टिहरी रियासत की शाही शादी: टिहरी गढ़वाल की रियासत, जो अपनी समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर और गौरवशाली इतिहास के लिए प्रसिद्ध है, ने 1938 में एक ऐतिहासिक शादी का गवाह बनी। यह शादी महाराजा मानवेंद्र शाह और राजस्थान के बांसवाड़ा राज्य की राजकुमारी सूरज कुंवर के बीच हुई थी। यह न केवल दो रियासतों के बीच गठबंधन का प्रतीक थी, बल्कि भारतीय राजघरानों की अद्वितीय परंपराओं और भव्यता को भी दर्शाती है।
शादी की पृष्ठभूमि: दो राज्यों का संगम टिहरी रियासत की शाही शादी
राजा नरेंद्र शाह और राजमाता सूरज किरण ने मानवेंद्र शाह के विवाह के लिए बांसवाड़ा की राजकुमारी सूरज कुंवर को चुना। यह निर्णय राजस्थान के मेयो कॉलेज में पढ़ाई के दौरान राजा नरेंद्र शाह और बांसवाड़ा के राजा लाल सिंह के बीच हुए संवाद से प्रेरित था। टिहरी रियासत की शाही शादी
विवाह प्रस्ताव की अनोखी परंपरा टिहरी रियासत की शाही शादी
उस समय राजकुमार और राजकुमारी का सीधा मिलना परंपरा के खिलाफ था। इसलिए, विवाह प्रस्ताव को अंतिम रूप देने के लिए एक विशेष योजना बनाई गई। टिहरी रियासत के अंग्रेज बैंडमास्टर नैलर की एक बेटी को राजकुमारी सूरज कुंवर को देखने के लिए बांसवाड़ा भेजा गया। उनकी स्वीकृति और समझ पर विवाह की बातचीत आगे बढ़ाई गई।
शाही विवाह: भव्यता और ऐतिहासिकता
बारात की तैयारी और यात्रा
1938 में, 17 वर्षीय मानवेंद्र शाह और 15 वर्षीय सूरज कुंवर का विवाह निश्चित हुआ। बारात नरेंद्र नगर पैलेस से बांसवाड़ा के लिए निकली। इस बारात के लिए ऋषिकेश से एक विशेष ट्रेन बुक की गई थी। बारात रातभर मेरठ में रुकी, जहां कमिश्नर इंद्रधर जुयाल ने अद्भुत व्यवस्थाएं की थीं।
मार्ग की सजावट
मुनिकीरेती से नरेंद्र नगर तक का रास्ता, लगभग 15 किलोमीटर, दीयों और डीजल जनरेटर की रोशनी से सजाया गया था। यह कदम इसलिए उठाया गया क्योंकि उस समय नरेंद्र नगर में बिजली नहीं थी। जनरेटर पूरे देश से मंगवाए गए थे, जो इस शादी के भव्य आयोजन का प्रतीक बने। टिहरी रियासत की शाही शादी
शाही समारोह टिहरी रियासत की शाही शादी
शादी समारोह चार से पांच दिनों तक नरेंद्र नगर के शाही महल में चला। इसमें टिहरी रियासत के हजारों लोग, गांवों के मुखिया, और देश भर की रियासतों के राजा शामिल हुए। भोजन परोसने के लिए परंपरागत सरोलाओं की मदद ली गई। राजा नरेंद्र शाह स्वयं भोजन व्यवस्था का निरीक्षण करते थे और अतिथियों की हर आवश्यकता का ध्यान रखते थे।
महाराजा मानवेंद्र शाह और रानी सूरज कुंवर का जीवन
संतान और परिवार
शादी के बाद महाराजा मानवेंद्र शाह और रानी सूरज कुंवर ने चार बच्चों को जन्म दिया – तीन बेटियां और एक बेटा।
- अनुपमा कुमारी: डूंगरपुर रियासत में विवाह।
- निरुपमा कुमारी: मेवाड़ रियासत में विवाह।
- स्वरूपा कुमारी: झालावाड़ रियासत में विवाह।
- मनुजेंद्र शाह: टिहरी रियासत के उत्तराधिकारी।
गढ़वाली संस्कृति और भाषा का प्रेम
महाराजा और रानी गढ़वाली संस्कृति से अत्यधिक प्रेम करते थे। वे गढ़वाली भाषा में बात करते और पारंपरिक लोकगीतों और पवाड़ों का आनंद लेते थे।
महाराजा का प्रशासन और सामाजिक योगदान
महाराजा मानवेंद्र शाह न केवल एक कुशल प्रशासक थे, बल्कि समाज कल्याण के लिए समर्पित थे। उन्होंने क्षेत्र में रिन्यूएबल एनर्जी को बढ़ावा दिया और अटल बिहारी वाजपेयी से संपर्क कर ऋषिकेश में एम्स की स्थापना करवाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
राजमाता सूरज कुंवर का योगदान
रानी सूरज कुंवर ने हर कदम पर महाराजा का साथ दिया। उनकी सरलता और दूरदृष्टि ने उन्हें एक आदर्श रानी बनाया। वे टिहरी रियासत और नरेंद्र नगर के विकास में महाराजा के साथ खड़ी रहीं।
जीवन के अंतिम क्षण
महाराजा मानवेंद्र शाह का 2007 में निधन हो गया। उनके बाद रानी सूरज कुंवर ने लंबे समय तक अपने परिवार और रियासत के लोगों के साथ समय बिताया। उनका निधन 2 अक्टूबर 2021 को नई दिल्ली के गंगाराम अस्पताल में हुआ। उनका अंतिम संस्कार 4 अक्टूबर को मुनिकीरेती स्थित पैतृक राजघाट पर किया गया।
टिहरी की शाही विरासत टिहरी रियासत की शाही शादी
महाराजा मानवेंद्र शाह और रानी सूरज कुंवर का जीवन भारतीय राजघरानों की शान और संस्कृति का प्रतीक है। उनकी शादी न केवल टिहरी और बांसवाड़ा रियासत के बीच का एक बंधन थी, बल्कि यह भारतीय परंपराओं, संस्कृतियों और मूल्यों की गहरी जड़ें भी दिखाती है। टिहरी रियासत की शाही शादी
उनकी कहानी आज भी टिहरी गढ़वाल की धरोहर में एक महत्वपूर्ण अध्याय के रूप में जानी जाती है। यह हमें शाही जीवन, उनके योगदान, और समाज के प्रति उनकी जिम्मेदारी को समझने का अवसर प्रदान करती है।