Super Creation: स्वर्ग की चढ़ाई चड़ने का सीधा व सरल मार्ग: जीवन में धार्मिका को स्वीकार करनामनुष्य संसार में अनेक प्रकार के बंधनों और श्रापों में जीता है। पाप और मृत्यु ने उसे जकड़ रखा है, और वह अपने प्रयासों से इससे मुक्त नहीं हो सकता। बहुत से लोग मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा, चर्च, मूर्तिपूजा, व्रत, तीर्थ यात्रा, नियमों और कर्मकांडों पर निर्भर रहते हैं, परंतु ये सब उसे सच्ची मुक्ति नहीं दे सकते। जो मनुष्य पण्डित, नबी, मौल्लवी, मनुष्यगुरू, पास्टर, मूर्ति, वर्त तीर्थ, नियम और स्नान पर निर्भर है वे सब श्रापित यानि मृत्यु के कवजे में है।
इसी; मृत्यु के छुटकारे के लिए हम ईश्वर द्वारा बनाई गई Top और पवित्र सृष्टि के बारे में कुछ महत्वपूर्ण बातें करेंगे जो मनुष्य को उसके पापों से छुड़ाने में मदद करेगी अगर वह उस पवित्र सृष्टि को अपने जीवन में स्वीकार करता है और विश्वास करता है तो उसके लिए स्वर्ग की सीधी चढ़ाई चढ़ने में वे लोग बड़ी सरलता से स्वर्ग तक पहुंच जायेंगे इसकी गांरटी आपको ईश्वर का यह सरल मार्ग दे रहा है।
हां दोस्तों! ईश्वर ने हमें जीवन का एक सीधा और सरल मार्ग प्रदान किया है, जिससे हम श्रापों से मुक्त होकर स्वर्ग की यात्रा कर सकते हैं। यह मार्ग केवल धार्मिकता को स्वीकार करने और परमेश्वर की ओर लौटने से संभव है।
हां दोस्तों! मनुष्य आदिकाल से ही पाप में जीता आ रहा है। उसके पूर्वजों ने जो रास्ता चुना, उसी पर आज भी वह चल रहा है। वह धार्मिक स्थलों, गुरुओं, बाबाओं, पंडितों, मौलवियों, पास्टरों, मूर्तियों, नियमों और अनुष्ठानों पर निर्भर है, लेकिन इससे वह मृत्यु और पाप के बंधन से मुक्त नहीं हो सकता। यह मानव की सबसे बड़ी चुनौती है कि वह इन सांसारिक उपायों से छुटकारा पाकर सच्चे ईश्वर की ओर कैसे लौटे।
मनुष्य के सामने सबसे बड़ी चुनौति यह है कि वह श्रापों से मुक्त कैसे हो? Super Creation
क्योंकि मनुष्य की पीढ़ी दर पीढ़ी यही रीति चली आ रही है कि जैसे उसके पुराने लोगों ने यानि पूर्वज करते आ रहे है आज भी वह वही चाल चल रहा है वह घर में मंदिर के पुजारी से पूजा करवाता है, व मस्जिद के नबी या मौल्लवी से झाड़ फूंक करवाता है या फिर वह किसी मनुष्यरूपी गुरू यानी बाबा या देह रूपी माता या मूर्ति की पूजा या फिर उसके उपदेशों से जीवन जी रहा है या फिर किसी चर्च के पास्टरों पर निर्भर है या फिर कोई दान दक्षिणा करने या जरूरमंदो की सेवा में लगा हुआ है तो उसका फल उसको कैसे मिलेगा पर फिर भी उसकी मुक्ति कैसे होगी।
बता दें कि मनुष्य की इच्छा है कि वह जन्म-मरण के इस बंधन से मुक्त होकर अनन्दत जीवन या यानी मुक्ति का जीवन प्राप्त करें।
यहां पर हमने जाना कि कुल मिलकर इन सभी पर मंदिर, मजिस्टर, गुरुद्वारा, चर्च, मूर्ति, वर्त स्नान, नियम दान दक्षिणा या फिर जरूरतमंदों की सेवा करने से या इन पर भंरोसा रख कर मनुष्य अपनी जीवन की गाड़ी को चल रहा है या खींच रहा है बट यह सब जन्म-मरण के बंधन से मुक्त होकर अनन्दत जीवन या यानी मुक्ति का जीवन मनुष्य को उसे कैसे प्राप्त होगा।
क्योंकि धरती पर सबसे कमजोर मनुष्य है जो उसके अन्दर का स्वभाव है क्योंकि मनुष्य स्वभाव से ही कमजोर और परिवर्तनशील है जबकि ईश्वर ठीक इसके विपरीत है यानि ईश्वर अटल है, विश्वसनीय है, आंदन का सोता है और अद्वितीय है ईश्वर के टुकड़े नही किये जा सकते उसे तो जीवन में स्वीकार जाता है और अपने आपको उसके अनुरूप चलाना या डालना पड़ता है। जैसे सारा ब्रहमाण्ड चलाया माना यानि परिवर्तनीय है गृह चल रहे, चांद, तारे चल रहे, पृथ्वी परिक्रमा कर रही है बस सूरज ही तो है जो सिर्फ अपरिवर्तनीय है यानि पूरा ब्रहमाण्ड सूर्य के चारों ओर यानि इर्द-गिर्द घूम रहा है वैसे मनुष्य भी कमजोर व परिवर्तनशील है और ईश्वर की टोप की सृष्टि है। Super Creation
इसके लिए हम ईश्वर के जीवित वचन को ओर चलते है यानि अधंकार से प्रकाश की ओर चलकर हम कुछ महत्वपूर्ण बातों पर प्रकाश डालते है कि ईश्वर कहते है मैंने तेरे पूर्वज आदम को अपनी शक्ल और सूरत में मिट्टी से बनाया और उसके नथनों में अपनी सांस फंूकी यानि उसे जीवन दिया और वह मिट्टी से मनुष्य बन गया और उसके लिए उसी को तोड़ कर नारी का निर्माण किया यानि आदम को तोड़कर मैं उसकी शक्ल सूरत में स्त्री यानि हव्वा का निर्माण किया और उन्हें भरपूर की आशीष दी और तब धरती में पापा नही था और व मनुष्य यानि आदम लगभग 1000 हजार साल तक जीवित रहा।
ईश्वर ने आदम को अपनी छवि में बनाया और उसे जीवन प्रदान किया। आदम और हव्वा को स्वर्गीय आनंद प्राप्त था, लेकिन हव्वा की अवज्ञा और पाप के कारण मृत्यु संसार में आई। तब से मनुष्य पाप में जन्म लेता है और उसी में जीता है।
क्योंकि मैने उसे अपनी शक्ल सूरत में सृजा और उसे जीवन जीने के लिए अदम्म की वाटिका यानि धरती को बना कर दिया और उसे आशीर्वाद दिया किया पूतों-फलों यानि बच्चों को जन्म दो और धरती पर फैल जाओ ये धरती मैंने तुम्हारे लिए बनायी है और इस धरती पर मैंने तुम्हारे पूर्वजों को ये अधिकार भी दिये कि- आकाश के पक्षियों व वन जीव-जन्तुओं और समुन्द्र के सारे जीव पर अधिकार रखो और साथ में मैंने उन्हें यह भी चेतावनी दी कि वे अच्छे-बुरे नाम फल न खाएं।
क्योंकि मैंने-
मनुष्य यानि आदम को अपनी शक्ल और सूरत में इसलिए बनाया था कि मैं ईश्वर जो असीम सृष्टिकर्ता हूं अपनी टॉप की बनाई हुई सृष्टि में वास करता हूं यानि- मनुष्य देह मेरा घर है मेरा मंदिर है और मैं ईश्वर असीमित शक्तियां का राजा हूं। ईश्वर जो सीमाओं से परे हूं इस मनुष्य देह यानि पवित्र में वास करता हूं।
परन्तु हव्वा ने मेरी आज्ञा को न माना और उसने खुद भी खाया और मेरी टॉप की सृष्टि आदम जो मैंने अपनी शक्ल सूरत में बनाया को भी खिलाया और धरती में पाप यानि मृत्यु पैदा हो गया। और इस टॉप की देह आदम को हवा द्वारा श्रापित यानी पाप का जन्म हुआ यानि आदम की देह जहां ईश्वर का वास था वहां शैतान यानी पाप का राज हो गया। क्यों कि आदम के लिए मैंने हवा यानि स्त्री का निर्माण किया था और उसी स्त्री ने आज्ञा न मानने के कारण पाप को जन्म दे दिया। और आज भी स्त्री पाप को जन्म दे रही है।
इसलिए मैं ईश्वर अपनी देह यानि अपने घर से दूर हो गया हूं और मेरी बनायी हुई टॉप की सृष्टि पाप से श्रापित हो गई। यानि जो आशीष मैंने आदम और हवा को दी थी पूतों-फलों और धरती पर फैल जाओ। धरती में तो वह फैल गये परन्तु अब वे मनुष्य धरती पर पाप के लिए घर बनाने लगे।
वह मनुष्य जब तक धरती में पाप नही था तब से वह एक हजार वर्ष तक पृथ्वी पर जीवित रहा है उसके बाद धरती में पाप एक्टिव हो गया और पाप यानि मृत्यु ने अपना तांडव पृथ्वी पर शुरू कर दिया मनुष्य पर मृत्यु का अपना शासन; चलाना शुरू हो गया। अब मनुष्य की पाप का शिकार होने लगे मनुष्यों की पृथ्वी में मृत्यु होने लगी यानी सारी बुराईयों का फल मृत्यु है यानि और दान पुण्य, वर्त, नियम, दान, दक्षिण, तीर्थ वर्त, स्नान, मंदिर मस्जिद, चर्च, गुरुद्वार सब श्रापित हो गये।
यही कारण है कि मनुष्य श्राप में जीता है दान-पुण्य भी श्राप में करता है। अब चाहिए आप पण्डित, नबी, मौल्लवी, मनुष्य गुरू, पास्टर जिस पर भी आप निर्भर है आपका कल्याण नहीं होने वाला क्योंकि आप श्रापित है और श्राप में जी रहे है।
हां दोस्तों मनुष्य के सामने सबसे बड़ी चुनौती है कि उसके पास मार्गदर्शक (Guru) की कमी है-
वह श्रापों से मुक्त कैसे हो क्योंकि मनुष्य की पीढ़ी दर पीढ़ी यह रीत चली आ रह है कि जैसे उसके पुराने लोग करते थे वह आज भी वही चाल चल रहा है वह घर में मंदिर के पुजारी से पूजा करवाता है, व मस्जिद के मौल्लवी नबी या मौल्लवी से झाड़ फूंक करवाता है या फिर वह किसी मनुष्यगुरू यानी बाबा या देह रूपी माता या मूर्ति की पूजा या फिर उसके उपदेशों से जीवन जी रहा है या फिर किसी चर्च के पास्टरों पर निर्भर है या फिर कोई दान दक्षिणा, जरूरमंदो की सेवा में लगा हुआ है तो उसका फल उसko मिलेगा पर फिर भी उसकी मुक्ति नही है और मनुष्य की इच्छा है कि वह जन्म मरण के बंधन से मुक्त होकर अनन्दत जीवन या यानी मुक्ति का जीवन प्राप्त करें।
इसके लिए हम सीधे ही वचन पर चलते है – Super Creation
‘ईश्वर की शरण लेनी, मनुष्य पर भरोसा रखने से उत्तम है’ क्योंकि ईश्वर अटल और विश्वसनीय है। परमेश्वर यानि ईश्वर पर भरोसा करना मानव का श्रेष्ठ है। मनुष्य स्वभाव से कमजोर और परिवर्तनशील होते हैं, जबकि परमेश्वर अटल और विश्वसनीय हैं। इसलिए, हमें अपनी समस्याओं और चिंताओं में सबसे पहले परमेश्वर की ओर रुख करना चाहिए।
भरोसे का यह सिद्धांत हमारे दैनिक जीवन में भी लागू होता है। जब हम परमेश्वर पर भरोसा रखते हैं, तो हम आंतरिक शांति और स्थिरता का अनुभव करते हैं, चाहे परिस्थितियाँ कैसी भी हों। यह हमें दूसरों के साथ स्वस्थ संबंध बनाने और समाज में सकारात्मक योगदान देने में सक्षम बनाता है।
अंततः, यह पद हमें याद दिलाता है कि सच्ची सुरक्षा और मार्गदर्शन के लिए हमें परमेश्वर की शरण लेनी चाहिए, क्योंकि वही हमारे जीवन का सच्चा आधार है।
इसके लिए ईश्वर ने दूसरा रास्ता बनाया है
पहले तो उपरोक्त अपने बता ही दिया कि पहला आदम ईश्वर ने अपनी सक्ल सूरत में बनाया यानि ईश्वर ने मनुष्य नही बल्कि अपना घर बनाया। परन्तु उस मनुष्य के जीवन में उसकी स्त्री द्वारा पाप का जन्म दिया गया और आज भी स्त्री और पुरुष के मिलन से यानि आपसी संबंध से भ्यविचार करने से जो संतानों पैदा होती है वह पाप की संतानें मानी व गिनी जाती है।
परन्तु ईश्वर! मनुष्य बहुत प्रेम करता है उसे प्रेम के खातिर ईश्वर ने फिर एक नई सृष्टि की। यानि मनुष्य को आनन्त जीवन मिले या मनुष्य की मुक्ति हो इसके लिए ईश्वर ने दूसरा आदम को जन्म दिया यानि फिर ईश्वर ने एक नई सृष्टि New Sirshti Or Super Sirhti बनाई।
यानि ईश्वर का आत्मा पवित्र आत्मा है पवित्र आत्मा और कुंवारी कन्या से फिर एक ईश्वर ने पवित्र संतान यानि एक नई सृष्टि को जन्म दिया। उसे पवित्र सृष्टि का नाम यीशु है यानि पवित्र आत्मा की संतान है यानि यीशु ही ईश्वर की पवित्र व धर्मी संतान है यीशु को ही ईश्वर धार्मिक ठहराया है और अब यीशु में ईश्वर ने यानि पवित्र आत्मा ने बड़े-बडे काम करने शुरू कर दिये। यीशु के आत्मसमर्पण, सेवा, संयम और त्याग के कारण ईश्वर ने पृथ्वी में अवत्रित यीशु के शरीर व इंन्द्रयों से अपनी सामर्थ्य को प्रकट किया।
ईश्वर यानि पवित्र आत्मा; यीशु को आत्मा में भेद की बातें देने लगा। यीशु की वाणी में पवित्र ईश्वर बैठ गया क्योंकि यीशु पवित्र आत्मा के पुत्र थे तो पुत्र में पवित्र आत्मा ने बड़े-बड़े काम करने शुरू कर दिये यीशु शरीर में ईश्वर ने गूंगे को वाणी दी, अंधों को आंख दी, कोड़ियों को शुद्ध किया, भूखों को रोटी दी, बीमारों को ठीक किया मृदों को जिलाया। Super Creation
यहां कि यीशु के शरीर में पवित्र आत्मा ने अपनी सामर्थ्य दिखाई कि तुम्हें रचने वाला मैं हंू तुम्हारी सृष्टि करने वाला मैं हूं और तुम्हारे जन्म लेने से पहले मैंने तुम्हारें लिए तुम्हारे पापों को कर्ज अपनी दे पर ले लिया है और क्योंकि तुम्हें मैं अपनी शक्ल सूरत में रचा है और तुम मेरी पृथ्वी पर Top की सृष्टि हो।
इसलिए मेरे इस रास्ते पर विश्वास करता है कि यीशु को मैंने तुम्हारे लिए पृथ्वी पर भेजा है और उसके दिखाये मार्ग पर तुम चलो और -यीशु को मुझ पवित्र आत्मा का पुत्र मान लो और विश्वास करो कि मैंने उसे तुम्हारे लिए धरती पर भेजा है और मना लेगा उसको मैं उसे पाप से छुड़ा लंूगा क्योंकि मैं ईश्वर हूं इंसान नही और मेरा वचन सत्य है।
9कि “यदि तू अपने मुहं से यीशु को प्रभु यानि गुरू जानकर स्वीकार करें और अपने मन विश्वास करें कि परमेश्वर यानि ईश्वर ने उसे मरे हुओं में से जिलाया, तो तू निश्चय उद्धार पाएगा।“
हां दोस्तों धार्मिकता के लिए मन से विश्वास किया जाता है और उद्धार के लिए मुंह से स्वीकार किया जाता है। फिर आपका उद्धार हो गया आप ईश्वर की नजर में धर्मी ठहराये गये हो अब आपकी जीवन की यात्रा स्वर्ग पर चढ़ाई करने की यात्रा हो गई और इस यात्रा में ईश्वर का धन्यवाद सुबह-सायं करना होता है और ईश्वर की भाषा में कम से कम 30 मिनट बात करनी होती है जो इस काम को नित्य करेगा व र्स्वग की सीधे चढ़ाई चढ़ने में कामियाब हो जायगा।
धन्यवाद। ईश्वर आपको आशीष दे चुका है।
हो चुका है।