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Dr. Haridatt Bhatt Shailesh साहित्य और संस्कृति के महानायक डॉ. हरिदत्त भट्ट ‘शैलेश’

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Dr. Haridatt Bhatt Shailesh साहित्य और संस्कृति के महानायक डॉ. हरिदत्त भट्ट ‘शैलेश’

डॉ. हरिदत्त भट्ट ‘शैलेश’ (Dr. Haridatt Bhatt Shailesh) का जन्म चमोली (अब रुद्रप्रयाग) जिले के भटवाड़ी गाँव में हुआ था। यह गाँव मंदाकिनी नदी के सुरम्य तट पर स्थित है, जहां कुमार कार्तिकेय की तलहटी में हिमाच्छादित शिखर और निरभ्र आकाश का दृश्य है। इस मनोहारी परिवेश ने बालक शैलेश के मन-मस्तिष्क को आह्लादित, पुचकारित और पुकारित किया। उनके जीवन की शुरुआत इस अद्वितीय प्राकृतिक सौंदर्य से हुई, जिसने उनके व्यक्तित्व और साहित्यिक दृष्टिकोण को गहराई से प्रभावित किया।

प्रारंभिक जीवन और शिक्षा

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Dr. Haridatt Bhatt Shailesh

डॉ. शैलेश की प्रारंभिक शिक्षा ग्रामीण परिवेश में ही हुई। उनके गांव की सादगी और वहां का सरल जीवन उनके व्यक्तित्व को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने अपनी प्राथमिक शिक्षा गाँव में पूरी की और बाद में उच्च शिक्षा के लिए देहरादून के दून स्कूल में दाखिला लिया। दून स्कूल में शिक्षा पूरी करने के बाद, उन्होंने वहीं हिंदी अध्यापक के रूप में अपना करियर शुरू किया और वहीं से सेवानिवृत्त हुए।

साहित्यिक यात्रा की शुरुआत

अध्यापकी के साथ-साथ डॉ. शैलेश हिंदी और गढ़वाली साहित्य के लेखन से भी जुड़े रहे। गढ़वाली भाषा के विकास में उनका योगदान उल्लेखनीय है। उन्होंने गढ़वाली नाटकों और लोकगीतों पर भी महत्वपूर्ण कार्य किया। गढ़वाली रंगमंच को उन्होंने एक नई दिशा दी और देहरादून की साहित्यिक गतिविधियों को नया रूप दिया। उनके प्रयासों ने गढ़वाली साहित्य को समृद्ध किया और इसे एक नई पहचान दिलाई।

पारिवारिक जीवन और हिमानी शिवपुरी

डॉ. शैलेश न केवल एक कुशल साहित्यकार थे, बल्कि एक संवेदनशील पिता भी थे। उन्होंने अपनी बेटी हिमानी शिवपुरी की प्रतिभा को पहचाना और उसे देहरादून के रंगमंच से जोड़ा। बाद में हिमानी का नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा (NSD) में दाखिला करवाया। आज हिमानी शिवपुरी एक प्रख्यात सिने कलाकार हैं, जिनकी अभिनय प्रतिभा को दुनिया भर में सराहा जाता है। हिमानी की सफलता में उनके पिता डॉ. शैलेश का मार्गदर्शन और प्रेरणा का महत्वपूर्ण योगदान है।

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राजनीतिक और सामाजिक संबंध

डॉ. शैलेश के जवाहरलाल नेहरू से गहरे संबंध थे। दून स्कूल में रहते हुए उन्होंने इंदिरा गांधी के बच्चों, राजीव गांधी और संजय गांधी के संरक्षक की भूमिका निभाई। उन्होंने राजीव गांधी को सत्ता के शीर्ष तक पहुँचते देखा, लेकिन उन्होंने कभी इन संबंधों का व्यक्तिगत लाभ नहीं उठाया। यह उनके उच्च नैतिक मूल्यों और सच्ची ईमानदारी को दर्शाता है।

मसूरी में नया अध्याय

सेवानिवृत्ति के बाद, डॉ. शैलेश ने मसूरी के स्प्रिंग रोड स्थित ‘शैल शिखर’ में अपना आशियाना बनाया। मसूरी की साहित्यिक संस्था ‘अलीक’ से जुड़कर उन्होंने मसूरी का साहित्यिक सन्नाटा तोड़ा। ‘अलीक’ में रहते हुए उन्होंने कई साहित्यकारों से मुलाकात की और उनकी बैठकें अक्सर उनके निवास पर ही होती थीं। वे अपने पुराने स्कूटर पर बैठकर इन बैठकों में पहुँच जाते थे और साहित्यिक आयोजन की बातें करते थे। उन्होंने गोष्ठियों में अपनी कविताओं और कहानियों का पाठ किया और संस्मरण सुनाए।

साहित्यिक योगदान और प्रभाव

डॉ. शैलेश का साहित्यिक योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण है। उन्होंने अपनी रचनाओं में सामाजिक मुद्दों, मानवीय संवेदनाओं और नैतिक मूल्यों को प्रमुखता दी। उनकी लेखनी में गढ़वाली और हिंदी दोनों ही भाषाओं का अद्वितीय संगम मिलता है। उनकी रचनाओं में एक विशिष्ट आकर्षण था, जो पाठकों को गहराई तक प्रभावित करता था।

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उनकी कविताएँ और कहानियाँ सामाजिक समस्याओं को उजागर करती थीं और समाधान की दिशा में मार्गदर्शन प्रदान करती थीं। उनकी रचनाएँ गढ़वाली संस्कृति और समाज का एक वास्तविक चित्र प्रस्तुत करती हैं, जो पाठकों को सोचने पर मजबूर कर देती हैं।

‘अलीक’ और मसूरी की साहित्यिक धारा

मसूरी में ‘अलीक’ संस्था के साथ जुड़कर डॉ. शैलेश ने स्थानीय साहित्यिक गतिविधियों को प्रोत्साहित किया। उन्होंने मसूरी के साहित्यिक परिदृश्य को जीवंत बनाया और कई साहित्यकारों के साथ मिलकर साहित्यिक गोष्ठियों का आयोजन किया। उनकी उपस्थिति और मार्गदर्शन ने स्थानीय साहित्यकारों को प्रेरित किया और उन्हें अपनी रचनात्मकता को निखारने का अवसर प्रदान किया।

उत्तराखंड को गौरवान्वित करने वाला व्यक्तित्व

डॉ. हरिदत्त भट्ट ‘शैलेश’ ने अपने जीवन और कृतित्व से उत्तराखंड को गौरवान्वित किया। उन्होंने अपनी जड़ों से जुड़े रहते हुए आधुनिकता को अपनाया और अपने जीवन में दोनों का संतुलन बनाए रखा। उनकी रचनाओं में जहाँ गढ़वाली संस्कृति की मिठास है, वहीं हिंदी साहित्य का गहन अध्ययन और विश्लेषण भी है। उनके जीवन और साहित्य से हमें यह सीखने को मिलता है कि अपनी संस्कृति और परंपराओं को संजोते हुए कैसे आधुनिकता की ओर बढ़ा जा सकता है।

साहित्यिक धरोहर और स्मरण

डॉ. शैलेश की साहित्यिक धरोहर अमूल्य है। उनके द्वारा लिखी गई कविताएँ, कहानियाँ, नाटक और लोकगीत आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बने रहेंगे। उन्होंने अपने जीवन में जो अनुभव और ज्ञान संजोया, उसे अपनी रचनाओं के माध्यम से समाज के साथ साझा किया। उनके द्वारा संजोई गई यह धरोहर हमें हमेशा यह याद दिलाती रहेगी कि सच्चे साहित्यकार वही होते हैं, जो अपने समाज और संस्कृति से जुड़े रहते हैं और उनके विकास में योगदान देते हैं।

डॉ. हरिदत्त भट्ट ‘शैलेश’ का जीवन एक प्रेरणा है। उनके योगदानों को स्मरण करते हुए हम उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हैं और उनके द्वारा सिखाए गए मार्ग पर चलने का संकल्प लेते हैं। उनके द्वारा दिखाए गए मार्ग पर चलकर हम भी अपने समाज और संस्कृति को समृद्ध बना सकते हैं और सच्ची सफलता प्राप्त कर सकते हैं।

उत्तराखंड की धरोहर

डॉ. हरिदत्त भट्ट ‘शैलेश’ का जीवन और कृतित्व हमारे लिए सदैव प्रेरणा का स्रोत रहेगा। उनके योगदान को स्मरण करते हुए हम उनके प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त करते हैं और उनके द्वारा दिखाए गए मार्ग पर चलने का संकल्प लेते हैं। उनके साहित्यिक और सांस्कृतिक योगदान को हम हमेशा याद रखेंगे और उनके आदर्शों को अपने जीवन में अपनाने का प्रयास करेंगे।

उनका जीवन और उनकी रचनाएँ हमें यह सिखाती हैं कि साहित्य केवल मनोरंजन का साधन नहीं है, बल्कि यह समाज की आत्मा का प्रतिबिंब है। उनके द्वारा लिखी गई कविताओं, कहानियों और नाटकों में हमें समाज की सच्चाई, उसकी समस्याएँ और उनके समाधान के सुझाव मिलते हैं। वे सदैव हमारे ह्रदय में रहेंगे और उनकी यादें हमें प्रेरित करती रहेंगी।

डॉ. हरिदत्त भट्ट ‘शैलेश’ का जीवन और कृतित्व हमारे लिए सदैव प्रेरणा का स्रोत रहेगा। उनके योगदान को स्मरण करते हुए हम उनके प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त करते हैं और उनके द्वारा दिखाए गए मार्ग पर चलने का संकल्प लेते हैं। उनके साहित्यिक और सांस्कृतिक योगदान को हम हमेशा याद रखेंगे और उनके आदर्शों को अपने जीवन में अपनाने का प्रयास करेंगे।


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