Tejpat Cinnamomum tamala Nees & Eberm तेजपात के पत्तियो एवं छाल का उपयोग मुख्यतः मसालों के रूप में उपयोग करना सेहत के लिए फायदेमंद
आर्थिक दृष्टि से महत्वपूर्ण प्रजाति तेजपात (Cinnamomum tamala Nees & Eberm)
सामान्य परिचयः
सिनामोमम ग्रीक भाषा के शब्द किनामोम से लिया गया है जिसका अर्थ है स्पाइस अर्थात मसाले और तमाला भारतीय पौधे का स्थानीय नाम है। तेजपात (सिनामोमम तमाला) भारतीय मूल का पाधा है।
यह एक मध्यम आकार का वृक्ष है। जिसकी ऊंचाई सामान्यत लगभग 8 मी0 तक एवं तने की गोलाई 150 से.मी. तक होती है। इसकी पत्तिया बल्लम नोक वाली, एकान्त, प्रतिमुख क्रम में होती है। इसकी पत्तियों का वृन्त (bUBy) छोटा होता है एवं पत्तियों के आधार से तीन शिराए निकलती है। तेजपात पर मई माह में फूल खिलते हैं एवं फल जुलाई माह में प्राप्त होते हैं।
उपयोगः
तेजपात के पत्तियो एवं छाल का उपयोग मुख्यतः मसालों के रूप में किया जाता है। इसकी पत्तियों से तेल प्राप्त किया जाता है जिसमे 70 से 85 प्रतिशत तक सीनेमिक एल्डीहाइड पाया जाता है। जिसका उपयोग मुख्यतः औषधियों एवं सुगन्धित साबुन व शैम्पू, कॉस्मेटिक आदि निर्माण में किया जाता है।
प्राप्ति स्थानः
तेजपात के वृक्ष 1000 मी0 से लेकर 2000 मी0 तक की ऊँचाई पर उष्णकटीबन्धीय और हिमालय के उपकटीबन्धीय क्षेत्रों, खासी और जन्तियां की पहाड़ियो और पूर्वी बंगाल मे प्रचूर मात्रा में पाया जाता है।
उपयोगी अंगः पत्तियाँ एवं छाल।
औषधीय गुणः
तेजपात की पत्तियों का उपयोग आत्र शोध एवं उदर विकारों के उपचारम्भ किया जाता है। इसके साथ-साथ विभिन्न प्रकार की आयुर्वेदिक औषधियों जैसे सुदर्शन चूर्ण, चन्द्रप्रभा वटी व मसाले बनाने में किया जाता है।
कृषिकरण हेतु विषेशताएं:
तेजपात के वृक्षों की अच्छी वृद्धि के लिए प्रारम्भिक दौर में छाया की आवश्यकता होती है।
कृषिकरण हेतु तकनीक
उपयुक्त जलवायु: समशीतोष्ण से लेकर उष्णकटिबन्धीय क्षेत्रों की जलवायु तेजपात के कृषिकरण के लिए उपयुक्त मानी जाती है।
उपयुक्त भूमिः तेजपात की खेती रेतीली दोमट मिट्टी से लेकर गहरी काली एवं चिकनी मिट्टी में सुगमतापूर्वक की जा सकती है।
वर्षा: तेजपात के लिए वार्षिक वर्षा कम से कम 150 से 200 से.मी. होनी चाहिए।
तापमानः तेजपात के पौधों की अच्छी बढ़त पत्तों की गुणवत्ता एवं अधिक उत्पादन के लिए औसतन तापमान 25 से 35 डिग्री सेल्सियस तक होना चाहिए।
बुवाई का माध्यमः इसकी बुवाई बीजों द्वारा भी की जाती है; परन्तु पौधों की गुणवत्ता के दृष्टिकोण से नर्सरी तैयार पौधों का रोपण करना ज्यादा लाभप्रद है।
आवश्यक बीज/पौध: तेजपात के कृषिकरण के लिए प्रति एकड़ (20 नाली) भूमि के लिए 200 पौधों की आवश्यकता होती है।
खेती की तैयारीः
- तेजपात की खेती करने के लिए पौधरोपण से पूर्व 2.5×2.5x 2.5 फीट के गड्डे बना लेने चाहिए।
- गड्डे से गड्डे की दूरी लगभग 15 फीट होनी चाहिए।
- प्रत्येक गड्डे में एक टोकरी सड़ी गोवर की खाद मिट्टी व 100 ग्राम चूना मिला कर एक माह के लिए छोड़ देना चाहिए।
पौध रोपण:
- तेजपात की पौधरोपण के लिए जुलाईई से अक्टूबर प्रथम सप्ताह तक का समय उपयुक्त होता है।
- सिंचाई की सुविधा होने पर इसे जनवरी व फरवरी माह में भी रोपण किया जा सकता है।
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सिंचाईः
- गड्डों में पौधरोपण के पश्चात सिंचाईई कर देनी चाहिए।
- तेजपात की खेती करने के लिए टपक सिंचाई विधि ज्यादा उपयुक्त है।
- तेजपात के अच्छे उत्पादन के लिए वर्षा ऋतु में पानी की निकासी की आवश्यकता होती है।
निराईई गुड़ाई:
- समय-समय पर जब पौध के आसपास अधिक खरपतवार हो जाये तो निराई-गुडाई की जानी चाहिए।
फसल कटाई एवं संग्रहण (पोस्ट हार्वेस्ट)
- तेजपात के 10 वर्ष के पौधे से पत्तों की फसल लेना शुरू हो जाता है जिन्हें अक्टूबर-मार्च माह तक (जब मौसम में नमी न हो) एकत्रित कर छाया में सूखा कर हवादार व नमी रहित स्थान पर संग्रह कर लिया जाता है। धूप में सुखाने पर पत्तो का रंग फीका पड़ जाता है और सुगन्ध में भी भारी कमी आ जाती है।
- उपज: तेजपात के वृक्ष से पत्तो का संग्रह 10 वर्ष पश्चात 40-50 वर्ष की आयु तक किया जा सकता है। प्रतिवर्ष प्रति वृक्ष 40 से 60 किग्रा के लगभग पत्तो का उत्पादन होता है। इस प्रकार प्रति एकड़ (20 नाली) भूमि से 80-120 कुन्तल पत्तों का उत्पादन होता है।
- वर्तमान बाजार मूल्यः तेजपात के सूखे हुए पत्तों का बाजार भाव रू0 50 से 60 प्रति किलोग्राम है।
- अनुमानित लाभः तेजपात के प्रति एकड़ (20 नाली) भूमि के ड्डषिकरण से 10 वर्ष पश्चात 80 कुन्तल पत्तियां प्रति एकड़ की दर से उत्पादन होता है। जो कि वर्तमान बाजार मूल्य के हिसाब से लगभग रु.4,40,000-रू. 4,80,000 तक का लाभ कमाया जा सकता है।