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77th Annual Nirankari Sant Samagam: 77वां वार्षिक निरंकारी संत समागम: मानवता का संदेश और आध्यात्मिक विस्तार


77th Annual Nirankari Sant Samagam: 77वां वार्षिक निरंकारी संत समागम: मानवता का संदेश और आध्यात्मिक विस्तार

हरियाणा के समालखा में स्थित विशाल निरंकारी आध्यात्मिक स्थल पर तीन दिवसीय 77वें वार्षिक निरंकारी संत समागम (77th Annual Nirankari Sant Samagam) का आयोजन हुआ। यह समागम लाखों श्रद्धालुओं के बीच विशेष आध्यात्मिक और सामाजिक संदेशों के आदान-प्रदान के साथ संपन्न हुआ। इस भव्य आयोजन का शुभारंभ निरंकारी सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज के कर-कमलों द्वारा हुआ, जहां उन्होंने मानवता को परमात्मा से जुड़कर जीवन में मानवीय गुणों के विस्तार की प्रेरणा दी। इस लेख में हम समागम के विभिन्न पहलुओं पर विस्तार से चर्चा करेंगे।


समागम का शुभारंभ: विश्व भर से भक्तों की भागीदारी

समागम के पहले दिन समालखा स्थित विशाल आध्यात्मिक स्थल पर हजारों श्रद्धालु एकत्रित हुए। इस अवसर पर केवल भारत से ही नहीं, बल्कि विश्व के विभिन्न देशों से भी लाखों की संख्या में भक्त पहुंचे। मुंबई एवं महाराष्ट्र से लगभग एक लाख श्रद्धालु इस आयोजन का हिस्सा बने, जो इस समागम की लोकप्रियता और प्रभाव का प्रतीक है। समागम का आरंभ सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज के संदेश के साथ हुआ, जिसमें उन्होंने मानवता को परमात्मा से जुड़ने और इसे जीवन का आधार बनाने का आग्रह किया। 77th Annual Nirankari Sant Samagam


सतगुरु माता सुदीक्षा जी का संदेश: “परमात्मा से जुड़कर मानवता का विस्तार करें”

समागम के दौरान सतगुरु माता सुदीक्षा जी ने एकत्रित विशाल मानव परिवार को संबोधित करते हुए अपने प्रेरणादायक विचार साझा किए। उन्होंने कहा, “परमात्मा जानने योग्य है, इसे जानकर जब हम इसे अपने जीवन का आधार बना लेते हैं, तब सहज रूप से हमारे जीवन में मानवीय गुणों का विस्तार होने लगता है। यह यात्रा अंदर से बाहर की ओर होती है, जो हमें असीम विस्तार की ओर ले जाती है।”

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सतगुरु माता जी ने यह भी बताया कि अक्सर मन और मस्तिष्क के बीच तालमेल की कमी के कारण लोग तनाव का अनुभव करते हैं। परंतु जब हम परमात्मा के संग जुड़ जाते हैं, तब हमारे मन में स्थिरता और अपनत्व का भाव उत्पन्न होता है। इसका परिणाम यह होता है कि हम अपने सीमित दायरों से बाहर निकलकर सभी से प्रेम और अपनत्व का व्यवहार करने लगते हैं।


दिव्य युगल का भव्य स्वागत

समागम स्थल पर आगमन होते ही सतगुरु माता सुदीक्षा जी और निरंकारी राजपिता जी का भव्य स्वागत किया गया। सन्त निरंकारी मंडल की कार्यकारिणी समिति के सदस्यों और अन्य अधिकारियों ने फूल मालाओं और पुष्प गुच्छों से उनका अभिनंदन किया। इसके बाद एक शोभायात्रा का आयोजन किया गया, जिसमें निरंकारी इंस्टिट्यूट ऑफ म्यूजिक एंड आर्ट्स के 300 से अधिक छात्रों ने नृत्य और संगीत के माध्यम से दिव्य युगल का स्वागत किया।


प्रेम और अपनत्व का मार्ग: सतगुरु माता जी के आशीर्वचन 77th Annual Nirankari Sant Samagam

समागम के प्रथम दिवस के अंत में अपने आशीर्वचनों में सतगुरु माता जी ने प्रेम और अपनत्व के महत्व पर जोर दिया। उन्होंने कहा, “जब हम सीमित दृष्टिकोण रखते हैं, तो हम केवल कुछ ही लोगों के साथ संबंध बना पाते हैं। किंतु जब हम परमात्मा से प्रेम का संबंध जोड़ते हैं, तो हम हर व्यक्ति से प्रेम करने लगते हैं। यही वास्तविक प्रेम का मार्ग है, जो हमें अपने अहंकार और सीमाओं से मुक्त करता है।”

माता जी ने आगे बताया कि अक्सर हम अपने परिवार और समाज के दायरे में बंधकर रह जाते हैं, लेकिन जब हम परमात्मा के प्रति समर्पित होते हैं, तो हमारे दिल और आत्मा का मिलन होता है। इसके परिणामस्वरूप, हम न केवल व्यक्तिगत स्तर पर बल्कि सामाजिक और पारिवारिक रूप से भी अपने कार्यों में परमात्मा को शामिल करते हुए दया, करुणा, और सेवा के भाव से प्रेरित होते हैं।


सेवादल रैली: सेवा भावना का अद्वितीय प्रदर्शन

समागम के दूसरे दिन का शुभारंभ एक भव्य सेवादल रैली के साथ हुआ, जिसमें देश और विदेश से आए हुए हजारों स्वयंसेवकों ने हिस्सा लिया। इस रैली के दौरान सेवादल के सदस्यों ने शारीरिक व्यायाम, मानव आकृति पिरामिड, और प्रेरक लघु नाटिकाएं प्रस्तुत कीं। ये प्रस्तुतियाँ न केवल मनोरंजन का साधन थीं, बल्कि उनमें मिशन के उद्देश्यों की झलक भी दिखाई दी।

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सतगुरु माता जी ने सेवादल के स्वयंसेवकों को आशीर्वाद देते हुए कहा कि सेवा की भावना पवित्र होती है, जिसमें किसी प्रकार की इच्छा या अपेक्षा नहीं जुड़ी होती। उन्होंने कहा, “सेवा केवल एक दायित्व नहीं, बल्कि परमात्मा द्वारा हमें दिया गया एक विशेष अवसर है। इसे कृतज्ञता के भाव से पूरा करना ही सच्ची सेवा है।”


सामाजिक और पारिवारिक जिम्मेदारियों के साथ सेवा का संतुलन

अपने आशीर्वचनों के अंत में सतगुरु माता जी ने स्वयंसेवकों को संदेश दिया कि हमें अपनी पारिवारिक और सामाजिक जिम्मेदारियों को निभाते हुए सेवा में अपना योगदान निरंतर बनाए रखना चाहिए। उन्होंने कहा कि सेवा का मार्ग केवल समाज को लाभ पहुंचाने का ही नहीं, बल्कि स्वयं को भी आध्यात्मिक रूप से समृद्ध करने का साधन है। माता जी के अनुसार, “जब हम सेवा करते हैं, तो हमारा मन परमात्मा से जुड़ा रहता है और हमारे भीतर निस्वार्थता का भाव उत्पन्न होता है।”


समागम का समापन: एकता और शांति का संदेश

समागम के अंतिम दिन श्रद्धालुओं ने सत्संग और भजन-कीर्तन के माध्यम से आध्यात्मिक अनुभव प्राप्त किया। यह आयोजन न केवल आध्यात्मिक उत्थान का स्रोत था, बल्कि इसके माध्यम से समाज को प्रेम, एकता, और शांति का संदेश भी दिया गया। समागम के अंत में सतगुरु माता जी ने सभी श्रद्धालुओं को आशीर्वाद देते हुए कहा, “हमें अपने जीवन में परमात्मा को शामिल करते हुए, अपनी सोच और दृष्टिकोण को विस्तारित करना चाहिए ताकि हम सभी के लिए प्रेम, दया और करुणा का उदाहरण बन सकें।”


77th Annual Nirankari Sant Samagam: 77वां वार्षिक निरंकारी संत समागम: मानवता का संदेश और आध्यात्मिक विस्तार

77वां वार्षिक निरंकारी संत समागम न केवल एक धार्मिक आयोजन था, बल्कि मानवता, प्रेम, और सेवा की भावना को पुनः जागृत करने का एक माध्यम भी था। सतगुरु माता सुदीक्षा जी के आशीर्वचनों ने सभी को प्रेरित किया कि वे परमात्मा के साथ अपने संबंध को और गहरा करें और अपने जीवन में मानवीय गुणों का विस्तार करें। इस समागम के माध्यम से हमें यह सीखने को मिला कि परमात्मा से प्रेम का रिश्ता जोड़कर हम समाज में सच्ची शांति और सद्भावना का प्रसार कर सकते हैं।

इस प्रकार के आयोजनों से न केवल भक्तों को आध्यात्मिक संतोष मिलता है, बल्कि समाज में भी सकारात्मक बदलाव लाने की प्रेरणा मिलती है। सतगुरु माता जी के उपदेश और आशीर्वचन हम सभी को प्रेम, सेवा, और मानवता की दिशा में मार्गदर्शन देते रहेंगे।


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