Judiciary’s inaction न्यायपालिका की निष्क्रियता: देश की समस्याओं पर मूकदर्शक
Judiciary’s inaction: भारत एक लोकतांत्रिक देश है जहां न्यायपालिका को संविधान द्वारा एक महत्वपूर्ण भूमिका सौंपी गई है। यह संस्था सरकार की नीतियों और कार्यों की समीक्षा करने के साथ-साथ न्याय प्रदान करने की जिम्मेदारी भी निभाती है। लेकिन वर्तमान समय में, न्यायपालिका की निष्क्रियता और सरकार की तरफ देखने की प्रवृत्ति ने कई गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
पेपर आउट हो रहा, न्यायपालिका मूकदर्शक
हाल ही में हुई कई परीक्षाओं में पेपर आउट होने की घटनाएं सामने आई हैं। ये घटनाएं न केवल शिक्षा प्रणाली पर सवाल उठाती हैं, बल्कि विद्यार्थियों के भविष्य को भी धूमिल करती हैं। न्यायपालिका को इन मामलों में त्वरित और सख्त कार्रवाई करनी चाहिए थी, लेकिन अभी भी न्यायपालिका सरकार की ओर देख रही है। विद्यार्थी और उनके अभिभावक न्याय की उम्मीद में हैं, लेकिन न्यायपालिका की निष्क्रियता उनके लिए निराशाजनक साबित हो रही है।
सड़कों पर कुचले जा रहे लोग, न्यायपालिका मौन
सड़कों पर दुर्घटनाएं हो रही हैं, सैकड़ों लोग कुचले जा रहे हैं, लेकिन न्यायपालिका की तरफ से कोई ठोस कदम नहीं उठाए जा रहे हैं। सड़कों की दुर्दशा, यातायात नियमों का उल्लंघन और प्रशासन की लापरवाही के कारण कई निर्दोष लोग अपनी जान गंवा रहे हैं। न्यायपालिका की जिम्मेदारी है कि वह ऐसे मामलों में स्वतः संज्ञान ले और सरकार को कठोर कदम उठाने के लिए निर्देशित करे, लेकिन यहां भी न्यायपालिका केवल सरकार की ओर देख रही है।
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बुलडोजर की मार, न्यायपालिका की चुप्पी
हाल के दिनों में विभिन्न स्थानों पर बुलडोजर की कार्रवाई ने लोगों के घरों और व्यापारिक प्रतिष्ठानों को नुकसान पहुंचाया है। बिना उचित न्यायिक प्रक्रिया के यह कार्रवाई लोगों के संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन है। न्यायपालिका को इन मामलों में हस्तक्षेप करना चाहिए और सुनिश्चित करना चाहिए कि सभी नागरिकों को न्याय मिल सके। लेकिन यहाँ भी न्यायपालिका मूकदर्शक बनी हुई है, सरकार की ओर देख रही है।
पुल गिर रहे, न्यायपालिका मौन
देश भर में कई पुलों के गिरने की घटनाएं सामने आई हैं, जिनमें कई लोगों की जान गई है। यह सरकार की निर्माण और देखरेख की विफलता को दर्शाता है। न्यायपालिका को इन घटनाओं में सक्रिय होकर जांच के आदेश देने चाहिए और दोषियों को सजा दिलाने का काम करना चाहिए। लेकिन यहाँ भी न्यायपालिका की निष्क्रियता दिखाई देती है, सरकार की ओर देख रही है।
लाखों पद खाली, न्यायपालिका निष्क्रिय
सरकारी विभागों में लाखों पद खाली हैं, जिससे कार्यों में विलंब हो रहा है और जनता को परेशानी हो रही है। न्यायपालिका को सरकार से जवाबदेही मांगनी चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि सभी पदों को शीघ्रता से भरा जाए। लेकिन यहाँ भी न्यायपालिका की निष्क्रियता ने सवाल खड़े कर दिए हैं।
कॉलेजियम प्रणाली: योग्यता पर प्रश्नचिह्न
न्यायपालिका में न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम प्रणाली अपनाई जाती है। लेकिन इस प्रणाली में पारदर्शिता और योग्यता का अभाव दिखाई देता है। न्यायाधीशों की नियुक्ति में उनके बच्चों और परिचितों को प्राथमिकता दी जाती है, जो लोकतंत्र और संविधान के सिद्धांतों के खिलाफ है। न्यायपालिका को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि नियुक्ति प्रक्रिया में पारदर्शिता और योग्यता का पालन हो।
आरक्षण और सामाजिक न्याय
फोर्थ क्लास की नौकरियों में आरक्षण प्रणाली लागू है, जो सामाजिक न्याय का प्रतीक है। लेकिन इसे केवल चपरासी बनाने तक सीमित रखना उचित नहीं है। न्यायपालिका को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि आरक्षण का लाभ सभी वर्गों को समान रूप से मिले और सामाजिक न्याय की स्थापना हो।
Judiciary’s inaction
न्यायपालिका की निष्क्रियता ने देश की कई समस्याओं को और भी गंभीर बना दिया है। न्यायपालिका को अपनी जिम्मेदारी को समझते हुए सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए। सरकार को जवाबदेह बनाना और नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करना न्यायपालिका का कर्तव्य है। यदि न्यायपालिका इस दिशा में ठोस कदम उठाती है, तो देश में न्याय और समानता की स्थापना हो सकेगी। न्यायपालिका की निष्क्रियता का प्रभाव समाज के हर वर्ग पर पड़ रहा है, और इसे दूर करने के लिए न्यायपालिका को जागरूक और सक्रिय होना आवश्यक है।