– सुशील कुमार जोश | www.uttrakhandjosh.com
मनुष्य ईश्वरतत्व प्राप्त करके पुत्रतत्व के अधिकर से ईश्वर के अनंनत जीवन में प्रवेश करने का सरल मार्ग; पलक (Plak) झपकने में तेरी हो सकती है परन्तु मनुष्य के उद्धार में देर नही हो सकती है
शरीर क्रिया कलाप यानि नियम वर्त तीर्थ यात्राओं से ईश्वर को खुश नही किया जा सकता है परन्तु जिस मनुष्य ने ईश्वर के पुत्र को अपने जीवन का प्रभु या गुरू स्वीकार कर लिया उन्हें ईश्वर का आत्मा मिल जाता है शरीर और आत्मा का आपस में वैर है इसलिए मनुष्य शरीर से ईश्वर को प्रसन्न नही कर सकता है परन्तु आत्मा के गुरू के नाम में ईश्वर का आत्मा जिनके पास है वे आत्मा से परमात्मा को प्रसन्न करते है वे विनती करते है वे प्रार्थना करते है, उन्हें ईश्वर की ओर से गैरभाषा मिलती है वे बुद्धि से भी ईश्वर से प्रार्थना , विनती और धन्यवाद करते है वे गैरभाषा से भी ईश्वर के सम्मुख अपनी जरूरतों को, विनती को प्रार्थना के रूप में रखते है।
फिर वहां उनके पास ईश्वर का आत्मा आता है जिससे ईश्वर ने मृतकों में जिलाया है जब उन्होंने ईश्वर के पुत्र को अपने जीवन का प्रभु स्वीकार किया तो वे लोग उसके पाप के साथ सहभागी बने परन्तु जैसे ही ईश्वर ने उसे मृतकों में से जिलाया तो वे उसके साथ महिमा पा गये यही कारण है जो ईश्वर के पुत्र को अपने जीवन का प्रभु स्वीकार करते है तो वह गुरू उनके पापों के लिए क्रूस पर बलिदान हो गया उसने उनके पापों का कष्ट अपने शरीर पर ले लिया परन्तु जैसे वह जीवित हुआ तो उन्होंने भी उसके नाई मोक्ष प्राप्त कर लिया सिर्फ विश्वास से और परमात्मा के पुत्र होने का गौरव प्राप्त किया और ईश्वर के विश्राम में विश्वास से प्रवेश कर लिया इसलिए मुक्ति के लिए कष्ट नही उठाना पड़ता बल्कि आपने उद्धार कैसे पाया सिर्फ यीशु को जीवन का प्रभु या गुरु स्वीकार करके और ईश्वर की योजना पर विश्वास किया कि ईश्वर ने उसे जिलाया है तो आपने आत्मा के जरिये ईश्वर के विश्राम में प्रवेश किया यानि आपका उद्धार हो गया, न कि शरीरिक कष्ट उठाने के कारण जैसे- पूजा, पाठ, जप, तप, तीर्थ वर्त, नियम, मंदिर मजिस्द गुरूद्वारा चर्च की यात्रों से नही और नही पण्डित, नबी, पास्टर, ज्योतिष, या फिर किसी संसारिक गुरूओं से जो मां-बाप के आपसी संबंधों यानि व्यविचार से पैदा हुई संतानों गुरू, पीर पैगम्बरों के दिशा निर्देशों से।
क्योंकि ईश्वर ने अपने पुत्र के मुहं से साफ-साफ कहा है कि मैं तुमसे सच-सच कहता हूं वह जो द्वार से यानि मुहं से भेड़शाला यानि मनुष्य के हृदय में प्रवेश नहीं करता परन्तु किसी दूसरी ओर से चढ़ जाता है, वह चोर और डाकू है। परन्तु जो द्वार यानि मुहं से (यहां पर हम समझेंगे कि द्वार यानि मुहं से) जब हम यीशु को स्वीकार करेंगें तो ही वह हमारे हृदय में प्रवेश करता है, वह भेडों का चरवाहा यानि वह हृदयों की पुकार सुनने वाला ईश्वर का आत्मा यानि जीवआत्मा है।
द्वारपाल यानि मनुष्य स्वयं एक द्वारपाल की तरह है जब तक उसने अपना मुहं न खोला यानि यीशु को मनुष्य ने अपने मुहं से अपने जीवन का गुरू या प्रभु स्वीकार नही करेगा और ईश्वर की इस योजना पर विश्वास नही करेगा कि ईश्वर ने उसे मृतकों में से जिलाया है तब तक मनुष्य का उद्धार सम्भव नही है।
यह प्रत्येक मनुष्य के लिए उतना ही जरूरी है जितना जीवित रहने के लिए भोजन (Plak)
यह प्रत्येक मनुष्य के लिए उतना ही जरूरी है जितना जीवित रहने के लिए भोजन। मुक्ति के लिए यीशु को आत्मा का गुरू या प्रभु स्वीकार करना बहुत ही जरूरीर है।
द्वारपाल यानि मनुष्य, जीवात्मा (यीशु को आत्मा का गुरू) के लिए अपना मुहं खोलता है और उसे apne जीवन में प्रभु स्वीकार करता है और भेड़ यानि मनुष्य की आत्मा or हृदय उस जीवात्मा की आवाज यानि गैरभाषा को पहचानता है यानि मनुष्यों को गैरभाषा समझ नही आती परन्तु उसे यानि जीवात्मा को उसकी भाषा यानि शब्द समझ आ जाते है वह अपनी भेड़ों के नाम ले-लेकर पुकारता भी है यानि आत्माओं के भी नाम होते है और जो मनुष्य 30 मिनट से ज्यादा गैरभाषा करता है तो आगे समझेंगे कि वह ;yani Eshar ka atma उन्हें बाहर ले जाता है यानि जीवात्मा जब मनुष्य गैरभाषा करता है तो उसके अन्दर जो आत्मा है उसे वह बाहर ले जाता है और अपनी सारी भेड़ों यानि आत्माओं को बाहर निकालता है और आगे आगे चलता है और भेडें उसके पीछे पीछे चलती है क्योंकि भेंडें उसकी आवाज को सुनती है और उसकी आवाज पहचानती है वे किसी दूसरे के पीछे नही जाती है यहां पर हम समझेंगे कि jo manushya atma ki sunta ha man ki nahi. man yani chanchal or atma yani eshwar atma ka guru. जब मनुष्य मन से गैरभाषा करता है तो जीवात्मा आकर यीशु के नाम में मनुष्य की आत्मा के अन्दर आता है और फिर जीवात्मा उस आत्मा को बाहर ले जाता है और इस वह कुछ संसार से अलग दिखाता है जैसे हम समझेंगे कि विश्वासी 30 मिनट से ज्यादा गैरभाषा करता है फिर वह कहता है कि ईश्वर ने मुझे आत्मा में कुछ दिखाया जैसे- किसी को मकान दिखाया, किसी को आत्मा में बाहर ले गया का मतलब है कि उसे आत्मा में उठाया और स्वर्गीय स्थानों mein शैर करवा दी तो सुनगा होगा कि कई विश्वासी लोग कहते है ईश्वर ने मुझे आत्मा में उठाया और मुझे अद्भुत दृश्य शांति, शकून, आनन्द से भरपूर, योजनाएं ईश्वर ने मुझे दर्शन दिखाये और वह अपने लिए व अपने परिवार व अपनी संगत के लिए ईश्वर से मांगता है कि प्रभु की आत्मा ने मुझे यह दिखाया और वह इस हेतु प्रभु के सामने विनती, प्रार्थना रखता Bhi है और उसे अपने जो उसने आत्मिक जीवन में दर्शन देखा उसे अब शारीरिक जीवन में प्रकट होने की विनती प्रार्थना eshwar se krta है और उसka शारीरिक जीवन में प्रकट होने लिए ईश्वर का धन्यवाद देता है यह उत्तम दर्शन शांति शकून और आनन्दायक दृर्शन को अब मेरे जीवन में प्रकट कर चुके हो।
इसलिए विश्वासी मनुष्य कहता है कि जो संसार में सबसे बड़ा है कौन? रूपया, पैसा, धन, छल-कपट, झूठ, पाप, अंधकार, लालच, व्यविचार, धन सम्पत्ति, धोखा, दौलत, शौरत, औरत, देवी-देवता, मूर्ति, यात्रा, तीर्थ, वर्त, नियम, मंदिर, मस्जिद, गुरूद्वारा, चर्च, स्नान, दान पुण्य, पद प्रतिष्ठा पाना, अपने आपको मंदिरों, मस्जिदों, गुरूद्वारों, चर्चा में लोगों के सामने या सामाज के सामने बहुत दानी दिखाना, या पूजा पाठ धार्मिक अनुष्ठान करने वाले दिखाना या अपने आपको समाजसेवी समझाना वे सभी अपने कर्मों का प्रतिफल पा चुके है और संसार में जितने भी है उन सबसे आत्मा के ईश्वर की रंजिश की लड़ाई है पर उनसे भी बड़ा मैं तेरी आत्मा में वास करने वाला प्रभु हूं अगर तू मुझे अपनी आत्मा का गुरू या प्रभु स्वीकार करें और विश्वास करें कि ईश्वर ने मुझे मृतकों में से जिलाया है तो तेरा उद्धार पलक झपकते में देर हो सकती है पर मनुष्य उद्धार होने में देर नही हो सकती है क्योंकि तेरे विश्वास ने ही तुझे चंगा कर दिया है तूने विश्वास से ही ईश्वर के आनन्द में प्रवेश कर लिया है क्योंकि ईश्वर (मैंने ) ne भी (कसम यानि प्रतिज्ञा की है बिना विश्वास कोई भी मेरे आनन्द में प्रवेश न करने पायेगा।
मनुष्य ईश्वर को अपने कर्मों से प्रसन्न नही कर सकता plak
इसलिए han दोस्ता! मनुष्य ईश्वर को अपने कर्मों से प्रसन्न नही कर सकता है मुक्ति या उद्धार पाने के लिए नियम वर्तm yatra करने की जरूरत नही है बल्कि विश्वास की जरूरत है जो लोग विश्वास से यीशु को अपने जीवन का प्रभु स्वीकार करte है और मन में विश्वास करte है तो उसका तुरन्त ही उद्धार हो जाता हैं वह किसी का न धर्म बदलता है, न पहनाव बदलता है न भेष भूषा बदलता है जिसने भी ईश्वर की इस योजना पर विश्वास किया कि ‘यीशु ईश्वर का पुत्र है तो वह ना ही सिखा बनाता है, ना ही हिन्दू बनाता है, न ही मुस्लमान बनाता है, ना ही ईसाई बनता है जिसने भी उस पर विश्वास किया कि वह ईश्वर की औलाद है तो उसे वह इंसान बनाता है। इसी इंसानीपन से मनुष्य का उद्धार हो जाता है मनुष्य ईश्वरतत्व प्राप्त करके पुत्रतत्व के अधिकार से आनंनत जीवन में प्रवेश कर देता है।