Laxmi

Divya Jyoti Jagrati Sansthan Dehradun | जीते जी श्रद्धा पूर्वक की गई सेवा से ही सार्थक ‘श्राद्धकर्म’

Spread the love

Divya Jyoti Jagrati Sansthan Dehradun | दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान, देहरादून

रविवारीय साप्ताहिक सत्संग कार्यक्रम – जीते जी श्रद्धा पूर्वक की गई सेवा से ही सार्थक ‘श्राद्धकर्म’

– साध्वी विदुषी ममता भारती जी

-सद्गुरू प्रदत्त ‘ब्रह्म्ज्ञान’ के ‘ध्यानयोग’ से प्रसन्न हो जाते हैं पित्रगण Divya Jyoti Jagrati Sansthan Dehradun

देहरादून। दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान (Divya Jyoti Jagrati Sansthan Dehradun) की शाखा, 70 इंदिरा गांधी मार्ग, (सत्यशील गैस गोदाम के सामने) निरंजनपुर के द्वारा आज आश्रम प्रांगण में दिव्य सत्संग-प्रवचनों एवं मधुर भजन-संर्कीतन के कार्यक्रम का भव्य आयोजन किया गया। सद्गुरू श्री आशुतोष महाराज जी की शिष्या तथा देहरादून आश्रम की प्रचारिका साध्वी विदुषी ममता भारती जी ने वर्तमान में चल रहे।

Divya Jyoti Jagrati Sansthan Dehradun,  divya jyoti jagrati sansthan, divya jyoti jagriti sansthan, divya jyoti, divya jyoti jagrati sansthan bhagwat katha, dehradhun bhagwat katha, divya guru, divya aarti, motivational bhajan, bhajan sandhya djjs, bhajan sandhya, shri ram bhajans, djjs shrimad bhagwat katha, bhagwat katha aastha bharti, shri krishan katha, bhagwat katha djjs, aastha bharti ji bhagwat katha, sadhvi astha bharti, ram katha, djjs bhandara bhajans, shiv katha, devi bhagwat katha djjs, Divya Jyoti Jagrati Sansthan Dehradun Uttarakhand

श्राद्धपक्ष की शास्त्र-सम्मत सटीक व्याख्या करते हुए बताया कि मुगलकालीन बदशाह शाहजहां भी भारतीय संस्कृति में विद्यमान श्राद्धपक्ष की उस समय प्रशंसा करते हुए अपने अत्याचारी शासक पुत्र औरंगजेब से कहते हैं कि तू कैसा अजीब मुसलमान है जो अपने जीवित पिता को क़ैद कर उसे भोजन-पानी के लिए तरसाता है, धन्य हैं वे हिन्दू जो अपने दिवंगत पूर्वजों तक को भोजन और जल अर्पित किया करते हैं।

Dhyana Yoga

यह भारतीय संस्कृति की अनुपम विरासत है कि यहां प्रत्येक पर्व-त्यौहार और परम्पराएं अपने भीतर गूढ़ आध्यात्मिक संदेश संजोए हुए होती हैं। पूर्वजों के निमित्त किए जाने वाले श्राद्धकर्म का तात्पर्य श्रद्धा से उन्हें तर्पण देना है, तर्पण अर्थात उन्हंे पूर्ण रूप से तृप्त कर देना। अध्यात्मिक जगत बहुत से रहस्यों को अपने भीतर समेटे हुए हुआ करता है।

वास्तव में पित्रों की पूर्ण संतुष्टि मात्र कर्म-काण्ड कर अपने दायित्वों की इतिश्री कर लेना ही नहीं है अपितु पूर्वजों के ऋण से उऋण हो जाने के लिए सबसे कारगर और महत्वपूर्ण है कि सदगुरू प्रदत्त ‘ध्यानयोग’ के द्वारा उनके बचे हुए कर्म संस्कारों को ब्रह्मज्ञान की पावन अग्नि में स्वाहा कर देना। जिस प्रकार पूर्वजों की सम्पत्ति, उनके अधिकार और साथ ही उनकी बीमारियां तक स्वतः ही आश्रित की हो जाती हैं उसी प्रकार उनके कर्म संस्कार रूपी ऋण भी उनके खाते में पहुंच जाया करते हैं।

Marriage l रात की चढ़ी हुई को उतारने के लिए सुबह चढ़ाना or लड़की का माँ बनना कितना जरूरी

मात्र ब्राह्मणों को व्यंजनों को परोस देने तथा दान-दक्षिणा प्रदान कर देने से ही पित्र प्रसन्न नहीं हो जाते उन्हें तो श्रद्धा पूर्वक अपने ध्यान-साधना के पुण्यपंुज अर्पित कर संतुष्ट करना होता है, यही वह दिव्य तर्पण है जो उन्हें मुक्ति के द्वार तक ले जा सकता है।

साध्वी जी ने विस्तार पूर्वक राजा भगीरथ के द्वारा गंगा को पृथ्वी तक लाने और अपने पूर्वजों के तारण की कथा संगत के समक्ष रेखांकित करते हुए बताया कि ब्रह्मभोज का तात्पर्य है कि पूर्ण ब्रह्मनिष्ठ सदगुरू को भोज्य पदार्थों का भोग अर्पित करना, इसी से यह पित्रों को प्राप्त हो जाता है और पूर्ण गुरू ही हैं जो हमारे साथ-साथ हमारे पूर्वजों का भी कल्याण करने की सामर्थ्य रखते हैं।

प्रत्येक सप्ताह की भांति आज भी कार्यक्रम का शुभारम्भ भाव पूर्ण भजनों की प्रस्तुति के साथ किया गया। भजनों में 1- गुरूवर हमको भक्ति दे दो, आपके ध्यान में सदा रहें हम…… 2- मिट जाएगी बन्दे तेरी पल में सारी तृष्णा, बोलो राधे कृष्णा-बोलो राधे कृष्णा…….. 3- केत्थे तैनूं नाम दियाँ चढ़ियाँ खुमारियाँ…….. 4- मेरे हबीब मेरा इतना काम हो जाए, तेरी याद में हस्ती तमाम हो जाए…….. 5- जी लेंगे सरकार तेरी सरकारी मंे, हमें रख लेना श्री श्याम तेरी दरबारी में…….. इत्यादि भजन संगत को भावविभोर कर गए।

भजनों की व्याख्या के साथ-साथ मंच का संचालन साध्वी सुभाषा भारती जी के द्वारा किया गया। उन्होंने कहा कि जब भगवान जीव पर प्रसन्न होते हैं तो उसे कोई सांसारिक दौलत नहीं अपितु आध्यात्मिक दौलत अर्थात सत्संग की प्राप्ति करवाते हैं। ज्यों-ज्यों हम संतांे की संगत में जाते हैं त्यों-त्यों हरि (परमात्मा) के प्रति हमारा अनुराग बढ़ता चला जाता है। ईश्वर की परम भक्ति को प्राप्त करने से पूर्व पूर्ण गुरू का सत्संग अति आवश्यक है। सत्संग से ही हमें ईश्वर तक पहुंचने का वास्तविक मार्ग प्राप्त हुआ करता है।

मानव के जीवित रहते ही ‘मुक्ति’ सम्भव है’ -साध्वी विदुषी अरूणिमा भारती जी Div ya Jyoti Jagrati Sansthan Dehradun

कार्यक्रम में विदुषी अरूणिमा भारती जी ने भी अपने विचार रखते हुए बताया कि वास्तव में मुक्ति की युक्ति तो जीते-जी ही अपनाई जाती है। पूरे गुरू की शरणागति से यह युक्ति मानव मात्र को प्राप्त हो जाती है।

सनातन ‘ब्रह्म्ज्ञान’ को प्राप्त कर जब एक साधक योग साधना के माध्यम से, पूर्ण गुरू की सेवा करते हुए और सत्संग की सौगात को अंगीकार कर गुरू आज्ञा में आगे बढ़ता है तो गुरू कृपा से उसके जन्म-जन्मांतरों के साथ-साथ संचित और क्रियामान कर्मों का खात्मा होने लगता है, तब वह मुक्ति की मंजिल को प्राप्त कर लिया करता है, इसी को मोक्ष भी कह सकते हैं।

dhyana yoga, dhyana, dhyan yog, dhyana yog, dhyana yoga 29, dhyan yoga, dhyan, que es dhyana, dhyana yoga sutras, dhayana yoga, dhyan sadhna, what is dhyana, dhyana in ashtanga yoga, dhyana patanjali, dhyana meditación, shiva dhyana mantra, dhyana significado, dhyan kya hai, dhyana yoga - path to happiness, bhavasamanvaya dhyana, dhyan kaise kare, dhyan kaise karna chahiye, dhyana in the yogasutras of patanjali, dhyan kaise lagaye, dhyan lagane ki vidhi
Divya Jyoti Jagrati Sansthan Dehradun Uttarakhand

श्राद्ध तभी सार्थक है जब जीते-जी उन पूर्वजों को संतुष्ट कर लिया जाए जिन्हें पितृपक्ष में तर्पण देने की बात की जाती है। विदुषी जी ने ज़ोर देकर कहा कि यह एक विड़म्बना नहीं तो और क्या है कि जिन पूर्वजों को दिवंगत होने के पश्चात् अनेक कर्म-काण्डों के द्वारा संतुष्ट करने का प्रयास किया जाता है, जीवित अवस्था में उनकी दुर्गति समाज़ से छुपी हुई नहीं है।

जगह-जगह नित बनते जा रहे वृद्धाश्रमों से यह बात सिद्ध होती है कि जिन पित्रों को श्राद्ध दिया जाता है क्या उन्हें जीवित रहते श्रद्धा पूर्वक वह सब कुछ प्रदान किया जाता है जिनकी कि उन्हें अत्यंत आवश्यकता हुआ करती है? राजा भगीरथ पतितपावनी मां गंगा को धरा पर लेकर आए, एैसे ही पूर्ण सदगुरू एक साधक के भीतर मोक्ष दायिनी गंगा का अवतरण भी इस मानव देह रूपी पृथ्वी में किया करते हैं।

Gorkha Dashain Diwali Festival | गोर्खा दशै दिवाली महोत्सव 2023 का आयोजन महेंद्र ग्राउंड, गढ़ी कैंट देहरादून में होगा

यह एक जीवित अवस्था की तकनीक है जिसे प्राप्त कर एक साधक अपना और अपने पूर्वजों का भी कल्याण कर पाता है। कबीर साहब बड़ा सुन्दर फरमाते हैं-

‘‘जीवित जानों, जीवित बूझो, जीवित मुक्त निवासा रे, मरे हुए जो मुक्ति दे, झूठा दे विश्वासा रे’’  

सद्गुरू जगत की पूर्ण सत्ता हुआ करते हैं, जो साधक उन पर पूर्ण रूप से निर्भर है उसी का योग तथा क्षेम स्वयं गुरूदेव वहन किया करते हैं। जब तक हमारे भीतर कर्तापन का भाव है तब तक अंदर बेचैनी, संशय तथा आशा-निराशा रहेगी ही, जैसे ही कर्तापन का भाव गया और ‘करतारपन’ का भाव प्रस्फुटित हुआ, बस! सारी दुविधा समाप्त, फिर उसी की रज़ा में मज़ा आता है। फिर ‘वह’ वो भी कर देता है जो हमारे जीवन में कभी सम्भव ही न था। प्रसाद का वितरण कर साप्ताहिक कार्यक्रम को विराम दिया गया।

– दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान, देहरादून Divya Jyoti Jagrati Sansthan Dehradun

Spread the love
स्किल उत्तराखण्डः युवाओं को मिले साढ़े तीन लाख रुपए मासिक वेतन के ऑफर Anti Ragging Rally डीएसबी परिसर में एंटी ड्रग्स और एंटी रैगिंग रैली: सामाजिक जागरूकता की एक महत्वपूर्ण पहल छात्रों द्वारा बनाए गए मेहंदी के डिज़ाइनों में पारंपरिक और आधुनिक दोनों प्रकार के डिज़ाइन देखने को मिले Football Tournament 76वें एचएन पांडे इंडिपेंडेंस डे चिल्ड्रन फुटबॉल टूर्नामेंट का आगाज, सैनिक स्कूल ने शानदार प्रदर्शन करते हासिल जीत Gold Price सोने के दामों में 9 फीसदी की कमी; 1 अगस्त से देश में आ जाएगा सस्ता वाला सोना ‘मरद अभी बच्चा बा’ गाना खेसारी लाल यादव और आम्रपाली दुबे की जोड़ी का एक और सुपरहिट गाना Havey Rain उत्तरकाशी में भारी बारिश से तबाही: गंगोत्री और यमुनोत्री राष्ट्रीय राजमार्ग बंद, राहत कार्य जारी Manu Bhaker: कैसे कर्मयोग की शिक्षाएं मनु भाकर की सफलता की कुंजी बनीं