Trivendra Singh Pawars Tribute: उत्तराखंड राज्य के गठन के संघर्ष में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले त्रिवेंद्र सिंह पंवार का निधन राज्य और देश के लिए एक अपूरणीय क्षति है। 69 वर्ष की आयु में उनका असमय निधन राज्य के राजनीतिक इतिहास में एक गहरी छाप छोड़ गया है। उनकी मृत्यु से उत्तराखंड संघर्ष के एक महान नेता को खोने का दुख राज्यवासियों के दिलों में छाया हुआ है। ऋषिकेश में आयोजित अंतिम संस्कार में हजारों लोग त्रिवेंद्र पंवार को श्रद्धांजलि देने के लिए एकत्र हुए। उनका जीवन केवल राजनीति तक सीमित नहीं था, बल्कि वह उत्तराखंड के विकास और जनहित के लिए अपने संघर्ष के प्रतीक बन चुके थे।
उत्तराखंड राज्य के लिए संघर्ष में प्रमुख भूमिका
त्रिवेंद्र सिंह पंवार का नाम उन गिनती के नेताओं में आता है जिन्होंने उत्तराखंड राज्य के गठन के संघर्ष में महत्वपूर्ण योगदान दिया। 1987 में जब उत्तराखंड राज्य की मांग जोर पकड़ रही थी, तब पंवार ने संसद में इस मुद्दे को उठाने के लिए ऐतिहासिक कदम उठाया था। 23 अप्रैल 1987 को दिल्ली में लोकसभा सत्र के दौरान, पंवार ने संसद भवन में घुसकर “आज दो, अभी दो, उत्तराखण्ड राज्य दो” का नारा दिया। इस कार्य के द्वारा उन्होंने न सिर्फ राज्य की मांग को आवाज़ दी, बल्कि इस मुद्दे को संसद के महत्वपूर्ण मंच तक पहुँचाया। उनके इस साहसिक कदम ने न केवल उत्तराखंड के लोगों को एकजुट किया, बल्कि पूरे देश को यह संदेश दिया कि उत्तराखंड के लोग अपने अधिकारों के लिए संघर्ष कर रहे हैं।
राजनीति से परे, समाज सेवा में भी योगदान
पंवार का जीवन राजनीति से कहीं अधिक था। उन्होंने उत्तराखंड के सामाजिक और आर्थिक विकास के लिए भी कार्य किया। उनके दृष्टिकोण में राज्य का विकास सिर्फ राजनीतिक सत्ता प्राप्ति तक सीमित नहीं था, बल्कि एक आत्मनिर्भर और समृद्ध उत्तराखंड की परिकल्पना थी। उनकी प्राथमिकता हमेशा हाशिए पर पड़े लोगों की आवाज़ को मुख्यधारा में लाने और उनके अधिकारों की रक्षा करने की रही। उनका मानना था कि राज्य की समृद्धि के लिए आवश्यक है कि हर नागरिक को उसकी ज़रूरतों के हिसाब से अवसर मिले। Trivendra Singh Pawars Tribute
ऋषिकेश के निवासी बताते हैं कि पंवार का योगदान सिर्फ राज्य गठन तक सीमित नहीं था। उन्होंने 1994 से 2000 तक के वर्षों में अपने क्षेत्र में सक्रिय रूप से काम किया और यह सुनिश्चित किया कि सभी सरकारी कार्यालय और दुकानें बंद हों, ताकि राज्य गठन के आंदोलन में अधिक जोर दिया जा सके। इस दौरान उनका समर्पण और संघर्ष उन्हें अपने क्षेत्र में एक सम्मानित नेता बना गया।
Trivendra Singh Pawars Tribute: उत्तराखंड संघर्ष के सशक्त योद्धा त्रिवेंद्र सिंह पंवार का निधन: एक श्रद्धांजलि
राज्य के गठन के बाद की चुनौतियाँ
उत्तराखंड राज्य का गठन 2000 में हुआ, लेकिन उसके बाद भी पंवार ने राज्य के सामने आने वाली समस्याओं को नजरअंदाज नहीं किया। राज्य बनने के बाद बेरोजगारी और अन्य सामाजिक समस्याएँ बढ़ने लगीं, जिससे पंवार नाखुश थे। उन्होंने इन समस्याओं को विधानसभा सत्रों में उठाने का प्रयास किया और राज्य सरकार से समाधान की मांग की। पंवार का यह समर्पण उन्हें एक प्रेरणास्त्रोत बना गया।
उनकी दृढ़ता और संघर्ष की एक मिसाल तब देखी गई जब उन्होंने 2014 में राज्य की प्रमुख भूमि कानून के मुद्दे पर आंदोलन शुरू किया। पंवार ने कुमाऊं और गढ़वाल कमिश्नर कार्यालय को घेरने की योजना बनाई थी, ताकि राज्य में भूमि संबंधी समस्याओं का समाधान किया जा सके। यह उनका राजनीति के प्रति सक्रिय और जिम्मेदार दृष्टिकोण था।
एक संघर्षशील नेता का जीवन
त्रिवेंद्र सिंह पंवार का जीवन संघर्षों से भरा हुआ था। उन्होंने कई चुनाव लड़े, लेकिन सफलता हमेशा उनके साथ नहीं रही। फिर भी, उन्होंने कभी हार नहीं मानी। उनका संघर्ष केवल सत्ता में आने के लिए नहीं था, बल्कि वह समाज के लिए अपने कर्तव्यों को निभाने के लिए हमेशा तैयार रहते थे। पंवार का यह विश्वास था कि राजनीति का उद्देश्य केवल सत्ता में बैठना नहीं, बल्कि जनता की सेवा करना और उनके मुद्दों को उठाना भी उतना ही महत्वपूर्ण है।
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उनकी राजनीतिक यात्रा मुख्यतः ऋषिकेश से जुड़ी रही, जहाँ उन्होंने अपने जीवन के अधिकांश वर्ष बिताए और वहां के लोगों की समस्याओं को समझा। एक ट्रांसपोर्ट व्यवसायी से लेकर राज्य संघर्ष के नेता बनने तक, पंवार ने अपने कार्यों के माध्यम से यह साबित किया कि राजनीति का असली उद्देश्य लोगों की भलाई करना है। हालांकि, चुनावी राजनीति में उनकी सफलता कम रही, लेकिन राज्य के विकास और सामाजिक न्याय के लिए उनका संघर्ष कभी कम नहीं हुआ।
निजी जीवन और परिवार Trivendra Singh Pawars Tribute
पंवार का निजी जीवन भी कठिनाइयों से भरा था। 2015 में उन्होंने अपने जवान पुत्र को बुखार के कारण खो दिया था, जिससे वह गहरे आघात में थे। इसके बाद, उन्होंने राज्य में भूमि अधिकारों के लिए आंदोलन शुरू किया। उनका निजी जीवन भी इस संघर्ष में पूरी तरह से समर्पित था। उनके परिवार और समर्थकों के लिए यह कठिन समय था, लेकिन पंवार ने कभी अपनी प्रतिबद्धता और संघर्ष को छोड़ने का नाम नहीं लिया।
त्रिवेंद्र सिंह पंवार की मृत्यु ने उत्तराखंड की राजनीति और समाज में एक शून्य पैदा कर दिया है, जिसे भरना कठिन होगा। वह एक सच्चे नेता थे, जो अपने सिद्धांतों और संघर्षों के लिए जाने जाते थे। उत्तराखंड राज्य के गठन में उनके योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता। उनकी विरासत न केवल उत्तराखंड के नेताओं के लिए प्रेरणा का स्रोत रहेगी, बल्कि आगामी पीढ़ियाँ भी उनके समर्पण और संघर्ष को याद रखेंगी।
उनकी मृत्यु ने उत्तराखंड के नागरिकों को यह समझने का अवसर दिया कि राजनीति केवल सत्ता प्राप्त करने का साधन नहीं है, बल्कि यह समाज की सेवा और उसके हितों के लिए काम करने का माध्यम है। पंवार की समर्पित जीवन यात्रा एक प्रेरणा बनकर राज्य के नेताओं और कार्यकर्ताओं को मार्गदर्शन देती रहेगी।
-शीशपाल गुसाईं