लेखक: सुशील कुमार | uttrakhandjosh.com
आसमान चाहिएः आत्मा की पुकार और मुक्ति की राह “हे मेरे पुत्र, लौट आ। मैं तुझे नया जीवन देना चाहता हूँ।” “Come back, my son. I want to give you new life.”
मनुष्य का जीवन केवल मांस और रक्त की यात्रा नहीं, बल्कि यह आत्मा की एक पुकार है—आसमान की ओर, प्रकाश की ओर, उस शाश्वत सत्य की ओर जहाँ से जीवन की सच्ची पहचान शुरू होती है। आत्मा का यह “आसमान” ईश्वर की ओर इंगित करता है—वह सर्वोच्च ज्योति जो अंधकार को चीरकर जीवन उत्पन्न करती है; मृत्यु में भी आशा की किरण जगाती है; और हर जड़त्व में गति और चैतन्य भर देती है। Come back my son
आत्मा बनाम शरीर: दो मार्गों की पहचान Come back my son
इस संसार में दो शक्तियाँ कार्य कर रही हैं—एक ईश्वर की, जो जीवन, प्रकाश, और आशा का स्रोत है; दूसरी शैतान की, जो मृत्यु, अंधकार और धोखे की जननी है। आत्मा “आसमान” की ओर देखती है—उच्चतम सोच, सकारात्मक ऊर्जा, शांति और सच्चाई की ओर। शरीर—जो परिवर्तनशील, नाशवान और माटी से बना है—वह संसार के आकर्षणों, इच्छाओं और पीड़ाओं में उलझा रहता है।
जो व्यक्ति ईश्वर को पहचान लेता है, उसका मार्ग संसार से भिन्न हो जाता है। वह संसार में रहते हुए भी संसार से नहीं होता। उसमें एक नई बुद्धि, नई समझ, और पवित्रता प्रकट होती है। ईश्वर की प्रतिज्ञा है:
“मैं तुम्हें नया हृदय दूंगा और नई आत्मा तुम्हारे भीतर डालूंगा, जो तुम्हें सब सत्य की ओर ले चलेगी।”
परमेश्वर की अद्भुत योजना
ईश्वर ने मनुष्य को अपनी ही छवि में रचा—महान, अधिकारयुक्त, और ब्रह्मांड पर राज्य करने वाला। पृथ्वी, आकाश, समुद्र, पशु-पक्षी, फल-फूल—सब पर मनुष्य को प्रभुत्व दिया गया था। परंतु शैतान ने इस अद्वितीय सृष्टि को भ्रष्ट कर दिया। उसने मनुष्य से उसके अधिकार, आनन्द और मुक्ति को छीन लिया। मृत्यु का प्रवेश हुआ, और मनुष्य जीवन के बजाय विनाश की ओर बढ़ने लगा। Come back my son
शैतान ने मनुष्य को भ्रम में डाल दिया—मूर्ति पूजा, विधियों, छुआछूत, व्रतों, तीर्थों और बाहरी धार्मिकता में फँसा दिया। इससे मनुष्य ईश्वर के मूल स्वरूप और सच्चे संबंध को खो बैठा। वह अपने सच्चे पिता, अपने परमेश्वर को पहचान नहीं पा रहा।
शैतानी बंधन और ईश्वर की चिंता
शैतान ने तीन मुख्य बंधनों से मनुष्य को जकड़ा है:
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दैवीक दोष – आत्मिक भ्रांति और भ्रम।
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आर्थिक दोष – दरिद्रता, ऋण, आर्थिक व्यथा।
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तापिक दोष – मानसिक तनाव, रोग, शोक, और भय।
इसके अतिरिक्त “महाताप”, “काल”, और “महाकाल” जैसे अज्ञात शक्तियों ने मनुष्य को ऐसे जाल में फँसा दिया है जिससे वह अपनी मेहनत या धार्मिक प्रयासों से बाहर नहीं निकल सकता। भले ही वह तीर्थ करे, व्रत रखे, नियम माने—परंतु आत्मा फिर भी मुक्ति को तरसती रहती है।
ईश्वर की प्रतिक्रिया: उद्धार की योजना
परमेश्वर ने देखा कि उसकी प्रिय सृष्टि विनाश की ओर जा रही है। वह चुप नहीं बैठा। उसने एक नई योजना बनाई—एक ऐसा मार्ग जो सरल, सीधा और सामर्थ्यशाली हो। उसने स्वर्ग से एक अद्भुत आत्मा को पृथ्वी पर भेजा, जो स्त्री-पुरुष की इच्छा से नहीं, बल्कि पवित्र आत्मा और एक कुंवारी कन्या से उत्पन्न हुआ। उसका नाम था:
यीशु मसीह – सत्य, जीवन और मार्ग।
यीशु अहिंसा का पुजारी, प्रेम और बलिदान का स्वरूप था। उसने मनुष्य के पापों को अपने ऊपर लेकर क्रूस पर प्राण दिए। वह केवल शिक्षक या भविष्यवक्ता नहीं था, वह स्वयं परमेश्वर की देह में प्रकट महिमा था।
उद्धार का रहस्य
यीशु आज भी जीवित हैं, और जो कोई उन्हें अपने जीवन का प्रभु स्वीकार करता है, उसे नया हृदय और आत्मा मिलती है। वह व्यक्ति आत्मिक बंधनों को तोड़ता है, पापों से मुक्त होता है और शांति, समृद्धि और अनंत जीवन को प्राप्त करता है।
“यदि तू अपने मुंह से यीशु को प्रभु माने और अपने हृदय से विश्वास करे कि परमेश्वर ने उसे मृतकों में से जिलाया, तो तेरा उद्धार होगा।”
(रोमियों 10:9)
यीशु अब हमारे भीतर आत्मा के द्वारा निवास करते हैं। जब हम आत्मिक युद्धों में उतरते हैं, तो यह वही आत्मा—यीशु की आत्मा—हमें बल देती है, दिशा देती है, और विजयी बनाती है।
आत्मिक युद्ध और मोक्ष
अब निर्णय हमारे हाथ में है। या तो हम शैतान के झूठ, अंधकार और नाश में फँसे रहें; या फिर यीशु को स्वीकार कर मुक्त, शुद्ध, उज्ज्वल जीवन की ओर कदम बढ़ाएं। यह लेख केवल शब्द नहीं, आत्मा की पुकार है।
ईश्वर आज भी द्वार पर खड़ा है और कहता है:
“हे मेरे पुत्र, लौट आ। मैं तुझे नया जीवन देना चाहता हूँ।”
यदि यह लेख पढ़ते समय आपके हृदय में कुछ हिलता है, तो समझिए आत्मिक युद्ध शुरू हो चुका है। अब यह आप पर है कि आप किस ओर जाएंगे—अंधकार की ओर या प्रकाश की ओर।
धन्यवाद।