Sociological Analysis: समाजशास्त्र, मीडिया और प्रौद्योगिकी; कुमाऊं विश्वविद्यालय में विशेष व्याख्यान का आयोजन : ukjosh

Sociological Analysis: समाजशास्त्र, मीडिया और प्रौद्योगिकी; कुमाऊं विश्वविद्यालय में विशेष व्याख्यान का आयोजन


कुमाऊं विश्वविद्यालय, नैनीताल के समाजशास्त्र विभाग में 21 फरवरी 2025 को एक महत्वपूर्ण विशेष व्याख्यान का आयोजन किया गया। इस व्याख्यान का विषय था – “Sociological Analysis of Media and Technology in Contemporary Order” (समकालीन व्यवस्था में मीडिया और प्रौद्योगिकी का समाजशास्त्रीय विश्लेषण)। इस कार्यक्रम में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) के प्रतिष्ठित समाजशास्त्री प्रो. मनोज जेना मुख्य वक्ता के रूप में उपस्थित थे।

इस कार्यक्रम का उद्देश्य था मीडिया और प्रौद्योगिकी के सामाजिक प्रभावों को गहराई से समझना और इन परिवर्तनों का समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण से विश्लेषण करना।


विशेष व्याख्यान का आयोजन और अतिथियों का स्वागत Sociological Analysis

इस व्याख्यान की अध्यक्षता समाजशास्त्र विभाग की विभागाध्यक्ष प्रो. ज्योति जोशी ने की, जबकि संचालन का कार्यभार डॉ. प्रियंका नीरज रुवाली ने संभाला।

कार्यक्रम की शुरुआत में समाजशास्त्र विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष डॉ. डी. एस. बिष्ट ने मुख्य वक्ता प्रो. मनोज जेना का शॉल ओढ़ाकर अभिनंदन किया। इसके बाद, प्रो. अर्चना श्रीवास्तव ने उन्हें पुष्पगुच्छ भेंट कर स्वागत किया। इसी क्रम में, डॉ. सरोज पालीवाल, डॉ. पदम सिंह बिष्ट और डॉ. अर्शी परवीन ने अन्य गणमान्य अतिथियों का सम्मान किया।

इस अवसर पर अनेक विभागों के प्रतिष्ठित प्राध्यापक और शोधार्थी उपस्थित थे, जिनमें शामिल हैं:

  • प्रो. चंद्रकला रावत (हिन्दी विभाग)
  • प्रो. संजय घिल्डियाल (इतिहास विभागाध्यक्ष)
  • प्रो. जया तिवारी (संस्कृत विभागाध्यक्ष)
  • प्रो. रजनीश पांडे
  • डॉ. नंदन सिंह बिष्ट (अर्थशास्त्र विभाग)
  • डॉ. हरिप्रिया पाठक (अंग्रेजी विभाग)
  • डॉ. हरीश चंद्र मिश्रा (समाजशास्त्र विभाग)

इनके अलावा, विश्वविद्यालय के अनेक शोधार्थी और विद्यार्थी भी बड़ी संख्या में उपस्थित रहे।


प्रो. मनोज जेना का मुख्य व्याख्यान

अपने मुख्य वक्तव्य में प्रो. मनोज जेना ने आधुनिक समाज में मीडिया और प्रौद्योगिकी की बदलती भूमिका पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि मीडिया अब केवल सूचना का माध्यम नहीं रह गया है, बल्कि यह समाज की संरचना, सांस्कृतिक पहचान और सामाजिक व्यवहार को भी गहराई से प्रभावित कर रहा है।

उन्होंने मीडिया के विकास को तीन प्रमुख चरणों में विभाजित किया:

1. पारंपरिक मीडिया

इसमें अखबार, रेडियो और टेलीविजन शामिल हैं, जो दशकों तक मुख्यधारा की सूचना प्रसारण प्रणाली रहे।

2. डिजिटल मीडिया

आज के युग में सोशल मीडिया, डिजिटल समाचार प्लेटफॉर्म और ऑनलाइन स्ट्रीमिंग सेवाएं सूचना के नए स्रोत बन गए हैं।

3. कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) और ऑटोमेशन

अब मीडिया में एआई (AI), मशीन लर्निंग और डेटा एनालिटिक्स का प्रभाव बढ़ता जा रहा है, जिससे सूचना संप्रेषण का तरीका बदल रहा है।

प्रो. जेना ने बताया कि मीडिया अब केवल खबरें देने तक सीमित नहीं है, बल्कि यह जनमत को आकार देने, सांस्कृतिक मूल्यों को प्रभावित करने और यहां तक कि राजनीतिक निर्णयों को नियंत्रित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।


डिजिटल क्रांति और सामाजिक प्रभाव

डिजिटल क्रांति ने समाज में कई बड़े बदलाव किए हैं। प्रो. जेना ने इस विषय पर विस्तार से चर्चा की और बताया कि इंटरनेट और स्मार्टफोन की उपलब्धता ने लोगों की सोचने, समझने और संवाद करने की शैली को पूरी तरह बदल दिया है।

मुक्ति! हक का विषय है श्रद्धा का नही है; मुक्ति के लिए पूजा पाठ अनुष्ठान वर्त नियम नही है…

हालांकि, उन्होंने इस क्रांति के कुछ नकारात्मक प्रभावों की ओर भी ध्यान आकर्षित किया, जिनमें शामिल हैं:

1. डिजिटल विभाजन (Digital Divide)

डिजिटल तकनीक का लाभ केवल उन्हीं लोगों को मिल रहा है, जिनके पास इंटरनेट, स्मार्टफोन और तकनीकी शिक्षा तक पहुंच है।

✅ शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के बीच तकनीकी असमानता बढ़ रही है।
✅ गरीब और वंचित वर्ग डिजिटल सेवाओं का पूर्ण लाभ नहीं उठा पा रहे हैं।
✅ समाज में सूचना असमानता (Information Inequality) बढ़ रही है।

2. मीडिया निगरानी और निजता (Privacy Concerns)

प्रो. जेना ने बताया कि आज की डिजिटल दुनिया में निजता एक बड़ा मुद्दा बन चुकी है।

✅ बड़ी टेक कंपनियां उपयोगकर्ताओं की व्यक्तिगत जानकारी एकत्र कर उनके व्यवहार को प्रभावित कर रही हैं।
✅ सरकारें भी मीडिया निगरानी (Media Surveillance) कर रही हैं, जिससे लोगों की स्वतंत्रता प्रभावित हो रही है।
फर्जी समाचार (Fake News) और दुष्प्रचार समाज में भ्रम फैलाने का एक साधन बन गए हैं।

3. सांस्कृतिक पहचान और सोशल मीडिया

सोशल मीडिया ने सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बढ़ावा दिया है, लेकिन इसके कारण कई बार स्थानीय परंपराएं और भाषाएं हाशिए पर चली जाती हैं।
✅ आज की युवा पीढ़ी ग्लोबल कल्चर को तेजी से अपनाने लगी है, जिससे पारंपरिक मूल्यों और रीति-रिवाजों पर असर पड़ रहा है।

प्रो. जेना ने कहा कि हमें तकनीक को अपनाने के साथ-साथ अपनी सांस्कृतिक विरासत का संरक्षण भी करना होगा।


समाजशास्त्र के शोधार्थियों के लिए संदेश Sociological Analysis

अपने व्याख्यान के अंत में प्रो. जेना ने समाजशास्त्र के शोधार्थियों को कुछ महत्वपूर्ण बातें बताईं: Sociological Analysis

मीडिया और तकनीक के प्रभावों का गहराई से अध्ययन करें।
डिजिटल क्रांति के सकारात्मक और नकारात्मक पहलुओं पर शोध करें।
लोकतंत्र, समाज और संस्कृति पर मीडिया के प्रभावों को पहचानें।
मीडिया साक्षरता (Media Literacy) को बढ़ावा दें, ताकि लोग फर्जी खबरों और गलत सूचनाओं से बच सकें।


कार्यक्रम का समापन और धन्यवाद ज्ञापन

कार्यक्रम के समापन पर प्रो. ज्योति जोशी ने मुख्य वक्ता प्रो. मनोज जेना और अन्य गणमान्य अतिथियों का आभार व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि इस तरह के अकादमिक विमर्श समाजशास्त्र और अन्य सामाजिक विज्ञानों के शोधार्थियों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।

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अंत में, मुख्य वक्ता के विचारोत्तेजक व्याख्यान और उपस्थित सभी विद्वानों एवं विद्यार्थियों के योगदान की सराहना करते हुए प्रो. ज्योति जोशी द्वारा कार्यक्रम का समापन किया गया।


Sociological Analysis of Media and Technology in Contemporary Order

मीडिया और प्रौद्योगिकी का समाज पर प्रभाव गहरा और बहुआयामी है।
डिजिटल मीडिया ने लोगों के सोचने और संवाद करने का तरीका बदला है।
तकनीकी असमानता, निजता के खतरे और सांस्कृतिक प्रभाव जैसे विषय गहरी चिंता का कारण हैं।
समाजशास्त्रियों और शोधकर्ताओं को इस बदलाव का गहन विश्लेषण करना चाहिए।

इस व्याख्यान ने यह स्पष्ट किया कि हमें मीडिया और प्रौद्योगिकी के उपयोग में संतुलन बनाए रखना होगा, ताकि हम आधुनिकता को अपनाने के साथ-साथ अपने मूल्यों और संस्कृति की भी रक्षा कर सकें।


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