवसर को गवां देता है तो वह अपने अमूल्य मानव शरीर को व्यर्थ कर देता है। इसके परिणामस्वरूप वह नर्क की आग में सड़ता रहेगा। इस जीवन का उद्देश्य ईश्वर की पहचान और उसकी भक्ति में है, न कि बाहरी आडंबर और दिखावे में।
सच्चे राम की समझ
न राम मिला न माया, जिसे माया मिली उसे माया यानी घमंड और अहंकार ही खा गया। उसे सच्चे राम की समझ नहीं मिली। इस कथन का अर्थ है कि सच्ची भक्ति और ईश्वर की पहचान में ही सच्चा सुख और शांति है, न कि माया और घमंड में। हमें यह समझना चाहिए कि सच्चा ईश्वर हमारी आत्मा के भीतर है और उसकी पहचान ही हमें सच्चे सुख और शांति की ओर ले जाएगी।
Towards the True Path
Towards the True Path: मनुष्य को अपने सच्चे ईश्वर को पहचानना और मानना चाहिए। बाहरी आडंबर, मूर्तिपूजा, धन और अन्य शैतानी आत्माओं की पूजा में समय और ऊर्जा खर्च करना व्यर्थ है। सच्ची भक्ति आत्मा की शांति और ईश्वर की पहचान में है। हमें अपने इस अमूल्य मानव जीवन को व्यर्थ नहीं गवाना चाहिए और सच्चे ईश्वर की भक्ति में लगाना चाहिए। यही सच्चा मार्ग है जो हमें सच्चे सुख और शांति की ओर ले जाएगा।